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राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर बैंच ने आज फुटपाथ और सड़क के किनारे रह रहे बच्चों को लेकर स्व प्रेरित प्रसंज्ञान लिया हैं। जस्टिस अनूप ढंढ की अदालत ने मीडिया रिपोर्ट के आधार पर प्रसंज्ञान लेते हुए कहा कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना सिर्फ कानूनी ही न
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दरअसल अदालत ने पिछले सप्ताह मीडिया में प्रकाशित एक खब़र पर यह प्रसंज्ञान लिया हैं। खब़र के अनुसार सड़क किनारे रह रही एक विधवा महिला ने अपनी दो बेटियों और दो बेटों की सुरक्षा के लिए बाल कल्याण समिति से गुहार लगाई थी। जिसमें उसने कहा था कि मेरी दो बेटियां बड़ी हो रही हैं। उनके साथ मुझे किसी अनहोनी की चिंता सताती हैं। इसलिए चारों बच्चों को सरकार द्वार संचालित किसी गृह मे रखवा दिया जाए।
लेकिन एक महीने बाद भी महिला के प्रार्थना पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आज अदालत ने केन्द्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए निर्देशित किया कि वे कानूनी प्रावधानों के अनुसार फुटपाथ पर तंबू में रहने वाले बच्चों और महिला की उचित देखभाल, सुरक्षा की ओर ध्यान दे।
सरकार बच्चों से जुड़े कानून की पालना में फेल रही हाई कोर्ट ने आज अपने आदेश में कहा कि भारत में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की जनसंख्या 39 प्रतिशत है, जबकि राजस्थान में वे कुल राज्य जनसंख्या का 43.6 प्रतिशत हैं। राजस्थान राज्य ने बच्चों के समग्र विकास और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई नीतियां बनाई हैं।
बच्चों से संबंधित कानूनों और नीतियों की समीक्षा और क्रियान्वयन के लिए राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना भी की गई थी। वहीं 17 मई, 2013 की अधिसूचना के अनुसार बाल अधिकार मुद्दों और बाल संरक्षण कार्यक्रमों को संबोधित करने के लिए राज्य द्वारा बाल अधिकार विभाग की स्थापना भी की गई थी।
राज्य सरकार के अनुसार, राजस्थान पहला राज्य है जिसके पास बाल अधिकार मुद्दों को संबोधित करने के लिए अलग और स्वतंत्र विभाग है। कई बाल कानून और नीतियां होने के बावजूद राज्य सरकार कानून के अक्षरशः और भावना के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में फेल रही हैं।
राज्य व केन्द्र सरकार के रिपोर्ट की तलब अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि किसी भी बच्चे को भारत के संविधान के तहत दिए गए उसके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने मुख्य सचिव, बाल विकास एवं कल्याण मंत्रालय के सचिव और राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जयपुर के सदस्य सचिव से बालकों को सभी प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाने, सड़क किनारे रहने वाले बालकों को आश्रय गृह, शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए राज्य एवं केन्द्र द्वारा उठाए गए प्रभावी कदमों की रिपोर्ट तलब की हैं।
कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र लोढ़ा, अधिवक्ता सुनील समदरिया,अधिवक्ता सोनल सिंह, एएजी मनोज शर्मा और एएसजी आरडी रस्तोगी को मामले में अदालत को अस्सिट करने के लिए कहा हैं।
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