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जिस प्रकार समुद्र अनेक नदियों से भी तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार इंसान भी विश्व की संपूर्ण दौलत पाने के बाद भी सुखी और संतुष्ट नहीं होता। यदि मनुष्य अपने भीतर से लोभ कषाय को निकाल दे, तो जीवन में आए संतोष के धन से सुख प्राप्त हो सकता है। शास्त्रों में
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दिगंबर जैन मंदिर सभागार में बुधवार को लोभ के चक्कर से बचने के उपायों को अपनाने की सलाह देते हुए कहा कि इससे हमारे अंतरंग में उत्तम शौच धर्म उद्घाटित होगा, क्योंकि शुचेर्भावः शौचम् अर्थात् शुचिता का भाव ही उत्तम शौच धर्म है। यह सभी पुण्यकर्मों से मिलता है तो इसकी चिंता व्यर्थ है। मनुष्य को चाहिए कि वह पवित्र मन से व्यापार और सभी कार्य करे धन और यश का लाभ स्वतः ही होने लगता है।
सायंकालीन शास्त्रसभा के माध्यम से धर्मावलम्बियों को दस धर्मों का सार समझा हुए निखिल जैन शास्त्री ने कहा कि जो लालची होगा वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए समय आने पर चोरी, मायाचारी, छल-कपट, हिंसा, परिग्रह, बैर-भाव भी करता ही रहेगा। आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के जीवन दर्शन से कराया अवगत शास्त्र सभा के बाद जैन युवा जागृति ने जैन तंबोला सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत समाधिस्थ संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज के जीवन दर्शन से अवगत कराया।
इससे पहले दिगंबर जैन मंदिर और वासुपूज्य जिनालय दोनों मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना हुई। मूल वेदी पर कलशाभिषेक, सामूहिक जिनाभिषेक, दशलक्षण मंडल विधान पूजन, सामूहिक संगीतम पूजा, ग्रंथराज तत्वार्थ सूत्र का वाचन, सरस्वती पूजन और सामूहिक आरती की गई। विनोद कुमार, राजेश कुमार और मुकेश कुमार बाकलीवाल के अलावा पारसमल महावीर प्रसाद बाबूलाल बड़जात्या ने जैन मंदिर में और शांति देवी, संजय कुमार, अजय कुमार छाबड़ा और रिखबचंद रोहित कुमार बाकलीवाल ने वासुपूज्य जिनालय में शांतिधारा की।
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