[ad_1]
दिल्ली हाईकोर्ट ने सशस्त्र सीमा बल (SSB) में नौकरी की तैयारी कर रही महिला उम्मीदवार को गर्भावस्था के बाद अधिक वजन के कारण ‘अनफिट करार’ घोषित किए जाने के मामले में राहत देते हुए उसके हक में फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सशस्त्र सीमा बल (SSB) में नौकरी के लिए गर्भावस्था के बाद अधिक वजन के कारण ‘अनफिट करार’ घोषित की गई महिला उम्मीदवार को राहत देते हुए उसके हक में फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) में नौकरी के लिए मेडिकल टेस्ट के समय गर्भवती महिला उम्मीदवारों को प्रसव के बाद अपेक्षित फिटनेस हासिल करने के लिए दिया जाने वाला छह सप्ताह का वक्त ‘बेहद कम’ है। अदालत ने अधिकारियों से यह भी कहा है कि वे इस मामले में उचित समय देने के प्रावधान की पड़ताल करें।
हाईकोर्ट ने कहा कि गर्भवती महिला उम्मीदवार के लिए अपनी पूरी मेडिकल फिटनेस हासिल करना और गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान बढ़े वजन को छह सप्ताह के भीतर कम करना संभव नहीं हो सकता है।
अदालत को बताया गया कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स में भर्ती मेडिकल जांच के दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 5.3 के अनुसार, यदि गर्भावस्था से संबंधित यूरीन टेस्ट पॉजिटिव है, तो उम्मीदवार को अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और प्रसव के 6 सप्ताह बाद फिर से जांच की जाएगी, बशर्ते रजिस्टर्ड डॉक्टर से फिटनेस का मेडिकल सर्टिफिकेट पेश किया जाए।
जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने कहा, ‘‘गर्भावस्था के बाद महिला उम्मीदवार को अपनी मेडिकल फिटनेस हासिल करने में सक्षम बनाने के लिए दिशानिर्देशों के तहत परिकल्पित 6 सप्ताह की यह अवधि हमारी राय में अत्यंत कम है, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ा चुकी गर्भवती महिला उम्मीदवार के लिए 6 सप्ताह के भीतर अपनी पूर्ण मेडिकल फिटनेस हासिल करना और वजन कम करना हमेशा संभव नहीं हो सकता है। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत भी ड्यूटी से अनुपस्थिति की लंबी अवधि की परिकल्पना की गई है।’’
हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को मेडिकल विशेषज्ञों के परामर्श से दिशानिर्देशों के इस प्रावधान की जांच करने का निर्देश दिया, ताकि ऐसी महिलाओं को पर्याप्त वक्त प्रदान करने पर विचार किया जा सके, जिसके भीतर एक महिला उम्मीदवार को गर्भावस्था के बाद अपनी मेडिकल फिटनेस हासिल करने की आवश्यकता होती है।
क्या था महिला का मामला
हाईकोर्ट उस महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे के तहत सशस्त्र सीमा बल (SSB) में कॉन्स्टेबल (धोबी) के रूप में भर्ती होना चाहती थी, लेकिन उसे अधिक वजन के आधार पर मेडिकल रूप से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। लिखित परीक्षा पास करने के बाद वह अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में मेडिकल टेस्ट के लिए पेश हुई। उसकी मेडिकल जांच टाल दी गई और उसे डिलीवरी के बाद फिर से टेस्ट में पेश होने का निर्देश दिया गया।
महिला की याचिका में कहा गया है कि जब वह डिलीवरी के बमुश्किल चार महीने बाद मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश हुई, तो उसे अधिक वजन के आधार पर ‘अनफिट’ घोषित कर दिया गया और मेडिकल बोर्ड की समीक्षा में भी उसे ‘अयोग्य’ घोषित किया गया, क्योंकि उसका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25.3 पाया गया, जो सीएपीएफ में नियुक्ति के लिए निर्धारित स्वीकार्य सीमा 25 से अधिक था।
मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों से असंतुष्ट होने पर उसने ग्वालियर के एक सरकारी अस्पताल का रुख किया, जहां उसका बीएमआई 24.8 पाया गया, लेकिन अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिसके बाद उसने राहत पाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बेंच ने कहा कि हालांकि उसके पास अधिकारियों के इस कथन पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि चयन प्रक्रिया के दौरान महिला का बीएमआई 25 से अधिक पाया गया था, लेकिन इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि संबंधित उम्मीदवार ने मेडिकल जांच से बमुश्किल चार महीने पहले ही बच्चे को जन्म दिया था और वह नए मेडिकल बोर्ड द्वारा जांच के लिए एक और अवसर दिए जाने की हकदार है। अदालत ने उसकी याचिका स्वीकार कर ली और निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर नए मेडिकल बोर्ड द्वारा जांच की जाए तथा यदि उसका बीएमआई 25 से कम पाया जाता है, तो उसे चार सप्ताह के भीतर कॉन्स्टेबल (धोबी) के रूप में नियुक्त किया जाएगा।
[ad_2]
Source link