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एक तरफ शहरवासियों की मच्छरों के आतंक से सेहत बिगड़ रही है, तो वहीं दूसरी तरफ नगर निगम ग्रेटर व हेरिटेज के अधिकारी फॉगिंंग करने का दावा कर चैन की नींद सो रहा है। जिनके जिम्मे इसकी जवाबदेही है, वे ही मच्छरदानी तानकर सो रहे हैं। नगर निगम का दावा है कि मच
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जयपुर के प्रतापनगर, मालवीय नगर, सांगानेर, मानसरोवर, दुर्गापुरा, विद्याधर नगर, झोटवाड़ा, टोंक रोड और आमेर आदि में डेंगू का संक्रमण मिला है। यह खुलासा भास्कर की ओर से हकीकत जानने पर हुआ है। ऐसे में अब फॉगिंंग पर सवाल उठने लगा है। जयपुर शहर व ग्रामीण जिले में इस साल अब तक 600 से ज्यादा लोगों में डेंगू का संक्रमण मिल चुका है।
सिर्फ वीआईपी इलाकों में सही तरीके से हो रही फॉगिंंग
सिविल लाइंस, सी स्कीम जैसे पॉश इलाकों में डेंगू के मात्र दो पॉजिटिव मिले हैं। गांधीनगर में सात लोगों के डेंगू मिला है। इससे साफ नजर आ रहा है कि सिर्फ वीआईपी इलाकों में ही सही तरीके से फॉगिंंग हो रही है।
एसीएस के आदेश की पालना नहीं कर रहे निगम के अधिकारी चिकित्सा विभाग की तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने पिछले साल नगर निगम के अधिकारियों को निर्माणस्थल या किसी भी जगह पानी जमा होने पर मच्छर का लार्वा मिलने पर नोटिस देने के साथ ही जुर्माना लगाने के निर्देश दिए थे। फिर भी अधिकारी पालना नहीं कर रहें। नियमानुसार मच्छर जनित बीमारियों के उपनियम 1975 की धारा 4 के भाग दो में निगम को जुर्माने लगाने का प्रावधान है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
विशेषज्ञों के अनुसार सूर्यास्त से पहले और बाद में दो बार फॉगिंंग होनी चाहिए, तभी इसका असर रहता है। फॉगिंंग में इस्तेमाल किए जा रहे केमिकल की लैब में जांच होना अनिवार्य है। जिस इलाके में फॉगिंंग होनी है वहां एक दिन पहले मुनादी करना जरूरी है। लोगों को बताना होगा कि जिस दिन फॉगिंंग होगी, उस दिन अपने दरवाजे और खिड़की बंद रखें। नालियों, कूड़े के ढेर में ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव अनिवार्य है।
निगम की जिम्मेदारी “मच्छर को मारने के लिए फोगिंग करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। जयपुर के क्षेत्रों में अगस्त व सितंबर माह में डेंगू के ज्यादा मामले मिले हैं।” -डॉ.नरोत्तम शर्मा, संयुक्त निदेशक (जोन जयपुर)
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