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मैं सुबह साढ़े दस बजे से साढ़े पांच बजे तक स्कूल में बच्चों को पढ़ाता हूं। इसके बाद घर वापस आकर मजदूरी पर निकल जाता हूं। अतिथि शिक्षक को जितनी सैलरी मिल रही है, उससे परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल है। वैसे भी हमारे जॉब का कोई ठिकाना नहीं है। आज है त
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ये कहना है पिछले 10 साल से अतिथि शिक्षक के तौर पर सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले मुकेश भास्करे का। खरगोन जिले के रहने वाले मुकेश भी 10 सितंबर को राजधानी में हुए अतिथि शिक्षक आंदोलन में हिस्सा लेने भोपाल आए थे। दरअसल, अतिथि शिक्षक पिछले कई साल से नियमित किए जाने की मांग कर रहे हैं। 10 सितंबर को उन्होंने सीएम हाउस घेरने की कोशिश की।
इस दौरान दैनिक भास्कर ने बात की तो पता चला कि स्कूल में पढ़ाने के अलावा हर अतिथि शिक्षक कहीं न कहीं मजदूरी या दूसरे काम करता है। इसकी एक ही वजह है कि उनकी नौकरी का कोई ठिकाना नहीं है। चुनावी साल में तत्कालीन शिवराज सरकार ने अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना कर दिया था। ये भी भरोसा दिया था कि उनका एग्रीमेंट एक साल का होगा, बीच में गैप नहीं होगा।
शिक्षकों का कहना है कि अप्रैल में उन्हें बगैर बताए सेवा समाप्त कर दी। इसके बाद नए शैक्षणिक सत्र के लिए अभी तक नियुक्तियां नहीं की गई हैं। ऐसे में देश का भविष्य गढ़ने वाले अतिथि शिक्षक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इन आठ मामलों से समझिए, अतिथि शिक्षकों का रोजी-रोटी के लिए संघर्ष…
जून से पढ़ा रहा हूं, अब तक वेतन नहीं मिला
मुकेश भास्कर खरगोन जिले के दगड़िया गांव के रहने वाले हैं। रोजाना 10 किमी का सफर तय कर शासकीय माध्यमिक विद्यालय, मछलगांव में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। भास्कर कहते हैं- मेरे पास डीएड- बीएड की डिग्री नहीं है। घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है।
जैसे-तैसे ग्रेजुएशन किया। अतिथि शिक्षक के तौर पर 2013 से पढ़ाना शुरू किया। पिछले साल सितंबर में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि शिक्षकों का मानदेय बढ़ाया था। 6-7 महीने तक बढ़ा हुआ मानदेय मिला। 18 जून से फिर स्कूल में पढ़ाना शुरू किया है, लेकिन अब तक सैलरी नहीं मिली है। अभी तक अतिथि शिक्षकों की भर्ती ही हो रही है।
सुबह बच्चों को पढ़ाते हैं, शाम को मजदूरी करते हैं
भास्कर ने बताया- जो सैलरी मिलती है, उसमें परिवार का भरण पोषण मुश्किल है इसलिए पार्ट टाइम मजदूरी करता हूं। घर में तीन बच्चे, पत्नी और मां हैं। सभी की जरूरतें हैं। उन्हें पूरी करना मेरी जिम्मेदारी है।
उनसे पूछा कि पार्ट टाइम मजदूरी में क्या करते हैं तो बोले- खेती बाड़ी से जुड़े काम करते हैं। किसी किसान ने बोला कि दवाई छिड़कना है तो वो काम कर देता हूं। खेतिहर मजदूर के रूप में भी काम करता हूं।
उनसे पूछा कि वो पढ़ाते भी हैं और मजदूरी भी करते हैं तो लोग क्या कहते हैं तो भास्कर ने कहा- लोग किसी भी नजर से देखें, मैं अपना कर्म कर रहा हूं। जब पढ़ाने जाता हूं तो एक शिक्षक हूं और जब मजदूरी करता हूं तो एक मजदूर हूं।
जब खेतों में काम नहीं होता तो मकान बनाता हूं
तुलसी राम भी खरगोन जिले के भगवानपुरा ब्लॉक के रहने वाले हैं। पिछले 6 साल से अतिथि शिक्षक के रूप में काम करने वाले तुलसी राम शासकीय एकीकृत विद्यालय, जूनापानी में पदस्थ हैं। तुलसी राम कहते हैं कि पिछले 6 साल से एक ही स्कूल में 6वीं से 8वीं तक के बच्चों को सोशल साइंस पढ़ाता हूं।
मेरे घर से 10 किमी दूर स्कूल है। वहां दिनभर बच्चों को पढ़ाने के बाद शाम को लौटता हूं। दूसरे कामकाज भी करता हूं। क्या करते हैं, ये पूछने पर तुलसी राम ने कहा- खेतों में कपास बीनने, दवाई छिड़कने जैसे कई काम करता हूं। मेरे पास भी आधा एकड़ जमीन है, उसके भी काम करता हूं।
गुजर-बसर करने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। कुछ देर रुक कर कहते हैं- जब खेतों में काम नहीं होता तो मकान बनाने के काम भी करता हूं।
जितना मानदेय है, उसमें घर खर्च भी नहीं चलता
तुलसी राम से पूछा कि शिक्षक होने के साथ-साथ मजदूरी भी करते हैं तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है? वे बोले कि बोलने वाले तो बोलते हैं, अब उन्हें ये बताओ कि जितना मानदेय है, उसमें घर खर्च भी नहीं चलता तो भरोसा ही नहीं करते। अब किसे क्या बताएं?
कल क्या होगा, इस बात की गारंटी नहीं
संजय सिंह वर्ग-1 के शिक्षक हैं। शिवराज सरकार ने इस वर्ग के शिक्षकों का मानदेय 9 हजार से बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया था। संजय सिंह कहते हैं- 9 साल से बच्चों को पढ़ा रहा हूं, मगर आज भी इस बात का भरोसा नहीं है कि कल मेरा क्या होगा?
सरकार रेगुलर टीचर्स की भर्ती कर रही है। जिस दिन मेरी स्कूल में भी रेगुलर टीचर की भर्ती हो जाएगी तो बाहर हो जाएंगे। मेरे कई साथी बाहर हो चुके हैं। उनसे पूछा- परिवार में कौन है तो बोले- माता-पिता, भाई-भाभी, तीन बच्चे हैं। बड़ा बेटा केजी 1 में पढ़ता है।
आगे कहते हैं कि महंगाई के इस दौर में इतनी सैलरी नहीं मिलती कि जरूरतें पूरी हो सके इसलिए मजदूरी करना पड़ती है। लोग मजाक उड़ाते हैं। कहते हैं कि जब मजदूरी ही करना थी तो पढ़ने-लिखने की जरूरत क्या थी? मेरे पास कोई जवाब नहीं होता।
खेती से जुड़ा काम नहीं मिलता तो ईंट भट्टा चलाते हैं
सुरेश कर्मा वर्ग 2 के शिक्षक हैं। कक्षा 6वीं से 8वीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। कहते हैं कि अप्रैल के बाद हमें बाहर कर दिया जाता है। उसके बाद जुलाई या अगस्त में नए सिरे से जॉइनिंग होती है।
पिछले 8 साल से अतिथि शिक्षक के तौर पर पढ़ा रहा हूं। दूसरा काम भी करता हूं। अब सोयाबीन की फसल आएगी तो खेतों में फसल कटाई का काम करूंगा। जब गेहूं की फसल आएगी तो गेहूं कटाई का काम करता हूं।
जब खेती बाड़ी से जुड़ा काम नहीं मिलता तो ईंट भट्टा लगाने का काम करता हूं। सरकार ने तो पिछले साल सितंबर में मानदेय बढ़ाया है। उससे पहले तो जो मानदेय मिलता था, उसमें घर खर्च ही मुश्किल से चलता था।
गर्मी की छुट्टियों में गुजरात चला जाता हूं
झाबुआ जिले के रहने वाले मुकेश गेहलोत वर्ग 1 के शिक्षक हैं। तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों को पढ़ाते हैं। मुकेश कहते हैं- मुझे पढ़ाते हुए 5 साल हो चुके हैं। गर्मी की छुट्टियों में जब स्कूल बंद होते हैं तो राजस्थान के कोटा और गुजरात के वड़ोदरा समेत बाकी राज्यों में मजदूरी के लिए चला जाता हूं।
वहां क्या करते हैं? ये पूछने पर बोले कि बेलदारी से लेकर कंस्ट्रक्शन साइट पर जो भी काम होते हैं, वो करते हैं। अब घर चलाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।
कभी किराना, कभी कपड़े की दुकान पर काम करते हैं
ऐसी ही कहानी शहडोल के भगवान दास की भी है। वे भी वर्ग-1 के टीचर हैं। कहते हैं कि 2016 में जब मैंने अतिथि शिक्षक के रूप में पढ़ाना शुरू किया तो 2500 रुपए मानदेय मिलता था। 2018 में 5 हजार रुपए मिलने लगे, उसमें भी पैसे कट जाते थे।
पिछले साल से 10 हजार रुपए मानदेय मिलना शुरू हुआ है, लेकिन गर्मी की छुट्टियों में मानदेय नहीं मिलता और न ही पढ़ाने का मौका मिलता है। ऐसे में कभी किराने की दुकान तो कभी कपड़े की दुकान पर काम कर लेते हैं। वे कहते हैं कि मेरे घर से ही स्कूल करीब 35 किमी दूर है। सैलरी का आधा पैसा तो आने-जाने में ही खर्च हो जाता है।
ऐसे दो शिक्षक, जिन्होंने सालों तक पढ़ाया मगर अब बेरोजगार हैं
16 साल बच्चों को पढ़ाया, अब पुताई करते हैं
मनोहर बोरयाला खंडवा जिले के रहने वाले हैं। 2008 से बतौर अतिथि शिक्षक उन्होंने खंडवा जिले के अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाया। 2024 में उन्हें अतिथि शिक्षकों के पैनल से बाहर कर दिया। मनोहर कहते हैं- जब मैंने पढ़ाना शुरू किया था, तब 150 रुपए मानदेय मिलता था।
घर से 15 से 20 किमी दूर-दराज के स्कूलों में साइकिल से जाता था। स्कूलों में परमानेंट शिक्षकों की कमी थी तो सभी विषय बच्चों को पढ़ाए। अब मैं बेरोजगार हूं क्योंकि सरकार ने परमानेंट शिक्षक की भर्ती कर ली है।
एक बेटी है, जो आठवीं में है। बेटा पांचवीं में पढ़ता है। घर में मां भी है। ऐसे में अब खेतों में मजदूरी करने के साथ-साथ पुताई और कंस्ट्रक्शन का काम करता हूं। 200 रुपए दिहाड़ी मजदूरी मिलती है, उसी से घर खर्च चल रहा है। लोग मजाक उड़ाते हैं मगर मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
सिंगल पैरेंट हूं, मां की पेंशन से घर चल रहा है
तबस्सुम बानो भोपाल की हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में अपनी मां और 6 साल की बेटी के साथ रहती हैं। पति का इंतकाल हो चुका है। वे कहती हैं कि 2011 से अतिथि शिक्षक के तौर पर बरखेड़ा के सरकारी स्कूल से पढ़ाने की शुरुआत की थी।
मेरा एक्सीडेंट हो गया तो फिर कोहेफिजा के स्कूल में जॉइन किया। उस वक्त 1500 रुपए मानदेय मिलता था। 2023 में आखिरी बार गांधी नगर के हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाया। जैसे ही 2023 का सेशन खत्म हुआ, मुझे कहा गया कि अब इस स्कूल में परमानेंट टीचर जॉइन करेंगे इसलिए आपको फ्री किया जाता है।
अगले सत्र में आपको बुलाएंगे, तब से लेकर अब तक मुझे कोई कॉल नहीं आया। इस बार भी जब अतिथि शिक्षकों के लिए काउंसलिंग और चॉइस फीलिंग हुई तो मैंने अप्लाय किया। जब मैं पढ़ाती थी तो हमें सालाना 25 अंक बोनस के तौर पर मिले थे लेकिन अब वो भी हटा दिए हैं।
तबस्सुम कहती हैं- तीन साल पहले अतिथि शिक्षकों के कार्यक्रम में पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान आए थे। मेरी बच्ची वहां खेल रही थी। उनकी नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने उससे पूछा- पापा क्या करते हैं तो बच्ची ने कहा था कि पापा नहीं हैं। तब उन्होंने कहा था- बेटा तेरा मामा जिंदा है। कोई भी समस्या हो तो मुझे बताना।
मैं समस्या बताने गई थी लेकिन मुझे किसी ने मिलने नहीं दिया। न तो नियमित हुए और न ही विभागीय परीक्षा का वादा पूरा हुआ।
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