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लोगों की जान बचाने वाला शहर का दूसरा सबसे बड़ा मेडिकल कॉलेज जयपुरिया खुद के इलाज के लिए तरस रहा है। आरयूएचएस कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज से संबद्ध जयपुरिया की हर छत टपक रही है। 38 साल पुराने भवन की छतों पर पानी निकास की व्यवस्था नहीं होने से वार्डों और आ
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भास्कर इसका कारण जानने पहुंचा तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। अस्पताल के विकास और मरम्मत के लिए आरयूएचएस ने 6 साल पहले 9 करोड़ रुपए मंजूर किए थे, लेकिन मात्र 25 लाख रुपए दिए, वह भी चार साल पहले। ऐसे में भवन जर्जर होता जा रहा है। मौजूदा स्थिति में राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी (आरएमआरएस) की ओर से मिलने वाले फंड पर ही निर्भर है। यहां ओपीडी में रोजाना 2500 से 3000 मरीज आते हैं, जबकि भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 270 से 280 के बीच रहती है।
इंजीनियर से सर्वे के बाद ही हो मेंटेनेंस
एक्सपर्ट विशेषज्ञों का कहना है कि जयपुरिया अस्पताल 38 साल पुराना है। इस कारण छत पर पानी निकासी की व्यवस्था भी पूरी तरह से सही नहीं है। समय पर नालों की सफाई नहीं होना भी एक कारण माना जा रहा है। ट्रॉमा सेन्टर के साथ जुड़ी पुरानी छत से पानी टपकने के कारण फॉल सीलिंग गिरने का खतरा बना रहता है।
ऐसे में छतों पर भरने वाले पानी के निकास की व्यवस्था करने के साथ ही वार्डों, आईसीयू और अन्य जगहों पर लीकेज को ढूंढ़ना चाहिए। इसके अलावा एसएमएस अस्पताल का मुख्य भवन, महिला चिकित्सा सांगानेरी गेट और जनाना अस्पताल चांदपोल में कुछ बिल्डिंग काफी पुरानी हो चुकी है। इसलिए इंजीनियरों की टीम को पहले तो सर्वे करें फिर खामियों की रिपोर्ट सरकार को दें, जिससे जहां भी कमियां हैं, उन्हें दुरुस्त किया जा सके।
साइड इफैक्ट; छतों से टपकने वाले पानी को रोकने के लिए पूरे अस्पताल में बाल्टियां और डस्टबिन लगा रखे हैं। प्रशासन यह कहकर पल्ला झाड़ रहा है कि मरीजों और परिजनों को होने वाली परेशानियों को देखते हुए ऐसा किया है। वार्डों और आईसीयू के पास बनी सीढ़ियों के पास छत से पानी टपकने के कारण फॉल सीलिंग भी उखड़ने लगी है।
“औसत से ज्यादा बारिश होने से छतों से पानी टपकने और सीलन जैसी दिक्कत है। जयपुरिया में छतों से टपकने वाले पानी को रोकने के लिए विशेषज्ञों से राय ले रहे हैं, परेशानी को दिखवाते हैं।” -डॉ.धनन्जय अग्रवाल, कुलपति, आरयूएचएस
“मौजूदा स्थिति के बारे में आरयूएचएस प्रशासन को अवगत करवा दिया है। हमें आरयूएचएस की ओर से मंजूर राशि मिले तो मरम्मत के साथ विकास करने में आसानी होगी।” -डॉ. महेश मंगल,अधीक्षक, जयपुरिया अस्पताल
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