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कथित शराब घोटाले में जमानत पर जेल से बाहर निकले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे की घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा है कि वह दो दिन बाद अपना पद छोड़ देंगे। केजरीवाल ने इसके साथ ही यह भी ऐलान कर दिया है कि जब तक दिल्ली की जनता उन्हें ‘ईमानदारी का सर्टिफिकेट’ नहीं देती वह सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। केजरीवाल का इशारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनादेश का है। उन्होंने ऐसा करके ‘जेल का जवाब वोट’ के अपने दांव को दोबारा चल दिया है।
कुछ ही महीने पहले फेल हो चुका दांव
अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह दिल्ली की जनता से ईमानदारी का सर्टिफिकेट मांगा है उसी तर्ज पर लोकसभा चुनाव के दौरान भी ‘जेल का जवाब वोट’ से मांगा था। 21 मार्च को उनकी गिरफ्तारी के बाद से ही आम आदमी पार्टी ने सलाखों के पीछे उनकी तस्वीर के साथ इस मुहिम का आगाज कर दिया था। खुद केजरीवाल भी सुप्रीम कोर्ट से 21 दिनों की जमानत पाकर बाहर निकले तो इस प्रचार अभियान पर ही फोकस किया। उन्होंने अपनी हर रैली और रोड शो में जनता से कहा कि बीजेपी सरकार ने गलत तरीके और झूठे आरोपों के तहत उन्हें जेल में डाल दिया है और इसलिए जनता उनके पक्ष में वोट करके इसका जवाब दे।
केजरीवाल ने 2 जून को सरेंडर से पहले यह भी कहा कि यदि दिल्ली की जनता उन्हें जेल से निकालना चाहती है तो आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट करे। इससे भी आगे बढ़कर कहा कि यदि दिल्ली की जनता ने उन्हें सातों सीटें जितवा दीं तो वह 4 जून को नतीजे आने के बाद अगले ही दिन जेल से बाहर आ जाएंगे। केजरीवाल ने जनता से दो टूक कहा कि यदि वह उन्हें जेल से निकलवाना चाहती है तो आम आदमी पार्टी को वोट दें। हालांकि, 4 जून को जब नतीजे सामने आए तो आम आदमी पार्टी को जोरदार झटका लगा। दिल्ली में सभी सात सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ने यह कहकर उनसे इस्तीफा मांगा कि दिल्ली की जनता ने उन्हें जेल में रहने का आदेश दिया है।
फिर क्यों चला वही दांव?
केजरीवाल ने एक बार फिर पुराना ही दांव चलते हुए दिल्ली की जनता को फैसला करने को कहा है। केजरीवाल ने कहा है कि जनता को यदि लगता है कि केजरीवाल ईमानदार है तो उनके पक्ष में वोट दे और यदि लगता है कि गुनहगार है तो वोट ना दे। जानकारों का मानना है कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखते हुए केजरीवाल ने ऐसा किया है। असल में 2014 के लोकसभा चुनाव से अब तक दिल्ली की जनता ने एक खास ट्रेंड में वोटिंग की है। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बंपर समर्थन और लोकसभा चुनाव में सातों सीटों पर कमल खिलाया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सातों सीटें हार गई तो 2015 के विधानसभा चुनाव में उसने रिकॉर्ड जीत हासिल की। 2019 में एक बार फिर दिल्लीवालों ने सातों सांसद भाजपा के जितवाए तो अगले ही साल विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 68 सीटें दीं। केजरीवाल की पार्टी मानती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही भाजपा ने सातों सीटों पर कब्जा कर लिया लेकिन पुराने ट्रेंड के मुताबिक विधानसभा चुनाव में वह जीत की पुरानी कहानी दोहरा सकती है।
कैलकुलेट करके लिया रिस्क?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केजरीवाल कोई भी फैसला बेहद सोच-समझकर करते हैं और इस्तीफे के दांव के पीछे भी उनकी एक सोची-समझी रणनीति है। असल में एक तरफ जहां उन्होंने इस्तीफा देकर भाजपा की ओर से उठाए जाने वाले नैतिकता के सवाल को हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि जनता का वोट ईमानदारी का सर्टिफिकेट होगा। उनका मानना है कि यदि उनकी पार्टी एक बार फिर जीत हासिल करती है तो दोबारा मुख्यमंत्री का पद संभाल सकते हैं और तब विपक्ष यहकर उन्हें नहीं घेर पाएगा कि वह शराब घोटाले के आरोपी हैं।
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