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माना जा रहा है कि कुमारी सैलजा इस बात से नाराज हैं कि कांग्रेस ने उनके धुर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को टिकट वितरण में खुली छूट दे दी, क्योंकि टिकट पाने वाले ज्यादातर उम्मीदवार हुड्डा के करीबी माने जाते हैं।
हरियाणा विधान सभा की 90 सीटों के लिए 5 अक्तूबर को चुनाव होने हैं लेकिन उससे पहले राज्य के दलित वोटरों को अपनी तरफ रिझाने के लिए राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बीच खींचतान तेज हो गई है। इस खींचतान के केंद्र बिन्दु में अचानक कांग्रेस की महासचिव और चर्चित दलित नेता कुमारी सैलजा आ गई हैं। 61 वर्षीय सैलजा कांग्रेस पार्टी का एक प्रमुख दलित चेहरा हैं लेकिन कथित तौर पर पार्टी से उनके नाराज होने की खबरें चल रही हैं। ऐसी खबरें हैं कि कुमारी सैलजा ने विधानसभा चुनाव प्रचार से दूरी बना ली है। हालांकि, कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा है कि सैलजा 26 सितंबर से चुनाव प्रचार करेंगी।
इस बीच, केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता मनोहर लाल खट्टर ने सैलजा को अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता दे दिया। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर ने विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की राज्य इकाई में कथित अंदरूनी कलह की ओर भी इशारा किया है। अब केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने भी सोमवार को कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए उसे ‘दलित विरोधी’ पार्टी करार दिया और कहा कि उसने कुमारी सैलजा और अशोक तंवर जैसे दलित नेताओं का ‘अपमान’ किया है। शाह ने टोहना में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरक्षण के संबंध में टिप्पणी के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी निशाना साधा और कहा कि अगर कोई आरक्षण की रक्षा कर सकता है तो वह केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं।
कुमारी सैलजा क्यों नाराज?
माना जा रहा है कि कुमारी सैलजा इस बात से नाराज हैं कि पार्टी ने उनके धुर विरोधी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को टिकट वितरण में खुली छूट दे दी, क्योंकि टिकट पाने वाले ज्यादातर उम्मीदवार हुड्डा के करीबी माने जाते हैं। राज्य की 17 आरक्षित (SC) सीटों में से अधिकतर पर हुड्डा के वफादारों को ही टिकट मिला है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सैलजा का सिरसा, अंबाला और हिसार समेत कई जिलों में अच्छा जनाधार है। सैलजा इस चुनाव में आखिरी बार 11 सितंबर को पार्टी उम्मीदवारों शमशेर सिंह गोगी और शैली चौधरी के समर्थन में आयोजित कार्यक्रमों में शामिल हुई थीं।
हरियाणा में दलित वोट 20 फीसदी
ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर कुमारी सैलजा के लिए भाजपा और उसके नेताओं को चिंता क्यों हो रही है, जबकि यह कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी मामला है। इसका सीधा सा जवाब राज्य का करीब 20 फीसदी दलित वोट बैंक हैं। चूंकि कुमारी सैलजा राज्य की चर्चित और दलित शख्सियत हैं, और उनके कांग्रेस में साइडलाइन होने की सियासी चर्चाएं खूब हो रही हैं, इसलिए भाजपा उनके बहाने पूरे दलित समाज को यह बताने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस दलित विरोधी है। भाजपा कुमारी सैलजा का उदाहरण देकर राज्य के 20 फीसदी वोट बैंक में कांग्रेस के खिलाफ हवा बनाने की कोशिश कर रही है।
2019 में कैसा था आरक्षित सीटों का परिणाम
हरियाणा में दलित वोट किसी खास क्षेत्र में केंद्रित ना होकर पूरे राज्य में फैले हैं। इस वजह से उनका प्रभाव पूरे राज्य में है। फतेहाबाद जिले में तो उनकी संख्या 25 फीसदी से भी ज्यादा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर भाजपा दलित वोट में विभाजन कराने में कारगर रही तो उसका सीधे-सीधे फायदा भाजपा को मिल सकेगा क्यों कि 2019 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों की कुल 17 में से 6 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा को 5 और जजपा को चार सीटें मिली थीं। इस साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली 5 सीटों में भी दलित वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई है।
दलित-जाट वोटों में विभाजन चाहती है भाजपा
बड़ी बात ये है कि राज्य में दो लोकसभा सीटें (अंबाला और सिरसा) अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं और इन दोनों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई है। सिरसा से खुद कुमारी सैलजा ने 2.68 लाख वोटों के बड़े अंतर से भाजपा को हराया है। इसलिए भाजपा की कोशिश है कि कुमारी सैलजा के बहाने राज्य के दलित वोटों में विभाजन कराया जाए ताकि पार्टी को जीत दिलाई जा सके। भाजपा दलितों के अलावा जाट वोट बैंक में भी बंटवारा कराना चाह रही है। कांग्रेस का वोट बैंक परंपरागत रूप से जाट और दलित ही रहे हैं और जब-जब इसमें विभाजन होता रहा है, भाजपा को सियासी लाभ मिलता रहा है। भाजपा ने इसी रणनीति के तहत 16 जाट उम्मीदवार उतारे हैं।
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