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शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग लगातार उठ रही है बांग्लादेश की इस मांग ने अब कानूनी रूप ले लियाऐसे में भारत के पास क्या विकल्प हो सकते हैं
Bangladesh Demands Sheikh Hasina Extradition: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने देश में बड़े पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ा तो वो पांच अगस्त को भागकर भारत आ गई थीं. अपनी सरकार का तख्ता पलट होने के बाद से वो भारत में रह रही हैं. शेख हसीना को उनकी बहन शेख रेहाना के साथ एक सेफ हाउस में रखा गया है. लेकिन बांग्लादेश में लगातार उनके प्रत्यर्पण की मांग उठ रही है. इस मांग ने तब कानूनी रूप ले लिया, जब बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (International Crimes Tribunal, ICT) के चीफ प्रॉसीक्यूटर ने कहा कि शेख हसीना को वापस लाने की कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. दिलचस्प बात यह है कि इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल को 2010 में शेख हसीना की सरकार ने ही बहाल किया था.
इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल में शेख हसीना के खिलाफ नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध के तहत शिकायतें दर्ज की गई हैं. पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ हत्या, यातना, जबरन गायब करने जैसे कई अपराधों के लिए भी कई मामले दर्ज किए गए हैं. इस मामले में अगर बांग्लादेश शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए भारत से औपचारिक तौर पर अनुरोध करता है तो नई दिल्ली के पास क्या कानूनी विकल्प होंगे? भारत सरकार ने अभी तक शेख हसीना को लेकर अपना आधिकारिक रुख भी साफ नहीं किया है. बांग्लादेश के प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू करने के बाद भारत को अपना स्टैंड क्लियर करना होगा.
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कौन कर रहा प्रत्यर्पण की मांग
शेख हसीना का प्रत्यर्पण कराना मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार का आधिकारिक रुख नहीं है. लेकिन बांग्लादेश का मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है. बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने शेख हसीना पर देश में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन को बाधित करने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए उनके प्रत्यर्पण की मांग की है. शेख हसीना की अवामी लीग के मैदान से हटने के बाद अब बीएनपी ही बांग्लादेश की मुख्य राजनीतिक पार्टी बची है. ऐसे में आरोप ये भी लग रहे हैं कि पर्दे के पीछे से बीएनपी ही मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को चला रही है. प्रत्यर्पण की मांग के पीछे आतंकी समूह जमात-उल-मुजाहिदीन का हाथ माना जा रहा है. क्योंकि शेख हसीना के शासन में उसे परेशानियों का सामना करना पड़ा था.
क्या कहता है कानून
1962 के भारत के प्रत्यर्पण अधिनियम के अलावा, वर्तमान मामले में महत्वपूर्ण कानूनी साधन 2013 में शेख हसीना सरकार द्वारा हस्ताक्षरित भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि है. 1962 के प्रत्यर्पण अधिनियम की धारा 12(2) भारत के प्रत्यर्पण कानून के प्रासंगिक हिस्सों का बांग्लादेश के लिए विस्तार करती है. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध करने के लिए 2013 की संधि पर भरोसा कर सकता है. संधि का अनुच्छेद 1 बांग्लादेश और भारत को अपने क्षेत्रों में न केवल उन व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने के लिए बाध्य करता है, जिन्हें प्रत्यर्पणीय अपराध (भारतीय और बांग्लादेशी कानूनों के तहत कम से कम एक साल की जेल की सजा वाला अपराध) करने का दोषी पाया गया है. इस प्रकार, हसीना को प्रत्यर्पित किया जा सकता है, भले ही उसे बांग्लादेशी अदालतों में उनका दोषी साबित होना बाकी हो. उन पर इन अपराधों का आरोप लगाना भारत से उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए पर्याप्त है.
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क्या कहता है 2016 का संशोधन
इसके अलावा, भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 10(3) के तहत, प्रत्यर्पण की मांग करने के लिए, अनुरोध करने वाले राज्य के लिए सक्षम अधिकारी द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट पेश करना पर्याप्त है. अनुरोध करने वाले देश के लिए उनके यहां किए गए अपराध के साक्ष्य साझा करने की कोई जरूरत नहीं है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह 2016 में संधि में किए गए संशोधन के कारण है. मूल संधि में अनुरोध करने वाले देश को गिरफ्तारी वारंट के साथ साक्ष्य साझा करने की जरूरत होती थी. अभियुक्तों के प्रत्यर्पण में तेजी लाने के लिए अपराध के साक्ष्य साझा करने की जरूरत को 2016 में समाप्त कर दिया गया था.
भारत के पास ये विकल्प
अगर बांग्लादेश ऐसा अनुरोध करता है तो शेख हसीना को प्रत्यर्पित करना भारत के लिए कानूनी दायित्व है, हालांकि, भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि में किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण के लिए कुछ अपवादों का उल्लेख है. सबसे पहले, अनुच्छेद 6 में प्रावधान है कि यदि अपराध राजनीतिक चरित्र (राजनीतिक अपवाद) का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है, 1962 प्रत्यर्पण अधिनियम की धारा 31(1) भी इस राजनीतिक अपवाद का प्रावधान करती है. तो, क्या भारत हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार करने के लिए इन प्रावधानों पर भरोसा कर सकता है? उत्तर नहीं है क्योंकि संधि का अनुच्छेद 6(2) विशेष रूप से हत्या और अन्य अपराधों जैसे नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों को राजनीतिक अपराधों से बाहर रखता है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून मान्यता देता है.
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दूसरा, अनुच्छेद 7 अनुरोध किए जाने देश को प्रत्यर्पण अनुरोध ठुकराने करने की इजाजत देता है. यदि उस व्यक्ति पर प्रत्यर्पण अपराध के लिए उसकी अदालतों में मुकदमा चलाया जाएगा. यह प्रावधान भी शेख हसीना पर लागू नहीं होगा, क्योंकि यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्हें भारतीय अदालतों में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.
तीसरा, संधि के अनुच्छेद 8(1)(ए)(iii) में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने से इनकार किया जा सकता है अगर उसे लगता है कि सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उसे प्रत्यर्पित करना अन्यायपूर्ण या दमनकारी होगा. क्योंकि उनके खिलाफ आरोप न्याय के हित में अच्छे विश्वास में नहीं लगाया गया है. यही सिद्धांत 1962 के प्रत्यर्पण अधिनियम की धारा 29 में भी साफ दिखता है. यह प्रावधान शेख हसीना के मामले पर लागू हो सकता है. जिन परिस्थितियों में उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया था और इस तथ्य को देखते हुए कि उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश में मामले चला रहे हैं और उनके खून के प्यासे हैं. यह तर्क दिया जा सकता है कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रतिशोध और राजनीतिक शत्रुता से प्रभावित हैं.
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फेयर ट्रायल न होने का खतरा
अगर वह बांग्लादेश लौटती है, तो यकीनन, उनके निष्पक्ष सुनवाई नहीं होने का खतरा है. इस प्रकार, उनका प्रत्यर्पण दमनकारी और अन्यायपूर्ण होगा. हालांकि यह दलील बांग्लादेशी पक्ष को स्वीकार्य नहीं हो सकता है. क्योंकि वो दावा करेगा कि शेख हसीना को उनके निरंकुश शासन के लिए जिम्मेदार ठहराना न्याय के हित में है. भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि किसी बाध्यकारी न्यायिक तंत्र का प्रावधान नहीं करती है. इस प्रकार, दोनों पक्ष अनुच्छेद 8(1)(ए)(iii) की अपनी कानूनी व्याख्याओं पर कायम रह सकते हैं.
भारत खत्म कर सकता है संधि
भारत के पास एक और कानूनी विकल्प है, जो कड़ा कदम होगा. संधि का अनुच्छेद 21(3) भारत को किसी भी समय नोटिस देकर इस संधि को समाप्त करने का अधिकार देता है. नोटिस की तारीख के छह महीने बाद संधि प्रभावी नहीं होगी. संधि में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कहता हो कि समाप्ति से पहले प्राप्त प्रत्यर्पण अनुरोधों को संधि समाप्त होने के बाद लागू करना होगा. भारत इस विकल्प का इस्तेमाल करेगा या नहीं यह इस पर निर्भर करेगा कि भारत नई दिल्ली की मित्र रह चुकीं शेख हसीना को कितना महत्व देता है. संधि को एकतरफा समाप्त करने से ढाका के साथ उसके संबंधों में खटास आ सकती है. इस कड़े कदम को भारत विभिन्न रणनीतिक और राजनयिक संबंधों के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
Tags: Bangladesh, Bangladesh PM Sheikh Hasina, Sheikh hasina, World news
FIRST PUBLISHED : September 14, 2024, 12:53 IST
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