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गुरुवार से शारदीय नवरात्र की शुरूआत हो गई है। इसके साथ ही सीहोर जिले की ग्राम पंचायत रायपुरा के ग्रामीण माता की भक्ति में डूब गए है। बड़ली वाली माता के नाम से प्रसिद्ध मां सामल के मंदिर में भी श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचने लगे है। पूरे विधि-विधान के
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1711 से परिवार करता आ रहा है सेवा
रायपुरा वाली माता सामल का मंदिर जिला मुख्यालय से 10 से 12 किलोमीटर दूर सीहोर-दोराहा मार्ग पर है। यहां पर शारदीय और चैत्र नवरात्र में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी दर्शन के लिए रायपुरा वाली माता के मंदिर में पहुंचते है।
मंदिर के सेवादार माखन सिंह मेवाडा ने बताया कि उनका परिवार सन 1711 से माता की सेवा करता आ रहा है। मंदिर के आसपास चौसठ योगनी का भी स्थान है, जहां पर रात-दिन चौसठ योगनी का पहरा मंदिर पर रहता है।
रायपुरा, सलकनपुर, देवास और शाजापुर में विराजती हैं माता
सेवादार माखन मेवाडा ने बताया कि रायपुरा वाली माता की पूजा सुबह 8 बजे से 10 बजे तक की जाती है। इसके बाद 10 बजे से 12 बजे तक देवास, 12 बजे से 2 बजे तक सलकनपुर और 2 बजे से 4 बजे तक भैसकलाली, शाजापुर में विराजती है।
चारों ही शक्ति पीठों पर इन अलग-अलग समय में माता की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। यह परंपरा कई सालों से आज भी निरंतर चली आ रही है। कई चमत्कार के लिए भी जानी जाती है, बड़ली वाली माता, सेवादार माखन मेवाडा बताते हैं कि मंदिर पर कई चमत्कार भी हुए है।
उन्होंने बताया कि पुराने समय में मंदिर के आसपास सोना-चांदी की खुदाई के लिए अंग्रेज सहित लुटेरों ने बड़ली पर कई बार खुदाई का प्रयास किया। लेकिन सुबह होते ही खुदाई वाली जगह पर अपने आप ही मिट्टी भर जाती थी।
मंदिर के आसपास स्वान (हंस) भी रहते हैं, जो आते-जाते बने रहते हैं। वहीं माता के मंदिर पर कई लोग मनोकामना लेकर आते है। मनोकामना को लेकर बड़ली पर पत्त्थरों का टीला बनाते है। मनोकामना पूर्ण होने पर टीला हटाकर विशेष पूजा अर्चना भी श्रद्धालु करते है।
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