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दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें थर्ड पार्टी को भ्रूण गोद लेने से रोकने वाले कानून को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा कि ‘भ्रूण व्यापार’ की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह राज्य की नीति है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें थर्ड पार्टी को भ्रूण गोद लेने से रोकने वाले कानून को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा कि ‘भ्रूण व्यापार’ की अनुमति नहीं दी जा सकती। सहायक प्रजनन तकनीक (रेगुलेशन) नियम, 2022 का नियम 13(1)(ए) सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) क्लीनिकों को सभी अप्रयुक्त गैमिट्स (युग्मकों) या भ्रूणों को विशेष रूप से मूल प्राप्तकर्ता के लिए संरक्षित किया जा सकता है और उनका उपयोग किसी अन्य युगल या महिला के लिए नहीं किया जा सकता।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिकाकर्ता डॉ. अनिरुद्ध नारायण मालपानी की ओर से पेश हुए वकील से कहा, ‘इस देश में बड़ी संख्या में बच्चे गोद लेने के लिए मौजूद हैं। भ्रूण के व्यापार की मांग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह राज्य की नीति है। हम राज्य की नीति तय नहीं करते। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।’
वकील मोहिनी प्रिया के जरिए अदालत में दायर याचिका में कहा गया कि कानून इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि प्राप्तकर्ता, जिसके लिए गैमिट या भ्रूण संरक्षित किए गए हैं, उन्हें सक्सेसफुल कंसेप्शन, व्यक्तिगत परिस्थितियों में बदलाव या अन्य चिकित्सा कारणों से अब उनकी आवश्यकता नहीं हो सकती है। याचिका में आगे कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का भी उल्लंघन करता है। अप्रयुक्त गैमिट या भ्रूणों के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाला नियम दंपति के प्रजनन अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि केवल मूल प्राप्तकर्ता के लिए अप्रयुक्त गैमिट या भ्रूण के संरक्षण नियम से जीव्य जैविक सामग्री का अनावश्यक विनाश हो सकता है, जबकि दूसरों के लिए उपयोग की अनुमति से बांझपन के मुद्दों का सामना कर रहे अन्य युगलों या व्यक्तियों को लाभ मिल सकता है। हालांकि पीठ ने कहा, ‘हम सरकार की नीति तय नहीं कर सकते। यह निर्वाचित प्रतिनिधि तय करते हैं। हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते।’ इसके बाद याचिकाकर्ता डॉ अनिरुद्ध नारायण मालपानी ने मामले में केंद्र सरकार के समक्ष अभिवेदन दायर करने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस ले ली।
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