[ad_1]
नई दिल्ली. बॉलीवुड में यूं तो कई सिंगर हैं, जिनके किस्से कहानियों को हम पढ़ते और जानते हैं. लता मंगेशकर, आशा भोसले, किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, कुमार सोनू, सोनू निगम से लेकर अरिजीत सिंह तक जैसे कई बड़े नाम इस लिस्ट में शामिल हैं. क्या आप उस सिंगर को जानते हैं जिसको जिंदगी में वो गम मिला, जिसको भूलाने के लिए सिंगर ने संगीत तक को छोड़ दिया था. ये सिंगर और कोई नहीं जगजीत सिंह थे.
1981 में आई फिल्म ‘प्रेम गीत’ का गाना ‘होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो’, आज भी आपके जेहन में ताजा होगा. इसे प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत को जाहिर करने का सबसे आसान गीत माना जाता है. लेकिन, इस गीत के पीछे की आवाज जितनी रूमानी है, उनके हिस्से का दर्द उतना ही गहरा. कोई अभागा ही ऐसे दर्द को भोगे. जगजीत सिंह जी के साथ तो करोड़ों चाहने वालों का प्यार और आशीर्वाद भी था. फिर, भी उन्हें ऐसा दर्द भोगना पड़ा. इसी को प्रारब्ध कहते हैं, हमें अपने हिस्से का दर्द भोगना है और प्रेम गीत गाए जाना है.
विरासत में मिला संगीत
जगजीत सिंह के गायक और म्यूजिक कंपोजर बनने की कहानी थोड़ी फिल्मी है. 8 फरवरी 1941 को श्रीगंगानगर में पैदा हुए जगजीत सिंह को संगीत विरासत में मिला तो सुर-ताल दोनों समझ में आ गए थे. पंडित छगन लाल शर्मा जैसे आला दर्जे के गुरु मिले, जिनके रहमो-करम पर जगजीत सिंह ने दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखा. लेकिन, यह एक महान गायक की जिंदगी की शुरुआत भर ही थी. वक्त गुजरने के साथ उन्होंने उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद को सीखा. पिता चाहते थे कि बेटा प्रशासनिक सेवा में जाए. जगजीत सिंह को सुरों से प्यार था और वह सुर-ताल के साथ आगे बढ़ने का फैसला करते हैं. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनकी संगीत में दिलचस्पी बढ़ी.
मुंबई ने ली सिंगर की परीक्षा
इसी समय कुलपति ने जगजीत सिंह को उत्साहित किया. उनके कहने पर ही जगजीत सिंह ने मुंबई का रूख किया. आपको लगता होगा, इतना सब सीखने के बाद जगजीत सिंह को आराम से ब्रेक मिला होगा. जी नहीं, जगजीत सिंह की जितनी मुंबई ने परीक्षा ली, उतनी जिंदगी ने भी. जगजीत सिंह मुंबई आ गए थे. शुरुआत में बड़ा ब्रेक नहीं मिला तो पेइंग गेस्ट के तौर पर रहते हुए विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाना शुरू किया. शादी या दूसरे समारोह में भी मौका मिलते ही परफॉर्म करते. यह कोशिश रोजी-रोटी को जुटाकर मुंबई जैसे शहर में टिके रहने के लिए थी.
कैसे मिले चित्रा से नैन
जगजीत सिंह जब स्ट्रगल कर रहे थे, तब वे एक गुजराती परिवार से अक्सर मिलने जाया करते थे, जिनके पड़ोस में चित्रा रहती थीं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चित्रा तब शादीशुदा थीं. उन्होंने देबो प्रसाद दत्त से शादी की थी, जिनसे उनकी एक बेटी थी, जिनका नाम मोनिका था. चित्रा के पति देबो प्रसाद भी संगीत में गहरी रुचि रखते थे, इसलिए घर पर ही उन्होंने एक स्टूडियो बनवाया हुआ था. चित्रा ने एक दिन गुजराती फैमिली से मिलने जा रहे जगजीत सिंह को देखा. चित्रा से तमाम लोग जगजीत सिंह की गायकी की तारीफ करते, हालांकि चित्रा को उनकी आवाज पसंद नहीं आई. जगजीत अपनी गायकी से धीरे-धीरे लोकप्रियता के शिखर की ओर बढ़ने लगे, तो दूसरी ओर चित्रा की गिनती भी मशहूर गायिकाओं में होने लगी. जगजीत सिंह एक दिन जिंगल रिकॉर्ड करने के सिलसिले में देबो प्रसाद के घर पहुंचे, मगर चित्रा ने उनके साथ काम करने से साफ इनकार कर दिया, जिससे जगजीत सिंह के स्वाभिमान को ठेस पहुंची. वे चित्रा से बोले कि उन्हें भी उनकी जरूरत नहीं है. चित्रा को जगजीत सिंह का स्वाभिमानी स्वभाव पसंद आया. दोनों के बीच दोस्ती पनपने लगी, जो वक्त गुजरने के साथ प्यार में बदल गई. चित्रा के पति ने एक दिन उन्हें छोड़ दिया और 1968 में दूसरी लड़की को जीवनसाथी बना लिया.
1990 में जगजीत सिंह के इकलौते बेटे विवेक की 18 साल की उम्र में मौत हो गई.
करियर ऊपर जा रहा था, लेकिन जिंदगी नीचे गिराती जा रही थी
80 के दशक में जगजीत सिंह की व्यस्तता बढ़ने लगी. शो, एलबम, फिल्मों में गाने के कई ऑफर मिलते गए और जगजीत सिंह एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए आगे बढ़ते गए. 1987 में जगजीत सिंह की डिजिटल सीडी एलबम ‘बियोंड टाइम’ आई, इस एलबम को करने वाले जगजीत सिंह पहले भारतीय संगीतकार बने. वहीं, जिंदगी भी अपने गम दिखा रही थी. एक तरफ जगजीत सिंह ऊपर चढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ जिंदगी नीचे गिराती जा रही थी.
18 साल के जवां बेटे को खोया
1990 में जगजीत सिंह के इकलौते बेटे विवेक की 18 साल की उम्र में मौत हो गई. इस घटना ने जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को तोड़कर रख दिया था. कहा जाता है कि विवेक के गुजरने के बाद जगजीत और चित्रा ने गाना छोड़ दिया था. लेकिन, चाहने वालों की दुआ रंग लाई, दोनों ने फिर से माइक थामा और राग छेड़ा, ‘चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश, जहां तुम चले गए.’ इस गीत में दोनों के दर्द झलकते हैं. यह गीत सुपरहिट रही और हमेशा के लिए लोगों की प्लेलिस्ट का हिस्सा बन गई. जगजीत सिंह के गाए कई गाने ‘होश वालों को खबर क्या’, ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंजिल’, ‘कागज की कश्ती’, ‘चुपके-चुपके रात दिन’, ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’, ‘तुमको देखा तो ये खयाल आया’, ‘तुम बिन’ आज भी संगीत प्रेमियों की पहली पसंद हैं.
शायरों की नज्मों को दी आवाज
जगजीत सिंह ने ना सिर्फ गजल गाए, मिर्जा गालिब, मीर, मजाज़, फिराक़ गोरखपुरी जैसे शायरों की नज्मों को आवाज दी. हिंदी, उर्दू, पंजाबी समेत कई भाषाओं में गाने वाले जगजीत सिंह को 2003 में भारत सरकार ने पद्मभूषण से नवाजा था. 10 अक्टूबर 2011 को जगजीत सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया था.
Tags: Entertainment Throwback, Jagjit Singh
FIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 12:54 IST
[ad_2]
Source link