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‘सरकार ने हमें भ्रम में रखा था। साल 2018 में सरकार ने जब शिक्षकों का नया कैडर बनाया तब हमें ये नहीं बताया था कि हमारी नई नियुक्ति की जा रही है। हमने अब तक जितनी भी नौकरी की है वो शून्य घोषित कर दी गई है। मुझे भी ये तब पता चला जब मैं 2022 में रिटायर ह
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ये कहना है हुकुमचंद गोयल का, जिन्होंने सरकार से ग्रेच्युटी की रकम हासिल करने के लिए अपने 9 साथियों के परिवार के साथ पूरे दो साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। पहले सभी लोग लेबर कोर्ट गए जहां मई में उनके पक्ष में फैसला हुआ। सरकार ने लेबर कोर्ट का आदेश नहीं माना तो हुकुमचंद ने हाईकोर्ट की शरण ली।
4 सितंबर को जबलपुर हाईकोर्ट ने हुकुमचंद गोयल के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सरकार को तीस दिन में यानी 4 अक्टूबर तक उन्हें ब्याज समेत ग्रेच्युटी की करीब 9 लाख 15 हजार रु.की राशि देने का आदेश दिया है।
खास बात ये है कि हुकुमचंद गोयल की इस लड़ाई से प्रदेश भर के 3 लाख शिक्षकों के लिए ग्रेच्युटी पाने का रास्ता खुल गया है, जिनकी नियुक्ति साल 2018 के पहले हुई है। हुकुमचंद गोयल और बाकी परिवारों ने कैसे ये पूरी कानूनी लड़ाई लड़ी? पढ़िए रिपोर्ट
सरकार ने हमें अंधेरे में रखा- गोयल
हुकुमचंद बताते हैं कि जब 1996 में नौकरी शुरू की तब 600 रु. मानदेय मिलता था। दो साल बाद 1998 में सरकार ने हमें एक निश्चित सैलरी पर नियुक्ति दे दी। तीन साल तक प्रोबेशन पीरियड में रहने के बाद हमें 2001 में स्थायी वर्ग में जगह मिल गई।
मेरी पहली नियुक्ति खंडवा के प्रायमरी स्कूल उदयपुर में हुई थी। इसके बाद 2007 में सरकार ने हमें अध्यापक संवर्ग में नियुक्ति दे दी। इसके 11 साल बाद 2018 में सरकार ने नया शिक्षक कैडर गठित किया और हमें राज्य सरकार का कर्मचारी मानते हुए नियुक्ति दी। मगर, हमें नहीं पता था कि सरकार ने हमारी पुरानी सेवा को शून्य घोषित कर दिया है।
वे कहते हैं कि किसी भी शिक्षक ने इसका विरोध नहीं किया क्योंकि सभी को नौकरी जाने का डर था। सरकार ने शिक्षकों से शपथ पत्र भी भरवाए थे। हम लोग नौकरी करने लगे। मैं 21 जनवरी 2022 को रिटायर हो गया।
रिटायरमेंट के बाद गेच्युटी के लिए दफ्तरों के चक्कर काटे
गोयल कहते हैं कि रिटायर होने के बाद जब मैंने ग्रेच्युटी की राशि पाने के लिए जिला और विकासखंड शिक्षा अधिकारी को अप्लाय किया तो उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया। मैं सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता रहा। सभी लोग नियमों का हवाला देते रहे।
मेरे साथ और भी रिटायर शिक्षक थे जो इसी बात को लेकर परेशान थे। हम सभी लोगों ने 2023 में श्रम न्यायालय में केस दायर करने का फैसला किया। कोर्ट के सामने हमने नियुक्ति के आदेश, बैंक की पासबुक, पीएफ समेत रिटायरमेंट के डॉक्यूमेंट पेश किए।
इस आधार पर न्यायालय ने हम सभी लोगों को ग्रेच्युटी के लिए पात्र मानते हुए 21 मई 2004 को हमारे पक्ष में फैसला सुनाया।
श्रम न्यायालय के आदेश को सरकार ने नहीं माना तो हाईकोर्ट गए
हुकुमचंद कहते हैं कि लेबर कोर्ट के आदेश के बाद तीन महीने तक हमने सरकार के फैसले का इंतजार किया। कोर्ट के आदेश की कॉपी के साथ जिला शिक्षा और विकासखंड शिक्षा अधिकारी को आवेदन दिया। इसके बाद भी उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया, न ही कोई पत्राचार किया।
उनकी तरफ जब लिखित में कुछ भी नहीं मिला, तब मैंने अकेले ने जबलपुर हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट के सामने सारे दस्तावेज पेश किए। हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय के आदेश को सही मानते हुए 4 सितंबर को फैसला सुनाया और 30 दिन में ग्रेच्युटी की राशि देने का सरकार को आदेश दिया।
जानिए बाकी परिवारों के भी संघर्ष की कहानी..
1.दीपांशु गोयल, रिटायर्ड टीचर बंसती गोयल का बेटा
दीपांशु कहते हैं कि मेरी मां बंसती गोयल ने 1998 में शिक्षक की नौकरी जॉइन की थी। पंधाना केबाबली गांव में वह पढ़ाती थीं। साल 2020 में उनका निधन हुआ। इसके बाद पेंशन के रूप में हमें 1700 रु. महीना और 2 लाख रूपए मिले।
मां ने जितने साल नौकरी की उस हिसाब से पैसा कम था। मुझे पता चला कि हुकुमचंद गोयल ने ग्रेच्युटी पाने के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ने वाले हैं। मैं उनसे मिला। उन्होंने मुझसे मां की नौकरी से जुड़े सारे दस्तावेज मांगे। इसके बाद हम सभी लेबर कोर्ट गए वहां से हाईकोर्ट। डेढ़ साल तक हम सभी लोगों ने अपने हक के लिए संघर्ष किया है।
2.रेखा सोलंकी, रिटायर्ड टीचर ज्ञानसिंह सोलंकी की पत्नी
रिटायर्ड टीचर ज्ञान सिंह सोलंकी की पत्नी रेखा कहती हैं कि मेरे पति 1998 से पंधाना ब्लॉक के गोलइमली स्कूल में पढ़ाते थे। तब उनकी सैलेरी 45 हजार रु. महीना थी। साल 2022 में उनका निधन हुआ तो 3 हजार रु. पेंशन और एकमुश्त 2 लाख रु. मिले।
रेखा कहती हैं कि पति के निधन बाद हम बेसहारा हो गए, क्योंकि पंधाना में हमारा खुद का मकान भी नहीं था। दो बेटे हैं, मगर दोनों बेरोजगार है। ऐसे में दूसरे के खेतों में मजदूरी करना पड़ी। कुछ दिनों बाद हुकुमचंद गोयल के संपर्क में आए, उन्होंने हमें ये लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।
3. उमा गोयल, रिटायर्ड टीचर
खंडवा के बड़िया सपना प्रायमरी स्कूल से रिटायर हुईं उमा गोयल कहती हैं कि मुझे रिटायरमेंट के बाद ही पता चला था कि 2018 के पहले मेरी नौकरी शून्य कर दी गई थी और सरकार ने नई नियुक्ति की थी। मैं जब रिटायर हुई तो पेंशन के रूप में केवल 1800 रु. मिले। मुझे अंदाजा नहीं था कि ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी।
मैं भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रही थी, उसी दौरान पता चला कि हुकुमचंद गोयल भी ये लड़ाई लड़ रहे हैं, तो मैं उनसे मिली। वो मेरे क्लास मेट रहे हैं। हम दोनों टीचर की नौकरी 1998 में एक साथ जॉइन की थी। हम लोगों ने लेबर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक एक साथ लड़ाई लड़ी है। साथ में पेशी पर जाते थे। ऐसी एक भी पेशी नहीं रही जिसमें हम लोग उपस्थित न रहे हो।
वकील बोले- हुकुमचंद के फैसले से बाकी लोगों की राह आसान
हाईकोर्ट में हुकुमचंद के केस की पैरवी करने वाले वकील हेमंत भन्नवार का कहना है कि श्रम न्यायालय ने जो फैसला दिया है हाईकोर्ट ने उसे सही माना है। हाईकोर्ट ने स्वीकार किया कि सब कुछ याचिकाकर्ता के पक्ष में होते हुए भी सरकार इसे संज्ञान में नहीं ले रही है तो यह गलत है।
वकील बोले कि ऐसे करीब 3 लाख शिक्षक है जो 2018 से पहले नौकरी में आए थे और सरकार ने उनकी पहले की नौकरी शून्य घोषित की है। ऐसे में हाईकोर्ट का ये फैसला उन सभी लोगों के लिए राहत लेकर आया है। उन्होंने कहा कि हुकुमचंद गोयल जैसे और भी टीचर यदि हाईकोर्ट में केस दायर करेंगे तो कोर्ट उनकी याचिका भी सुनेगा।
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