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हरियाणा की राजनीति में तीन ‘लाल’ (बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल) का दबदबा रहा है। तीनों के बीच सियासी जंग ऐसी कि तीनों की बारी-बारी से सरकार बनती बिगड़ती रही है। आज उन्हीं कद्दावर नेताओं की विरासत की लड़ाई में परिवार ही सियासी अखाड़ा बन चुका है। चौधरी देवीलाल और उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला के परिवार में लंबे अर्से से घमासान चल रहा है। मौजूदा विधानसभा चुनावों में पूर्व सीएम बंसीलाल की पारंपरिक सीट और पारिवारिक गढ़ रहे भिवानी जिले की तोशाम सीट पर उनके पोते-पोती यानी भाई-बहन आमने-सामने आ गए हैं।
भाजपा ने इस सीट से श्रुति चौधरी को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने उनके खिलाफ श्रुति के भाई अनिरुद्ध चौधरी को मैदान में उतारा है। यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का गृह क्षेत्र है। यहां से 1967 से अब तक कुल 14 बार बंसीलाल या उनके परिवार के किसी सदस्य ने जीत दर्ज की है। बंसीलाल ने कुल सात बार यहां से चुनाव लड़ा था और छह बार जीत हासिल की थी। यहीं से जीतकर बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री भी बने थे। बंसीलाल परिवार से बाहर केवल धर्मबीर सिंह ने दो बार 1987 और 2000 में लोक दल और कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी।
अब बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी और पोते अनिरुद्ध चौधरी आमने सामने हैं। श्रुति अपनी मां किरण चौधरी के साथ हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थीं। कांग्रेस के लिए लगातार चार बार यह सीट जीतने वाली किरण अब भाजपा के टिकट पर राज्यसभा सांसद हैं। किरण चौधरी ने 2005 में पहली बार इस सीट पर हुए उप चुनाव में जीत दर्ज की थी। उससे पहले उनके पति सुरेंद्र सिंह ने उसी साल चुनाव जीता था लेकिन उनके निधन के बाद खाली हुई सीट पर किरण ने विरासत को संभाला था।
किरण चौधरी 2005, 2009, 2014 और 2019 में भी इसी सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायकी का चुनाव जीत चुकी हैं। अब वह भाजपा की राज्यसभा सांसद हैं और इस टिकट पर उनकी बेटी को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। किरण चौधरी के भाजपा ज्वाइन करने के बाद कांग्रेस ने क्रिकेट प्रशासक से नेता बने अनिरुद्ध चौधरी पर दांव आजमाया है। अनिरुद्ध चौधरी बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर महेंद्र के बेटे हैं, जबकि श्रुति बंसीलाल के छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह की बेटी हैं। इस तरह दोनों रिश्ते में भाई-बहन हैं।
48 वर्षीय अनिरुद्ध पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह एलएलबी हैं। वह बंसीलाल के इकलौते पोते हैं। इसलिए राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जाटों का झुकाव उनकी तरफ हो सकता है क्योंकि इससे पहले बंसीलाल की बहू परिवार की तरफ से इकलौती उम्मीदवार थीं। अब जब वह भाजपा में जा चुकी हैं तो उनके समर्थक अनिरुद्ध चौधरी पर भरोसा जता सकते हैं। दूसरी तरफ श्रुति चौधरी को राजनीति का अच्छा खासा अनुभव है। वह साल 2009 में लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बनीं थीं लेकिन 2014 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। साल 2024 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया था।
बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब इस सीट पर बंसीलाल के परिवार में ही घमासान छिड़ा हो। इससे पहले 1998 के चुनावों में बंसीलाल के दोनों बेटे सुरेंद्र सिंह और रणबीर महेंद्र ने एक दूसरे के खिलाफ चुनावी ताल ठोकी थी। रणबीर महेंद्र ने जहां कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था, वहीं सुरेंद्र सिंह ने अपने पिता की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। दोनों परिवारों में तब से ही राजनीतिक लड़ाई है।
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