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हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 5 अक्टूबर को मतदान होना है और अब 4 सप्ताह से भी कम का वक्त बचा है। इस चुनाव में भाजपा की स्थिति को कमजोर आंका जा रहा है और कई चुनावी सर्वे भी इस ओर इशारा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को हरियाणा में 5 सीटों पर ही जीत मिली थी और 5 पर कांग्रेस जीती थी। इसके बाद से ही कांग्रेस उत्साहित है क्योंकि 2014 के बाद पहली बार वह भाजपा से मुकाबले में टक्कर में दिखाई दी। विधानसभावार देखें तो लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर भाजपा आगे रही तो 42 पर कांग्रेस को बढ़त थी और आम आदमी पार्टी 4 सीटों पर आगे थी।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का तर्क है कि लोकसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर था। इसलिए भाजपा 44 सीटों पर आगे थी और विधानसभा चुनाव में यह स्थिति नहीं रहेगी। इसके लिए 2019 वाली दलील दी जा रही है, जब भाजपा लोकसभा में क्लीन स्वीप करके जीती थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में 40 पर ही सिमट गई थी। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि वही ट्रेंड जारी रहा तो उसे 10 साल बाद हरियाणा में वापसी का मौका मिल सकता है। हालांकि कांग्रेस के लिए यह चुनाव उतना सरल नहीं है, जितना उसे लगता है। इसकी कई वजहें हैं।
कांग्रेस के सामने जाट वोट बैंक के बंटने का भी बढ़ रहा खतरा
भाजपा के लिए यह चिंता की बात है कि लगातार उसके खिलाफ वोट करने वाला जाट वोटबैंक पहले से ज्यादा ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रहा है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में यह भी दिखा कि दलितों का भी बड़ा हिस्सा कांग्रेस की ओर बढ़ा है। फिर भी भाजपा के लिए यह उम्मीद की किरण है कि आईएनएलडी, जेजेपी जैसे दलों के उतरने से जाट वोटबैंक के बंटने का डर है। भले ही बड़े पैमाने पर जाट वोटबैंक एकजुट है, लेकिन स्थानीय स्तर पर बिरादरी से कई उम्मीदवार उतरने का असर तो दिखता ही है। ऐसे में भाजपा के लिए ऐसी कई सीटों पर उम्मीद दिखती है।
गैर-जाट क्षेत्रों में भाजपा को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद
करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला, यमुनानगर जैसे उत्तर हरियाणा के कई जिले पंजाबी बहुल हैं। इसके अलावा गुरुग्राम, फरीदाबाद, रेवाड़ी जैसे दक्षिण के जिलों में बड़ी संख्या में बाहरी आबादी है। इन जिलों में जाटों का भी प्रभाव कम है। रेवाड़ी, गुरुग्राम बेल्ट तो अहीरवाल कहा जाता है। इन इलाकों में आम आदमी पार्टी भी कैंडिडेट उतार रही है। इसके अलावा गैर-जाट वोटों के ध्रुवीकरण से भी भाजपा को उम्मीद है। पार्टी सूत्र मानते हैं कि राज्य में भाजपा को अपने दम पर बहुमत मिलने जैसी उम्मीद तो नहीं है, लेकिन पहले नंबर की पार्टी बनने के चांस अब भी बाकी हैं। एक फैक्टर कांग्रेस में भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच आपसी खींचतान का भी है।
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