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बीसलपुर का बांध 26 साल का हो गया है। 2019 में पहली बार पूरे 18 गेट खोले गए थे।
ऊपर नीला आसमान और नीचे पानी ही पानी। जहां तक नजर जा रही है सिर्फ पानी दिख रहा है। मानसून मेहरबान हुआ तो बीसलपुर डैम लबालब हो गया। जयपुर सहित 4 जिलों के एक करोड़ से अधिक लोगों की प्यास बुझाने वाले इस डैम की खूबसूरती देखते बन रही है। हरी-भरी पहाड़ियों के
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आइए… ड्रोन के नजर से आप भी देखिए बनास नदी और बीसलपुर डैम के खूबसूरत नजारे। इसके देखकर आप कह उठेंगे- हमारा बीसलपुर बांध हमेशा यूं ही छलकता रहे।
26 साल का हुआ बीसलपुर बांध बनास का मतलब ‘वन की आस’, लेकिन रेगिस्तान की नदी ‘बनास’ करोड़ों लोगों की आस है। हरियाली की चादर ओढ़े हुए पहाड़ों के बीच से बहती यह नदी लोगों में खुशियां बांट रही है। टोंक में दो पहाड़ों के बीच इस नदी पर बीसलपुर बांध 26 साल का हो गया है। पांच साल पहले पहली बार इसके पूरे 18 गेट खोले गए थे। इस बार ये रिकॉर्ड तो नहीं टूटा, लेकिन बांध ओवरफ्लो हो गया है। 6 गेटों से पानी छोड़ा जा रहा है।
पांच साल पहले सभी 18 गेट खोले गए थे पांच साल पहले बीसपुर बांध के सारे 18 गेट खोले गए थे। उसके बाद यह केवल एक बार 2022 में खुला और अब इस साल। इस वक्त बांध के छह गेट खुले हैं। सवा पांच सौ किमी का सफर तय करते हुए ये (बनास नदी) कई हेक्टेयर खेत सिंचती है और लाखों लोगों की प्यास बुझाती है। एक समय था, जब इसका पानी चंबल में मिलकर यमुना नदी से होता हुआ बंगाल की खाड़ी में मिल जाता था। अब इसके आंचल पर बना बीसलपुर बांध जैसे राजस्थान के लिए वरदान बन गया है।
बांध के पिछले हिस्से में बनास नदी में दूर-दूर तक पानी दिखाई देता है।
अजमेर संभाग का सबसे बड़ा बांध बीसलपुर बांध अजमेर संभाग का सबसे बड़ा बांध है, जो जयपुर, अजमेर, दौसा और टोंक जिले के एक करोड़ से अधिक लोगों की प्यास बुझाता है। इसलिए बनास नदी यहां जीवनदायिनी कहलाती है।
चारों जिलों के लोग इसके छलकने (ओवरफ्लो) का इंतजार करते हैं। इस साल ये सातवीं बार छलका है। यहां से पानी टाेंक और सवाई माधोपुर होते हुए चंबल नदी में मिलता है। इसके बाद यमुना और गंगा नदियों में मिलकर बंगाल की खाड़ी तक जाता है।
राजस्थान में बीसलपुर बांध अजमेर संभाग का सबसे बड़ा बांध है।
512 किमी का सफर तय करती है बनास बनास नदी राजसमंद जिले में अरावली पर्वतमाला की खमनोर पहाड़ियों में से निकलती है। जिस जगह से ये निकलती है उसे ‘वेरो का मठ’ कहा जाता है। इसके बाद ये राजसमंद, भीलवाड़ा, टोंक, सवाईमाधोपुर जिलों में करीब 512 किमी का सफर तय करती है।
अंत में खंडार के पास चंबल नदी में मिल जाती है। इस जगह पर रामेश्वर धाम बना है। अपने इस सफर के दौरान बनास अपने साथ मेनाली, बेड़च, खारी, वागल, कोठारी और डाई नदियाें को भी मिला लेती है।
बनास के सफर में त्रिवेणी संगम और 150 फीट ऊंचे झरने
- बनास नदी के रोमांचक सफर में आपको कई ऐसे नजारे देखने को मिलते हैं, जिन्हें आप कभी नहीं भूल सकते। यहां त्रिवेणी का संगम और झरने आपको हमेशा याद रहेंगे।
- भीलवाड़ा के बीगोद में बनास, मेनाली और बेड़च का संगम होता है।
- मेनाली नदी पर बेगूं (चित्तौड़गढ़) और बिजौलिया (भीलवाड़ा) की सीमा पर मेनाल झरना है, जो 150 फीट ऊंचाई से गिरता है। भीलवाड़ा में गोवटा डैम बना हुआ है। इसके ओवरफ्लो होने पर पानी बनास में मिलता है।
- कोठारी नदी, कोटड़ी (भीलवाड़ा) तहसील में बनास में मिली है।
- खारी नदी राजसमंद के देवगढ़ से निकलकर आसींद (भीलवाड़ा), बिजयनगर (ब्यावर), केकड़ी होते हुए बीसलपुर बांध में मिलती है। आसींद में खारी बांध बना हुआ है।
- भिनाय से निकलने वाली डाई नदी केकड़ी से होती हुई बांध में मिलती है। डाई पर केकड़ी में लसाड़िया बांध बना है।
राजसमंद में खमनोर की पहाड़ियों से निकलने वाली बनास नदी में पांच जिलों का पानी आता है।
बीसलपुर बांध के किनारे 12वीं सदी का शिव मंदिर बना हुआ है। इसका निर्माण चौहान वंश के विग्रह राज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था।
गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर में 40 फीट ऊंचा शिवलिंग बीसलपुर बांध के किनारे 12वीं सदी का शिव मंदिर है, जिसे गोकर्णेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर चौहान वंश के विग्रह राज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) द्वारा बनवाया गया था।
ऐसी मान्यता है कि यहां रावण ने तपस्या की थी। इस मंदिर में 40 फीट से भी बड़ा शिवलिंग है। शिवलिंग पर गाय के कान का चित्र होने के कारण इसे गोकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है। साल भर यहां दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
बनास नदी के किनारे बोरडा गणेश मंदिर 100 साल से भी पुराना है। बांध की भराव क्षमता पूर्ण होने के बाद यहां बड़ी संख्या में लोग घूमने पहुंचते हैं।
100 साल पुराना बोरडा गणेश बनास नदी के तट पर स्थित बोरडा गणेश मंदिर 100 साल से भी पुराना है। यहां हर बुधवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। बीसलपुर बांध भर जाने से और बनास नदी के इस क्षेत्र का वातावरण और भी रमणीय हो जाता है। इसके चलते, रविवार और अन्य छुट्टियों के दिन लोग यहां घूमने आते हैं और बोटिंग का आनंद लेते हैं।
बीसलपुर बांध के बीच में टापू पर लोग आज भी खेती करते हैं, लेकिन बांध के भरने पर वापस लौट जाते हैं।
बांध के बीच में टापू पर खेती बीसलपुर बांध के बीच में एक टापू स्थित है, जिसे सुजानपुरा टापू के नाम से जाना जाता है। साल 2004 से पहले यहां एक गांव था। जब पहली बार 2004 में बांध भर गया था, तब यहां के लोगों को विस्थापित कर दिया गया था। जब बांध में पानी कम होता है तो ग्रामीण अपनी नावों के जरिए यहां आकर खेती करते थे। मई 2013 में प्रशासन ने टापू पर आकर रहने वाले ग्रामीणों को वापस हटाया।
इसके बावजूद कुछ ग्रामीण अब भी चोरी-छिपे नावों से इस टापू पर जाकर खेती करते हैं और जैसे ही बांध भरने वाला होता है, वे अपना सामान समेटकर वापस अपने घरों में लौट जाते हैं।
बीसलपुर बांध से बनास में छोड़ा जाने वाला पानी सवाईमाधोपुर में बहते हुए चंबल में मिल जाता है। यह मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार और बंगाल से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरता है।
बांध की पूरी भराव क्षमता के बाद गेट खोलकर पानी की निकासी की जा रही है। बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं।
पहली बार सितंबर में खोले गए गेट बांध बनने के बाद से अब तक ये 7वां मौका है, जब बांध से पानी छोड़ा जा रहा है। साल 2019 में बांध के पूरे 18 गेट खोले गए थे। हर बार बांध के गेट अगस्त महीने में खोले गए थे। ये पहली बार है कि बांध के गेट सितंबर महीने में खोले गए हैं। गेट खोलने के लिए स्काडा सिस्टम का इस्तेमाल किया गया।
राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, शाहपुरा और केकड़ी क्षेत्र में तेज बरसात के बाद गंभीरी, जैतपुरा और गोवटा बांधों से पानी की निकासी जारी है। वहीं, त्रिवेणी नदी के साथ ही खारी और डाई नदियों से भी बांध में पानी पहुंच रहा है।
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