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राधाजी, सीताजी, रुक्मिणीजी आदि सब भगवान की निजी शक्तियां हैं। सामान्यत: भगवान सब जगह रहते हैं, पर वे स्वयं कोई काम नहीं करते। करते हैं तो अपनी शक्तियों को लेकर इन शक्तियों के द्वारा भगवान विचित्र लीलाएं करते हैं। इनकी लीलाओं में अलौकिकता होती है, जिन
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।
भक्ति भी भगवान ही देते हैं
महाराजश्री ने कहा कि जीव परमात्मा का ही अंश है। भगवान की स्वत: सिद्ध वास्तविक आत्मीयता को जाग्रत कर लेता है। तब भगवान की शक्ति उसमें भक्ति रूप में प्रकट हो जाती है। वह भक्ति इतनी प्रबल होती है, कि निराकर भगवान को भी साकार रूप से प्रकट कर देती है। वह भक्ति भी भगवान ही देते हैं। भगवान की भक्ति रूप शक्ति के दो रूप हैं। विरह और मिलन। भगवान विरह भी कराते हैं और मिलन भी कराते हैं। जब भक्त भगवान के बिना व्याकुल हो जाता है, उसकी व्याकुलता की अग्नि में सांसारिक आसक्ति जल जाती है। भगवान प्रकट हो जाते हैं।
सत्य को जाने बिना, साधक से रहा नहीं जाता
डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि ज्ञान मार्ग में पहले भगवान को जानने की प्रबल जिज्ञासा होती है फिर सत्य को जाने बिना, साधक से रहा नहीं जाता। तब ब्रह्म विद्या रूप से जीव के अज्ञान का नाश हो जाता है। और उसका वास्तविक स्वरूप प्रकाशित हो जाता है। भगवान की वह दिव्य शक्ति जिसे वह विरह रूप से भेजते हैं, बहुत विलक्षण होती है। भगवान कहां हैं, क्या करूं, कहां जाऊं, कहां मिलूं, इस तरह पागलों की तरह भक्त व्याकुल हो जाता है। उसकी व्याकुलता से उसके पापों का नाश करके भगवान साकार रूप से प्रकट कर देती है। व्याकुलता से जितना जल्दी काम बनता है, उतना विवेक विचारपूर्वक किए गए साधन से नहीं।
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