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गुजरात में बनाए जा रहे प्रजनन केंद्र के लिए केन्या से आएंगे प्रोजेक्ट चीता के दो वर्ष: भारत को नए जत्थे के लिए केन्या की मंजूरी का इंतजार
गुजरात में बनाए जा रहे प्रजनन केंद्र के लिए केन्या से आएंगे चीते भारत आने के बाद से कूनो उद्यान में आठ चीतों की मौत हो चुकी
नई दिल्ली, एजेंसी। केन्या से चीतों के एक नए जत्थे लाने के लिए समझौता ज्ञापन प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे (समझौता ज्ञापन) अंतिम रूप दे दिया है और अफ्रीकी देश से इस पर मंजूरी का इंतजार है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस के महानिदेशक एस पी यादव ने हाल ही में बताया कि गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में बनाए जा रहे प्रजनन केंद्र के लिए भी चीते केन्या से लाए जाएंगे। चीता को फिर से बसाने के प्रयास के तहत अब तक 20 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया गया है। सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए थे।
भारत आने के बाद से, आठ वयस्क चीतों की मौत हो चुकी है। इनमें तीन मादा और पांच नर चीते थे। भारत में 17 शावकों का जन्म हुआ, जिनमें से 12 जीवित हैं, जिससे कूनो में शावकों सहित चीतों की कुल संख्या 24 हो गई है। वर्तमान में, सभी चीते बाड़ों में हैं। इस पहल को 17 सितंबर को दो साल पूरे हो रहे हैं।
समझौता प्रक्रिया प्रगति पर :
भारत में चीता को बसाने के लिए कार्य योजना में दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और अन्य अफ्रीकी देशों से पांच वर्षों के लिए प्रति वर्ष लगभग 12-14 चीते लाने की बात कही गई है। केंद्र की चीता परियोजना संचालन समिति के सलाहकार यादव ने कहा, ‘समझौता ज्ञापन (एमओयू) प्रक्रिया प्रगति पर है। भारत ने इसे अंतिम रूप दे दिया है और केन्या सरकार को इसे मंजूरी देनी है। इसके बाद दोनों सरकारें एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगी।
बन्नी संरक्षण केंद्र में 16 चीतों की क्षमता :
यादव ने कहा, दक्षिण अफ्रीका के साथ बातचीत जारी है। उसने पहले ही 12 से 16 अतिरिक्त चीतों को चिह्नित कर लिया है। बन्नी में स्थापित किए जा रहे संरक्षण प्रजनन केंद्र के लिए चीते भी केन्या से लाए जाएंगे और उन्हें लाने के लिए सर्दी का मौसम आदर्श समय है। पांच सौ हेक्टेयर के बाड़े में विकसित किए जा रहे संरक्षण प्रजनन केंद्र में 16 चीते रखे जा सकते हैं।
‘ट्रैंक्विलाइजर के जरिए देंगे रोगनिरोधी दवा :
कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में शिकार की कम संख्या के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, जंगल में चीतों की संख्या पूरी तरह से शिकार की आबादी पर निर्भर करती है। अगर शिकार की आबादी उन्हें सहारा नहीं दे सकती तो हम और चीते नहीं छोड़ेंगे। यह हमारे नियंत्रण में है। कूनो के कर्मचारी जंगल में चीतों को ‘ट्रैंक्विलाइजर के जरिए रोगनिरोधी दवा देंगे। अगर वे असफल होते हैं, तो जानवरों को फिर से पकड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
सरिस्का बाघ प्रोजेक्ट में 15 साल लगे :
‘प्रोजेक्ट चीता की प्रगति पर एसपी यादव ने कहा कि जब दक्षिण अफ्रीका ने चीता की पूरी आबादी खो दी थी, तो उन्होंने नामीबिया से जानवरों को आयात किया था। उन्हें व्यवहार्य आबादी स्थापित करने में 20 साल लग गए। भारत में, हमने 2005 में राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में सभी बाघों को खो दिया था। वहां एक स्थिर आबादी को फिर से स्थापित करने में लगभग 15 साल लग गए।
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