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बायो गैस संयंत्रों में जैविक कचरे को बायोगैस में बदलने के बाद बचने वेस्ट को अब ठोस टुकड़ों (लॉग्स) में बदलकर ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके लिए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) में विशेष लॉग मेकिंग मशीन विकस
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बायोगैस संयंत्र के स्लरी प्रबंधन के लिए बनाई गई इस मशीन के डिजाइन को सरकार से पेटेंट मिल गया है। मशीन की कीमत 65 हजार रु. है। यह एक घंटे में 100 से 150 किलो स्लरी को लॉग में बदलने की क्षमता रखती है। यह 4 गुणा 4 फीट क्षेत्र में आसानी से स्थापित की जा सकेगी और संचालन के लिए दो से तीन लोगों की जरूरत होगी।
अभी चुनौती बना हुआ था ये कचरा, अब पर्यावरण संरक्षण भी होगा
विवि के प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय के नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एनएल पंवार के निर्देशन में डॉ. मगा राम पटेल व डॉ. नीलम राठौड़ ने यह मशीन बनाई है। दरअसल, बायोगैस संयंत्रों में गोबर-सब्जियों के वेस्ट सहित अन्य जैविक कचरे को बायोगैस में बदलने के बाद बची हुए स्लरी को अब तक खाद के रूप में ही इस्तेमाल किया जा सकता था।
कई बार तो इसका इस्तेमाल खाद के लिए भी नहीं हो पाता था। ऐसे में इसका निस्तारण चुनौती बन जाता था। इसके साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक साबित होता था। इसी समस्या के निस्तारण के लिए इस मशीन को बनाया गया है।
गोबर को भी लॉग्स में बदल देगी, कोयले जैसा उपयोग
- यह मशीन तरल पदार्थ के रूप में मिले अपिशष्ट (स्लरी) को ठोस टुकड़ों में बदल देती है।
- इससे गाय-भैंस के गोबर को भी लॉग्स में बदला जा सकेगा।
- इन टुकड़ों का इस्तेमाल कोयले की तरह ईंधन के रूप में आसानी से किया जा सकेगा।
- इससे स्लरी की समस्या का निस्तारण तो होगा ही, साथ ही ईंधन का नया स्रोत भी मिल जाएगा। ठोस टुकड़ों को बेचकर आय भी होगी।
- यह मशीन ग्रामीणों के लिए अच्छा विकल्प साबित हाे सकती है।
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