चोपन/गुड्डू मिश्रा /सोनभद्र -चोपन बैरियर रामलीला में गुरुवार की रात्रि में मंच पर आज भगवान श्री राम के द्वारा राम सेतु का निर्माण किया गया जिसके लिए भगवान श्री राम भगवान ने समुद्र से बैठकर तीन दिन तक भगवान श्री राम ने आग्रह की कि मुझे रास्ता दें लेकिन उन्होंने एक भी ना सुनी जब भगवान श्री राम को क्रोध आया तब उन्होंने अपना धनुष निकला और बढ़ चढ़ाया फिर भगवान समुद्र देव प्रगट हुए और उन्होंने कहा प्रभु मुझे क्षमा करदे मुझसे गलती हो गई और आपके सेवा में दो बालक हैं नाल और नीर उन्हें सर्प लगा हुआ है की वह कोई भी पत्थर आपका नाम लेकर फेंकेंगे वह डूबेगा नहीं और मैं भी आपका सहयोग करूंगा इतना कहकर भगवान श्री राम से आज्ञा लेकर समुद्र देव चले गए फिर भगवान श्री राम नल और नीर को फिर भगवान श्री राम ने आज्ञा दी सेतु का निर्माण हुआ फिर भोले बाबा की पूजा की उसके लिए भगवान श्री राम ने रावण को बुलवाया अपने दूतो के द्वारा की मेरी पूजा संपन्न करवाई ब्राह्मण देव के द्वारा जब रावण आया उसने बताया कि यह पूजा ऐसी संपन्न नहीं होगी इसमें दोनों की जरूरत होती है फिर रावण ने हनुमान जी से कहा कि जाओ सीता को ले आओ जब हनुमान जी लंका गए और सीतामाता को लेकर आए फिर रावण ने पूजा संपन्न कराई उसके बाद रावण चला गया सीता को लेकर उसके बाद श्री राम जी ने अपना एक दूत अंगद को भेजा कि सीता को वापस कर दो फिर अंगद लंका में गए और रावण को खूब समझाया लेकिन रावण ने कोई भी बात नहीं समझी अंगद ने कहा कि अभी भी आप सीता माता को वापस कर दें और श्री राम प्रभु की सारण में चले जाएं वह आपको क्षमा कर देंगे लेकिन रावण ने फिर भी नहीं मानी फिर अंगद को क्रोध आ गया फिर अंगद ने पैर जमाया कहा जिसमें भी दम है बो हमारा पैर हिला कर दिखा दे फिर रावण ने अपनी सेना से कहा कि जाओ इस बंदर को पैर पकड़ कर घूमकर इतनी दूर फेंको की यह समुद्र के उस पर गिरे लेकिन किसी आशुर ने पैर नहीं हिला पाया फिर रावण खुद सिंघासन से उतर के आया अंगद ने कहा कि मेरे पैरों में क्या रखा है अगर पैर पकड़ने हैं तो प्रभु श्री राम के पकड़ो वह क्षमा करेंगे इसके बाद अंगद वापस राम दाल मैं आ गए।
गुरुवार की रात्रि में रामलीला में भगवान राम, सुग्रीव, जामवंत के साथ बैठकर मंत्रणा करते हैं। इसके बाद वानर सेना को लंका पर चढ़ाई करने का आदेश देते हैं। रावण के दूतों ने जानकारी दी कि वानर सेना लंका के द्वार पर आ गई है। तब रावण ने अपने पुत्र मेघनाद से अपनी सेना के साथ वानर सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया। राक्षस सेना को आया दे देख रामादल में हलचल मच गई। मेघनाद वानरों को मारते हुए आगे बढ़ रहा था। यह देख राम का आदेश पाकर लक्ष्मण युद्ध करने पहुंचे। मेघनाद और लक्ष्मण में भीषण युद्ध हुआ।
जब मेघनाद के सारे अस्त्र असफल हो गए तो उसने अमोघ शक्ति लक्ष्मण के ऊपर छोड़ दी। शक्ति के लगते ही लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर पड़े। यह देख हनुमान जी लक्ष्मण को लेकर रामादल में पहुंचे। लक्ष्मण को मूर्छित देख भगवान राम विलाप करने लगे।
तब विभीषण ने उन्हें बताया कि मेघनाथ ने शक्ति बाण का प्रयोग किया है। इसका उपचार लंका में रहने वाले सुषैन वैद्य ही कर सकते हैं। हनुमान जी सुषैन वैद्य की सलाह पर द्रोण पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर आए और लक्ष्मण की मूर्छा दूर हुई।