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Nobel Peace Prize: मिडिल ईस्ट में जारी जंग और यूक्रेन-रूस के युद्ध के बीच नोबेल शांति पुरस्कार विजेता का ऐलान किया गया. जापान की संस्था निहोन हिडानक्यो को इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार मिला है. यह संस्था ‘परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया’ की वकालत करती है. जापानी संगठन निहोन हिडानक्यो का गठन साल 1956 में हुआ. इसे हिबाकुशा के नाम से भी जाना जाता है. इसका मिशन परमाणु हथियारों से होने वाले नुकसान को लेकर दुनिया भर में जगरूकता फैलाना है.
हिबाकुशा एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है, ‘बम से बचने वाला’ या ‘रेडियोधर्मिता से प्रभावित व्यक्ति.’ इसका इस्तेमाल आम तौर पर द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर किए गए परमाणु बम विस्फोटों से प्रभावित लोगों के लिए किया जाता है.
पिछले साल नरगिस को मिला था पुरस्कार
साल 2023 में ईरान की पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था. उनका संगठन डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर ईरान में प्रतिबंधित है. नॉर्वेजियन नोबेल समिति को शांति पुरस्कार के लिए इस साल कुल 286 उम्मीदवारों के आवेदन मिले थे, जिसमें से 89 संगठन हैं. इस पुरस्कार के तहत 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन या लगभग 1 मिलियन डॉलर की इनामी राशि दी जाती है. पुरस्कार 10 दिसंबर को ओस्लो में दिया जाएगा. इस दिन स्वीडिश उद्योगपति अल्फ्रेड नोबेल की बरसी होती है, जिन्होंने पुरस्कारों की स्थापना की थी.
जीवित बचे लोगों का सम्मान
नोबेल समिति ने परमाणु हथियारों के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर निहोन हिडानक्यो की तारीफ की है. अगले साल हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के 80 साल पूरे हो जाएंगे, जिसमें लगभग एक लाख, 20 हजार लोगों की तुरंत मौत हो गई थी. उसके बाद के कुछ सालों तक हजारों लोग चोटों और रेडिएशन के संपर्क में आने के कारण दम तोड़ गए थे. नोबेल समिति ने कहा, “इस साल नोबेल शांति पुरस्कार निहोन हिडांक्यो को प्रदान करते हुए हम उन सभी जीवित बचे लोगों को सम्मानित करना चाहते हैं, जिन्होंने दर्दनाक यादों के बावजूद शांति का विकल्प चुना.”
संगठन एवं सदस्यता
निहोन हिडानक्यो हिरोशिमा और नागासाकी (हिबाकुशा) में परमाणु बम से बचे लोगों का एकमात्र राष्ट्रव्यापी संगठन है. इसके सभी 47 जापानी प्रांतों में सदस्य संगठन हैं. इस प्रकार यह लगभग सभी संगठित हिबाकुशा का प्रतिनिधित्व करता है. इसके सभी अधिकारी और सदस्य हिबाकुशा हैं. मार्च 2016 तक जापान में जीवित बचे हिबाकुशा की कुल संख्या 174,080 है. कोरिया और जापान के बाहर दुनिया के अन्य हिस्सों में हजारों हिबाकुशा रहते हैं. हिडानक्यो इन लोगों के जीवन और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके काम में उन संगठनों के साथ सहयोग कर रहा है.
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संस्था के मुख्य उद्देश्य
परमाणु युद्ध की रोकथाम और परमाणु हथियारों का उन्मूलन. जिसमें पूर्ण प्रतिबंध और परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर करना शामिल है. इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुलाना भी हिडानक्यो की मूल मांग का हिस्सा है.
एटम-बम से क्षति के लिए राज्य को मुआवजा. युद्ध शुरू करने की राज्य की जिम्मेदारी, जिसके कारण परमाणु बमबारी से क्षति हुई, को स्वीकार किया जाना चाहिए और राज्य को मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए.
हिबाकुशा की सुरक्षा और सहायता पर वर्तमान नीतियों और उपायों में सुधार.
80 वर्षों में परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं
नोबेल समिति ने माना कि लगभग 80 सालों से किसी भी संघर्ष में परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जिसका कुछ श्रेय निहोन हिडांक्यो को भी जाता है. हालांकि, आज परमाणु निषेध दबाव में है, क्योंकि देश अपने शस्त्रागारों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं और नए खतरे सामने आ रहे हैं.
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हिबाकुशा गवाहियों का प्रभाव
जीवित बचे लोगों द्वारा साझा की गई कहानियों ने परमाणु हथियारों के प्रति व्यापक विरोध को जन्म दिया है, और अन्य लोगों को इन हथियारों के मानवता और सभ्यता पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभावों के बारे में गंभीरता से सोचने के लिए प्रोत्साहित किया है.
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, जापान में नई पीढ़ियां परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति के बारे में दुनिया को शिक्षित करने के हिबाकुशा के मिशन को जारी रख रही हैं.
स्मरण की यह संस्कृति परमाणु निषेध को बनाए रखने में मदद करती है, तथा यह सुनिश्चित करती है कि हिरोशिमा और नागासाकी के सबक कभी भुलाए न जाएं.
Tags: Japan News, Nobel Peace Prize, World news
FIRST PUBLISHED : October 12, 2024, 15:58 IST
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