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असंध रैली मे बसपा सुप्रीमों बहन कुमारी मायावती प्रत्याशी को अपने साथ मंच पर खड़ा करके वोट की अपिल करते हुई।
हरियाणा के असंध विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनावों में एक रोमांचक और कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। जहां बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशी एक-दूसरे को टक्कर देने की तैयारी में हैं, वहीं इनेलो-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार गोपाल राणा भी मजबूती से मैदान में
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इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला और बीएसपी प्रमुख कुमारी मायावती की रैलियों ने जनता के बीच खासा प्रभाव डाला है, जिससे चुनावी समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। राणा परिवार की लंबे समय से असंध की राजनीति में सक्रियता और नरेंद्र राणा के जनसमर्थन को देखते हुए, गोपाल राणा इस बार भी एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं।
असंध रैली में मौजूद बसपा सुप्रीमों मायावती व इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला।
असंध में 2.43 लाख मतदाता, राजपूत समाज का अहम योगदान
असंध विधानसभा क्षेत्र में कुल 2.43 लाख मतदाता हैं, जिनमें से सबसे बड़ा गांव सालवान है। यहां 13,512 मतदाता हैं, जिनमें से 6,000 से अधिक राजपूत हैं। इस गांव का समर्थन इनेलो-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार गोपाल राणा को मिलता हुआ नजर आ रहा है। 2019 के चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी गोपाल राणा के पिता नरेंद्र राणा को इस गांव से 48.53% वोट मिले थे। उनके पांच साल तक सक्रिय रहने का फायदा इस बार उनके बेटे को मिल सकता है। वहीं भाजपा प्रत्याशी योगेंद्र राणा के खिलाफ राजपूत समाज की नाराजगी भी गोपाल राणा के पक्ष में जा सकती है, क्योंकि भाजपा की नीतियों को लेकर असंध के राजपूत समुदाय में असंतोष है।
रैली में मंच पर मौजूद इनेलो बसपा नेता व प्रत्याशी गोपाल राणा।
एससी समाज का समर्थन भी गठबंधन के साथ
असंध में अनुसूचित जाति (एससी) समाज के 55,000 से अधिक वोट हैं, जिनमें से 65% वोट बसपा को मिलते हुए नजर आ रहे हैं। असंध में बसपा का ऐतिहासिक प्रभाव रहा है, चाहे 2014 या 2019 के विधानसभा चुनाव हों या 2024 के लोकसभा चुनाव, बसपा ने यहां हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया है। इस बार भी एससी समाज गोपाल राणा को समर्थन दे रहा है, जिससे उनकी स्थिति और मजबूत होती दिखाई दे रही है।
कांग्रेस की गुटबाजी और जाट वोट बैंक का झुकाव
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो कांग्रेस प्रत्याशी शमशेर गोगी के सैलजा गुट से होने के कारण कांग्रेस के जाट वोट बैंक में विभाजन नजर आ रहा है। कई प्रमुख जाट गांव जैसे दुपेडी, जभाला, जयसिंहपुरा, कबूलरपुर आदि का झुकाव इनेलो-बीएसपी गठबंधन की तरफ होता दिखाई दे रहा है। यह कांग्रेस के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर सकता है, जिससे गोपाल राणा को फायदा मिल सकता है।
पब्लिक का जुड़ाव गोपाल राणा से, सहानुभूति फैक्टर का प्रभाव
गोपाल राणा के समर्थन में अन्य समाजों के लोग भी नजर आ रहे हैं। उनके पिता नरेंद्र राणा पिछले 12 साल से असंध के लोगों के साथ जुड़े हुए हैं और पिछले चुनाव में केवल 1,703 वोटों से हार गए थे। इस हार के बाद भी जनता में उनके प्रति सहानुभूति बनी हुई है, जिसका असर इस बार गोपाल राणा के पक्ष में देखा जा सकता है। इसके साथ ही राणा परिवार ने विधानसभा के कई परिवारों को रिफाइनरी में नौकरी दिलवाने में मदद की, जिससे उनका सीधा जुड़ाव जनता से बना हुआ है।
78 हजार युवा मतदाता
गोपाल राणा खुद युवा हैं, शिक्षित हैं और पेशे से वकील हैं, जिससे वे पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। विधानसभा में 18 से 30 साल के मतदाताओं की संख्या 78,000 है, जिनका समर्थन भी गोपाल राणा को मिल सकता है। उनकी युवा छवि और सक्रिय प्रचार अभियान उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में उभार रहा है।
भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर
इस बार गोपाल राणा इनेलो-बीएसपी गठबंधन के समर्थन से बीजेपी और कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। 2019 में मात्र 1,703 वोटों से हारने के बाद अबकी बार गठबंधन का टिकट मिलने से उनका समर्थन और मजबूत हो गया है। जाट और बसपा के एससी वोट बैंक के साथ गोपाल राणा कांग्रेस और बीजेपी दोनों को कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं। 8 तारीख को होने वाले चुनाव के नतीजे यह तय करेंगे कि कौन सा उम्मीदवार असंध की जनता का प्रतिनिधित्व करेगा।
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