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आईआईटी दिल्ली की ओर से कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि राजधानी दिल्ली के स्थानीय क्षेत्र में फैले हुए वायु प्रदूषण स्रोतों से निपटने के चलते पीएम 2.5 के स्तर में 15 फीसद से अधिक की गिरावट आई है। इस स्टडी का प्रस्तुतिकरण गुरुवार को किया गया।
आईआईटी दिल्ली की ओर से कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि राजधानी दिल्ली के स्थानीय क्षेत्र में फैले हुए वायु प्रदूषण स्रोतों से निपटने के चलते पीएम 2.5 के स्तर में 15 फीसद से अधिक की गिरावट आई है। इस अध्ययन का प्रस्तुतिकरण आईआईटी दिल्ली में गुरुवार को किया गया।
राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों में जर्जर सड़कें, निर्माण कचरे की अवैध तरीके से डंपिंग, कचरे को जलाने, टूटे फुटपाथ वायु प्रदूषण बढ़ाने के प्रमुख कारणों में शामिल हैं। यदि इसको नियंत्रित कर दिया जाए तो प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 के स्तर में कमी आ सकती है। आईआईटी दिल्ली की ओर से कराए एक अध्ययन ‘द इंपैक्ट ऑफ द डिस्पर्स सोर्स प्रोग्राम ऑन लोकल एयर क्वालिटी’ में इन स्रोतों को घटाने पर स्थानीय हवा की गुणवत्ता में होने वाले सुधार संबंधी प्रभावों का आकलन किया गया है।
आईआईटी दिल्ली ने पोर्टेबल कम लागत सेंसर (पीएलसीएस) के माध्यम से कराए गए अध्ययन से जमीनी स्तर पर स्पष्ट प्रभाव सामने आया है। इसे देश के सभी शहरों द्वारा अपनाने की सलाह दी गई है। यह अध्ययन कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम-एनसीआर) के दिशा-निर्देशन में संचालित डिस्पर्स्ड सोर्सेज प्रोग्राम (डीएसपी) पर आधारित है।
यह निकला परिणाम
इस अध्ययन ने डिस्पर्स्ड सोर्सेज प्रोग्राम के फायदों को रेखांकित किया है। इसमें पाया गया कि स्थानीय स्तर पर ही समस्याओं का समाधान करने से पीएम 2.5 की मात्रा में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है। इस अध्ययन में सामने आया कि पीएम 2.5 स्तर जहांगीरपुरी में 26.6 प्रतिशत, रोहिणी में 15.7 प्रतिशत और करोलबाग में 15.3 प्रतिशत तक कमी आई है।
तीन इलाकों को अध्ययन में शामिल किया
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के प्रोफेसर साग्निक डे की देखरेख में यह अध्ययन राजधानी के जहांगीरपुरी, रोहिणी और करोलबाग में किया गया था। अध्ययन के लिए चुने गए स्थानों पर जुलाई 2023 से मार्च 2024 के दौरान 35 पीएलसीएस लगाए गए थे। अध्ययन के तहत सरकार के कॉन्टीनुअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) और पीएलसीएस से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया।
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