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कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव दिव्या मदेरणा राजस्थान में पार्टी की नई पीढ़ी का प्रभावशाली चेहरा हैं। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कमजोर दिख रहीं दिव्या की उम्मीदें इन दिनों उफान पर हैं। वजह है, आलाकमान का उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाना और जम्मू-कश्मीर चुन
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सप्ताह की बातचीत में इस बार पढ़िए दिव्या के सियासी सफर और पुराने छिपे हुए राजनीतिक एजेंडा की पूरी कहानी।
सवाल; आपके दादाजी सीएम क्यों नहीं बन पाए, भंवरी का सच क्या है? जवाब; 25 सितंबर की तरह 1 नाम का प्रस्ताव था जो दादा ने माना, पिता की सियासी हत्या हुई, भंवरी दर्द है इसे छोड़िए।
सवाल: पार्टी ने आपको राष्ट्रीय सचिव के साथ जम्मू-कश्मीर चुनाव का प्रभार भी दिया। इस जिम्मेदारी के मायने क्या? जवाब: आदरणीय राहुल गांधी जी का आभार। मुझ पर भरोसा किया और राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी सौंपी। जिम्मेदारी छोटी हो या बड़ी, महत्वपूर्ण है, क्योंकि आप पर जनता की नजर होती है। क्षमता का परीक्षण भी होता रहता है। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी। सवाल: खबरें हैं कि प्रदेश कांग्रेस का एक ग्रुप नहीं चाहता था कि आप सचिव बनें। दिल्ली तक लॉबिंग हुई। सच्चाई क्या है?
जवाब: मैं राजनीतिक गलियारों की अफवाहों में विश्वास नहीं करती। मुझे कांग्रेस में सभी का समर्थन व सहयोग मिलेगा।
सवाल: 26 साल पहले पीछे चलते हैं। 1998 में आपके दादा कांग्रेस के पोस्टर बॉय थे, रिकॉर्ड 153 सीटें मिलीं। वो सीएम नहीं बन पाए और आज तक कांग्रेस 100 के पार नहीं पहुंच पाई, क्यों? जवाब: 1998 का चुनाव मेरे दादा परसराम मदेरणा के चेहरे पर लड़ा गया था। तभी कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली। सीएम बनाने को लेकर तब भी एक लाइन का प्रस्ताव आया था। 70 विधायक घर आए थे और उन्होंने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने की बात कही। मदेरणा साहब बोले कि मैंने आलाकमान का फैसला स्वीकार कर लिया है। उसके बाद हम 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए। कारण, कांग्रेस का पारंपरिक जाट वोट बैंक इस के बाद ही खिसका।
2003 में पहली बार जाटों ने भाजपा को वोट दिया। पार्टी का अन्य मूल वोट बैंक भी शिफ्ट हुआ और हम 56 सीटों पर ही सिमट गए। तब से एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंस गए। एक वो दौर था और अब देखिए, 25 सितंबर को भी एक लाइन का प्रस्ताव पास करना था… क्या हुआ, सबने देखा है।
सवाल: क्या आप यह कहना चाहती हैं कि कांग्रेस की इस त्रासदी के लिए पूर्व सीएम अशोक गहलोत जिम्मेदार हैं? जवाब: मैं व्यक्ति विशेष का नाम लेकर कुछ नहीं कहना चाहती, लेकिन जो लीडरशिप में रहेगा, जवाबदेही भी उसी की रहेगी। 2023 सहित पिछले चुनावों में हम पश्चिम राजस्थान में परफॉर्म करने में नाकाम रहे। लोकसभा में हम जोधपुर, जालोर, पाली हारे। त्रिकोण के कारण बाड़मेर जीत पाए। हमने पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी में बेहतर प्रदर्शन किया है। पश्चिम में हम नाकाम रहे हैं, क्योंकि जो जातियां एक साथ बैठती थीं, वे अब आमने-सामने हो गई हैं। सवाल: हम इसे कैसे समझें कि आप मानेसर बगावत के समय पायलट के खिलाफ थीं और 25 सितंबर को गहलोत के? जवाब: जहां कांग्रेस है, वहां मैं हूं। मानेसर प्रकरण में भी मैं कांग्रेस के ही पक्ष में खड़ी थी और 25 सितंबर को भी। सचिन पायलट हों या गहलोत, जिन्होंने भी कांग्रेस के खिलाफ काम किया, वहां मैं उनके खिलाफ थी।
सवाल: भंवरी देवी का राजनीतिक सच क्या है? क्या किसी बड़े चेहरे की कोई भूमिका थी? जवाब: इस पर मैं टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी। बहुत कुछ है मेरे भीतर, इसे दफन रहने दीजिए। जिस दंश को हमने सहा, जिन यातनाओं को हमने भोगा, वो शब्दों में बयां नहीं हो सकता। मेरे पिता के माध्यम से मुझ पर राजनीतिक प्रहार हो रहा है। इसलिए मैं चाहती हूं कि इन बातों को अब पीछे छोड़कर मैं जिस जीवन में कदम रख रही हूं, मुझे कम-से-कम इन बातों से नहीं घेरा जाए।
एक बात और कहना चाहती हूं- इस विधानसभा के हों या पिछली, 200 विधायकों में से कौन है जो मेरी तरह 10 साल तक जेल के सजदे करके आए हैं। कितने हैं, जो इस तरह की राजनीतिक हत्या की पैदाइश हैं।
सवाल: 2024 में आपसे 2011 का एक पीड़ादायक सवाल। आपके पिता के साथ जो भी हुआ, उसका पूरा सच क्या है? क्या षड्यंत्र सियासी था? जवाब: कातिल ने कितनी सफाई से धोई है आस्तीन… उसे खबर नहीं थी कि लहू बोलता है… लेशमात्र भी कोई शक-सुबह नहीं है कि मेरे पिता की राजनीतिक हत्या हुई है। 13 वर्ष बाद आप एक पराजित व्यक्ति के साक्षात्कार में सवाल पूछ रहे हैं, ठीक है, लेकिन यह मेरा व्यक्तिगत ही नहीं, किसान राजनीति का भी घाव है। मैं पिता से मिलने 10 साल जेल जाती रही। तीन-तीन घंटे इंतजार करती रही। इसके बाद पिता की बड़ी बीमारी। मैं यातनाओं, जब्र के अंधेरों से और हजार बार हजार मौतें मरकर आईं हूं। 17 अक्टूबर 2021 को पिता की अंतिम यात्रा के बाद मैं सांसारिक जीवन के भय से मुक्त हो गई।
मेरा जुर्म कुछ और था, मेरी सजा कोई और थी… यह सियासी अदब है, यहां पारसाई हराम है…
सवाल: आप पर हमला भी हुआ, आपको क्या लगता है कि इस हमले कि पीछे कौन थे, और ये हमला हुआ क्यों? जवाब– ये हमला पूरी तरह से राजनीतिक था। कारण सबको पता है। एक महिला पर हुआ हमला राजनीतिक असुरक्षा का सबसे बदसूरत उदाहरण था। उस हमले का अब तक एक भी व्यक्ति गिरफ्तार नहीं होना, इस बात का अहसास दिलाता है कि ये असुरक्षा कितनी गहरी है। न्याय का मुझे अब भी इंतजार है। सवाल: कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है। क्या आपको लगता है कि गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते तो क्रेडिट मल्लिकार्जुन खड़गे को नहीं, उन्हें जाता? जवाब- यह उनका राजनीतिक चयन है। गहलोत एनएसयूआई से निकलकर सांसद बने। केंद्र में मंत्री फिर प्रदेश अध्यक्ष बने। तीन बार सीएम रहे, पार्टी के महासचिव भी। अब उन्हें वो सर्वोच्च पद मिल रहा था, जिस पर जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी रहीं। कांग्रेसी के रूप में इससे अधिक सम्मान नहीं हो सकता।
राहुल गांधी और खड़गे जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा के 400 पार के नारे को पस्त कर कम-बैक किया है, राजस्थान के पास एक बड़ा मौका था, जिसे हमने खो दिया।
सवाल- आप बद्री जाखड़ के खिलाफ बोलती रही हैं, शांति धारीवाल पर भी हमलावर हैं। एक और व्यक्ति हैं, हनुमान बेनीवाल, उनसे आपकी क्या अदावत है? जवाब- व्यवस्था से प्रश्न करने वाले स्वर, हमेशा आंदोलित, आक्रोशित, उत्तेजित होंगे। मुझे सही को सही कहने में कोई शंका नहीं हुई। मैं अधिकांश रिश्ते विरासत में लेकर आई हूं। विरासत की राजनीति के कुछ फायदे भी हैं और नुकसान भी। मैं उन्हीं को झेल रही हूं। जो नाम आपने लिए वे सभी एक ही माला के मोती हैं। वे एक ही स्वर में प्रहार करते हैं। वह स्वर एक ही जगह से निकलता है। विचारधारा की लड़ाई में भी भाषा मर्यादित होनी चाहिए। सवाल- मौजूदा स्थिति को देखते हुए राजस्थान में कांग्रेस किस चेहरे के साथ आगे बढ़ सकती है? अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा या कोई और चेहरा? जवाब- मेरी राजनीतिक क्षमताएं इतनी नहीं हैं, जो कह दूं कि ये चेहरा राजस्थान को फतेह कर लेगा। ये निर्णय आलाकमान का है। यदि असेंबली और पार्लियामेंट दोनों की परफॉर्मेंस देखें, तो सचिन जी युवा हैं और प्रोमिसिंग चेहरा हैं। डोटासरा जी अध्यक्ष हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने शेखावाटी में परफॉर्म किया और लोकसभा में भी 11 सीटें आई हैं, लेकिन मारवाड़ में हम दोनों बार प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। फिलहाल हमारी लड़ाई भाजपा से है।
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