[ad_1]
टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष और टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं और अनंत यात्रा पर चले गए हैं। अपने पीछे देशवासियों के दिलों में ऐसी यादें छोड़ गए हैं, जिन्हें भूला पाना किसी के लिए आसान न होगा। उनके निधन से टाटा समूह से जुड़े लोगों के साथ-साथ देश के आम नागरिक भी दुखी हैं और उन्हें अपनी ओर से श्रद्धांजलि दे रहे हैं। गुरुवार को जब वे अंतिम यात्रा पर निकले तो इस मौके पर जमशेदपुर में भी टाटा समूह के कर्मचारियों ने कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। जमशेदपुर से रतन टाटा का विशेष जुड़ाव रहा है और वे इस शहर को हमेशा अपना ‘दूसरा घर’ कहते थे। इस आर्टिकल में हम आपको इस शहर से जुड़ी उनकी यादों के बारे में ही बता रहे हैं।
जमशेदपुर में डिजाइन की थी दो इमारतें
जमशेदपुर में आज भी उनकी डिजाइन की हुई दो इमारतें मौजूद हैं। दरअसल 1962 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग करके लौटे रतन टाटा साल 1963-64 में पहली बार जमशेदपुर आए थे, तब वे यहां TELCO कंपनी (टाटा इंजीनियरिंग और लोकोमोटिव कंपनी) में ट्रेनी के रूप में आए थे, और तब यहां उन्होंने दो लोगों के घरों को डिजाइन भी किया था। इनमें से पहला घर टाटा स्टील के पूर्व डिप्टी एमडी डॉ टी. मुखर्जी का था और दूसरा होटल मानसरोवर के मालिक के लिए किया था। दोनों घर जमशेदपुर में सर्किट हाउस रोड नंबर 10 ईस्ट में थे। TELCO कंपनी को आज टाटा मोटर्स के रूप में जाना जाता है।
इस बारे में बात करते हुए डॉ. मुखर्जी ने गुरुवार को हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि जमशेदपुर के सर्किट हाउस इलाके में मेरा घर रतन टाटा ने खुद डिजाइन किया है। इसमें बहुत जगह है, ग्राउंड फ्लोर पर सिर्फ रसोई और लिविंग रूम है, जबकि पहली मंजिल पर बेडरूम और अन्य कमरे हैं। यह बहुत खूबसूरती से डिजाइन किया गया है।
एक उत्साही आर्किटेक्ट के रूप में रतन टाटा ने मुंबई के पास अली बाग में अपना खुद का घर और मुंबई में अपनी मां का घर डिजाइन भी किया था। उन्होंने मुंबई समुद्र तट पर स्थित अपना वर्तमान घर भी डिजाइन किया था, जहां वे अपनी आखिरी सांस तक रहे। इसमें बहुत जगह, खुला क्षेत्र और स्विमिंग पूल है जो लगभग अरब सागर तक फैला हुआ है।’
विमान उड़ाने को लेकर थी दीवानगी
रतन टाटा एक उत्साही पायलट भी थे और वे जहां भी जाते थे, विमान उड़ाने का मौका कभी नहीं छोड़ते थे। इस बार में उनसे जुड़े अनुभव साझा करते हुए टाटा स्टील के पूर्व उपाध्यक्ष निरूप महंती ने गुरुवार को हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘रतन टाटा उड़ान भरने के लिए हमेशा बहुत उत्सुक रहने वाले व्यक्ति थे और उन्हें पता था कि मैं भी उतना ही उत्सुक रहता हूं। एक बार मैं सोनारी हवाई अड्डे पर विमान का परीक्षण करने गया था, इसी दौरान वे वहां दूसरी उड़ान से उतरे। शिफ्ट के दौरान मुझे वहां देखकर उन्हें स्वाभाविक आश्चर्य हुआ कि मैं हवाई अड्डे पर क्या कर रहा था। जब उन्हें पता चला कि मैं परीक्षण कर रहा हूं, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे लैंडिंग की शुभकामनाएं दीं।
तब टाटा स्टील ने आमतौर पर उपयोग होने वाले विमान की जगह पर एक नया मॉडल खरीदा था, जिसमें चार ब्लेड वाले प्रोपेलर लगे थे, जबकि तब तक टाटा स्टील में तीन ब्लेड वाले प्रोपेलर इस्तेमाल होते थे। उड़ान की दृष्टि से टाटा इस नए मॉडल की तकनीक से परिचित नहीं होने के कारण अपनी लैंडिंग को थोड़ा कठिन महसूस कर रहे थे। ऐसे में उस वक्त मुझे उस नए विमान की तकनीक के बारे में उन्हें जानकारी देने का ‘सम्मान’ प्राप्त हुआ था।’
आगे मोहंती ने कहा, ‘जब मैंने टाटा स्टील छोड़ने का फैसला किया, तो उन्होंने टाटा स्टील के एक बहुत वरिष्ठ अधिकारी को मुझसे बात करने और टाटा समूह की किसी भी कंपनी में पद देने के लिए कहा। इसी तरह, जब मेरी पत्नी श्रीमती रूपा महंती ने कंपनी छोड़ी, तो भी वे बहुत चिंतित थे। मुंबई में टाटा हेड ऑफिस में एक विमान के लिए बीमा प्रमाणपत्र रखा हुआ है, जिसमें एक शर्त के रूप में लिखा है ‘योग्य पेशेवर पायलटों द्वारा उड़ाया जाए और रतन टाटा के साथ मेरा नाम लिखा हुआ है, जो कि मेरे लिए बहुत गर्व की बात है।’
महंती ने भावुक होकर रतन टाटा को याद करते हुए कहा, शांति से आराम करें, सर…..उस आसमान में जिसे आप इतना प्यार करते थे…..।
जानवरों से भी करते थे बेहद प्यार
टाटा स्टील के पूर्व कार्पोरेट कम्युनिकेशन प्रमुख संजय चौधरी ने पटना से फोन पर हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘रतन टाटा को जानवरों और पर्यावरण से भी उतना ही प्यार था, जितना इमारतों और कारोबार से था। मुंबई में कुत्तों के लिए उनके द्वारा बनाया 165 करोड़ रुपए का अस्पताल इसी का एक उदाहरण है, जबकि खूबसूरत इमारतों के प्रति उनके प्यार के कारण ही भुवनेश्वर में इंस्टिट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स के निर्माण के दौरान ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ उनके विशेष संबंध बने।’
रतन टाटा को जानने वाले लोगों ने बताया कि उन्होंने 1963 में जमशेदपुर का पहला दौरा किया था, ताकि वे यह देख सकें कि टाटा स्टील कैसे काम करती है। 1965 में वे अपनी पायलट क्षमता को निखारने के लिए जमशेदपुर आए और टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) में इंजीनियरिंग ट्रेनी के रूप में काम किया, जिसे अब टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है।
रतन टाटा 1993 में टाटा स्टील के अध्यक्ष बने। इसके तुरंत बाद उन्होंने कंपनियों का एक समूह बनाने के लिए टाटा समूह की कई कंपनियों के विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिसे अब वैश्विक टाटा ब्रांड के रूप में जाना जाता है। इसके बाद उन्होंने कोरस स्टील, टेटली और JLR (जगुआर-लैंडरोवर) जैसे अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों का विदेश में अधिग्रहण किया गया।
रतन टाटा ने 1994-95 में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में नोवामुंडी लौह अयस्क खदानों की अपनी यात्रा में एक बातचीत के दौरान कहा था, ‘तेजी से बढ़ते वैश्वीकरण और सुधारों को देखते हुए टाटा समूह को एक आम बहुराष्ट्रीय ब्रांड के साथ एकीकृत समूह का रूप देना अनिवार्य हो चुका है।’ जिसके परिणामस्वरूप आज का वैश्विक टाटा ब्रांड अस्तित्व में आया, जिसमें नमक और स्टील से लेकर सॉफ्टवेयर तक शामिल हैं।
[ad_2]
Source link