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झामुमो से भाजपा में गए पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अब खुलकर डेमोग्राफिक चेंज का मामला उठाने लगे हैं। उन्होंने शुक्रवार को सवाल किया कि पाकुड़ के जिकरहट्टी स्थित संथाली टोला और मालपहाड़िया गांव में अब आदिम जनजाति का कोई सदस्य नहीं बचा है, आखिर वहां
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अगर, वे स्थानीय हैं तो फिर उनका अपना घर कहां है? वे लोग जमाई टोलों में क्यों रहते हैं? किसके संरक्षण में यह गोरखधंधा चल रहा है? चंपाई सोरेन ने सोशल मीडिया पर जारी अपने पोस्ट में कहा है कि इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने के लिए 16 सितंबर को आदिवासी समाज ने पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड में “मांझी परगना महासम्मेलन’ का आयोजन किया है।
इसमें हमलोग समाज के पारंपरिक ग्रामप्रधानों और अन्य मार्गदर्शकों के साथ बैठकर इस समस्या का कारण और समाधान तलाशने पर मंथन करेंगे। चंपाई ने कहा है कि इसी दिन बाबा तिलका मांझी और वीर सिदो-कान्हू के संघर्ष से प्रेरणा लेकर हमारा आदिवासी समाज अपने अस्तित्व तथा माताओं-बहनों और बेटियों की अस्मत बचाने के लिए सामाजिक जन-आंदोलन शुरू करेगा।
उन्होंने पाकुड़ के लोगों का आह्वान किया है कि वे इस महासम्मेलन में शामिल हों। इस बदलाव का हिस्सा बनें। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह करनेवाले वीर शहीदों की धरती पाकुड़ पूरे संथाल परगना को बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष की राह दिखाएगी।
शुतुरमुर्ग की तरह सिर रेत में गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदलती
भाजपा नेता ने कहा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाड़ लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती है। वोट बैंक के लिए कुछ राजनीतिक दल भले ही आंकड़े छुपाने का प्रयास करें, पर वहां के वोटर लिस्ट पर नजर डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी माटी, हमारी जन्मभूमि से हमें ही बेदखल करने में बांग्लादेशी घुसपैठिए काफी हद तक सफल हो गए हैं।
संथाल हूल के दौरान, स्थानीय संथाल विद्रोहियों के डर से अंग्रेजों ने पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण करवाया था, जो आज भी है। इसी टावर में छिप कर अंग्रेज सैनिक, स्वयं बचते हुए, इसके छेद से बंदूक द्वारा पारंपरिक हथियारों से लैस संथाल विद्रोहियों पर गोलियां बरसाते थे। इस वीर भूमि की ऐसी कई कहानियां आज भी बड़े-बुजुर्ग गर्व के साथ सुनाते हैं, लेकिन आज उसी पाकुड़ में हमारा आदिवासी समाज अल्पसंख्यक हो गया है।
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