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कार ने 21 और 22 सितंबर को आयोजित हुई परीक्षा के मद्देनजर राज्य सरकार ने इंटरनेट पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की गई।
झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को किसी भी परीक्षा के दिन इंटरनेट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार बिना कोर्ट की अनुमति के किसी भी परीक्षा वाले दिन इंटरनेट पर रोक नहीं लगाएगा। सरकार ने 21 और 22 सितंबर को आयोजित हुई परीक्षा के मद्देनजर राज्य सरकार ने इंटरनेट पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की गई। जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की खंडपीठ ने मामले पर फैसला सुनाते हुए झारखंड सरकार को फटकार भी लगाई है।
दरअसल पहले कोर्ट को बताया कि झारखंड में परीक्षा में किसी भी तरह की गड़बड़ी से बचने के लिए केवल मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगाई गई है। इसके बाद कोर्ट ने 21 सितंबर (शनिवार) को इंटरनेट सस्पेंड करने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि बाद में सरकार ने ब्रॉडबैंड और अन्य इंटरनेट सुविधाओं को भी निलंबित करने का फैसला लिया तो मामले पर तुरंत सुनवाई की अपील की गई। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और जनहित याचिका के लंबित रहने के जौरान सभी इंटरनेट सुविधाओं पर रोक लगाने के फैसले को न्यायिक आदेश का उल्लंघन बताय।
यह इस कोर्ट में किया गया एक धोखा और गुमराह करने वाली कार्रवाई है। इस कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश से पता चलता है कि पक्षों के बीच सुविधा के संतुलन को ध्यान में रखा गया था लेकिन राज्य की ताजा कार्रवाई ने संतुलन ही गड़बड़ा गया है। कोर्ट ने कहा, अगर कोई आपातकालीन स्थिति थी तो राज्य कोर्ट से संपर्क कर सकती था। लेकिन 21 सितंबर के आदेश के बाद इंटरनेट सर्विस को पूरी तरह से बंद करने का फैसला न्यायिक आदेश को रद्द और संशोधित करने वाला था। कोर्ट ने कहा कि यह प्रथम दृष्टया आपराधिक अवमानना भी है।
इसके बाद कोर्ट ने ब्रॉडबैंड, एफटीटीएच, लीजलाइन के जरिए इंटरनेट सर्विस को तुरंत बहाल करने का आदेश दिया। आदेश पारित करते समय कोर्ट ने इंटरनेट निलंबन के फैसले से जुड़ी सरकारी फाइल को पढ़ा। कोर्ट ने कहा हमें ऐसी कोई सामग्री नहीं जिससे यह पता चल सके कि इंटरनेट सेवा पर रोक लगाने के लिए खूफिया इनपुट क्या था। इसमें हमें दिमाग का इस्तेमाल दिखाई नहीं दिया। “सार्वजनिक हित”, “बड़े पैमाने पर छात्रों की पर्याप्त सुरक्षा”, “निष्पक्ष परीक्षा सुनिश्चित करना” जैसे शब्दों का इस्तेमाल इंटरनेट सर्विस पूरी तरीके से सस्पेंड करना काफी नहीं है। कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को करेगी।
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