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नवजात बच्चों की मौतों के मामले में मप्र भले ही पहले नंबर से दूसरे नंबर पर आ गया हो, लेकिन यह मुद्दा अभी भी चिंता का विषय है। अभी भी 1 हजार में से 35 बच्चे ऐसे हैं जो एक माह भी नहीं जी पाते। अलीराजपुर में मौतें कम हुई हैं लेकिन खरगोन, बड़वानी, अनूपपुर,
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यह मानना है कि नियोनेटोलॉजिस्ट्स का। इंदौर में चल रही तीन दिनी NEOCON (नियोनेटोलॉजी) कॉन्फ्रेंस में एक्सपर्ट्स ने इसे गंभीर मुद्दा माना है। उनका कहना है कि जन्म के समय बच्चा रोया नहीं या सांस नहीं ली यह बर्थ एसफिक्सिया की स्थिति होती है। इसमें बच्चे के ब्रेन में ऑक्सीजन की कम हो जाती है। इससे जन्मजात मंदबुद्धि, दुर्बलता आदि रहती है। बच्चे का दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता।
डॉ. नवीन जैन (त्रिवेन्द्रम) ने बताया कि अब टेक्नोलॉजी ने नवजात और प्री-मैच्योर बेबी केयर काफी एडवांस बना दिया है। अब बच्चों को मां के गर्भ के अंदर जैसा माहौल एनआईसीयू में मिल रहा है। जिस प्रकार बच्चा जब मां के गर्भ में रहता है तो मां की धड़कन और ब्लड फ्लो को सुनता रहता है। वह आराम से सोता रहता है। अब एडवांस इंक्यूबेटर मशीन आ गई है। इसमें मां की धड़कन और ब्लड फ्लो की आवाज को रिकॉर्ड कर प्ले किया जा सकता है। जब प्री-मैच्योर या नवजात बच्चा इसे सुनता है तो उसे मां के गर्भ में होने का एहसास होता है और वह आराम से सोता है। इससे बच्चे को ज्यादा समय तक गर्भ का एहसास मिलता है।
जितनी ज्यादा नींद, उतना ज्यादा ब्रेन का डेवलपमेंट
डॉ. जैन के मुताबिक न्यू बॉर्न बेबी जितना ज्यादा सोता है उसके ब्रेन का डेवलपमेंट उतनी ही तेजी से होता है। अब एनआईसीयू में इस बात का बहुत ध्यान रखा जाता है कि बच्चे की केयर और ट्रिटमैंट ऐसा हो कि उसे अधिक से अधिक नींद मिल सके। अब एंटीग्राफी टेस्ट की मदद से बच्चे के नींद की क्वालिटी का पता किया जा सकता है। इससे यह पता चल जाता है कि ट्रिटमैंट कैसा चल रहा है। आमतौर पर माना जाता है कि कंगारू केयर (छाती पर नवजात शिशु को लेटाना) सिर्फ मां कर सकती है पर वास्तव में ऐसा नहीं है। यह काम बच्चे के पिता और दादा-दादी भी कर सकते है। इससे बच्चे को तेजी से रिकवर करने में काफी मदद मिलती है। इसके लिए नर्सिंग स्टाफ द्वारा विशेष ट्रेनिंग दी जाती है।
मदर का इन्वॉलमेंट बहुत जरूरी
नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम की प्रेसिडेंट डॉ. सुषमा नांगिया के मुताबिक एनसाईसीयू में मदर का इन्वॉलमेंट बहुत जरूरी है। 50% काम डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ का होता है और 50% मां का। मां को इन्वॉल्व करने से रिकवरी तेजी से होगी। यही वजह है कि अब प्राइवेट और सरकारी दोनों एनआईसीयू में मां को अंदर जाने दिया जा रहा है। डॉ. सुषमा ने बताया कि हाल ही में फोरम ने डब्लूएचओ के साथ मिलकर सिक एण्ड स्मॉल बेबी एनआईसीयू के लिए एक गाइड लाइन बनाई है। इसके आधार ट्रेनिंग के लिए एक नया मॉड्यूल बनाया है। ट्रेनिंग में एक एक्सटर्नल ऑब्जर्वर रखने की प्लानिंग है। इससे की यह सही तरह से कंडक्ट की जा सके। इस तरह की ट्रेंनिंग हैंड्स ऑन होनी चाहिए जिससे कि रियल लाइफ केसेस से सीखने को मिलता है।
मृत्यु दर और कम करने की जरूरत
सेक्रेटरी डॉ. जेनिशा जैन के मुताबिक नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में 2019 में न्यू बोर्न बेबी की मृत्यु दर 1 हजार में 22 थी। यह 2022 में घटकर 20 रह गई है। 2023 में 19.11 थी। 1990 से लेकर 2022 तक मृत्यु दर में 173% की गिरावट आई है। इसे और कम करने की जरूरत है। 2030 तक इसे 12 प्रति हजार तक पहुंचाने का लक्ष्य है। मध्य प्रदेश में अभी 35 है जो कि देश के दूसरे राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा है।
पहली बार मां बनने के लिए 21 से 30 की उम्र सबसे बेहतर
डॉ. दिनेश कुमार चिरला (हैदराबाद) के मुताबिक न्यू बोर्न बेबी के इलाज में पिछले 2 दशक में काफी बदलाव आया है। प्रीमैच्योर बच्चों को बचाने के लिए और बेहतर प्रयास करने की जरूरत है। इसके लिए कई सारे प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। हेल्दी बेबी जन्म देने के लिए मदर की एज काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। कम एज की मदर और हाई एज मदर में प्री टर्म बेबी का रिस्क काफी बढ़ जाता है। ऐसे में 21 से 30 साल तक की एज पहले बेबी के लिए परफेक्ट मानी जाती है।
गर्भकाल में हमेशा रहे डॉक्टर के सम्पर्क में
डॉ. श्रीलेखा जोशी ने कहा कि लोगों में अवेयरनेस का होना बहुत जरूरी है। लोगों को यह समझना होगा कि हेल्दी बेबी के लिए मां की हेल्थ अच्छी होना जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि प्रेगनेंसी कन्फर्म होने के बाद हमेशा डॉक्टर के टच में रहना है। मां का हीमोग्लोबिन लेवल हमेशा बेहतर होना चाहिए। सभी वैक्सीनेशन प्रॉपर होना चाहिए। अगर न्यू बोर्न को कोई परेशानी है तो किसी अच्छे एनआईसीयू में जाना चाहिए।
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