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डॉक्टर से दरिंदगी – कोर्ट ने कहा, ड्यूटी की कीमत पर विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते
– पुलिस की ओर से एफआईआर में देरी पर नाराजगी भी जताई
05 बजे मंगलवार शाम तक का समय दिया अदालत ने
09 अगस्त को सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर का शव मिला था
14 अगस्त को सीबीआई ने इस मामले की जांच संभाली
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों को तुरंत काम पर लौटने का निर्देश देते हुए कहा कि ड्यूटी की कीमत पर विरोध प्रदर्शन नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने विरोध प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों से कहा कि यदि वे मंगलवार शाम पांच बजे तक काम पर लौट आते हैं तो उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज होने में कोलकाता पुलिस की ओर से की गई 14 घंटे की देरी पर भी नाराजगी जताई।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, पश्चिम बंगाल सरकार को डॉक्टरों को यह विश्वास दिलाने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए कि उनकी सुरक्षा और संरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर उचित कदम उठाए जा रहे हैं। पीठ ने पीड़िता की तस्वीरें सभी सोशल मीडिया मंचों से तत्काल हटाने का भी निर्देश दिया।
लोगों की जरूरतों से अनजान नहीं रह सकते :
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने विरोध प्रदर्शन में शामिल डॉक्टरों को आगाह किया कि यदि वे मंगलवार शाम पांच बजे तक काम पर नहीं लौटे और विरोध प्रदर्शन के नाम पर लगातार ड्यूटी से दूर रहते हैं तो प्रतिकूल अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारी डॉक्टर आम लोगों/मरीजों की जरूरतों से अनजान नहीं रह सकते।
जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक सुरक्षा सुनिश्चित करें :
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, युवा डॉक्टरों को अब वापस काम पर लौटना चाहिए और मरीजों के इलाज में जुट जाना चाहिए। हम जानते हैं कि जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है। सबसे पहले, आप (डॉक्टर) काम पर लौटें। हमने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को आपकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि अब आपको काम पर लौटना होगा अन्यथा प्रतिकूल अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना है।
हड़ताल के चलते 23 मरीजों की जान गई :
शीर्ष अदालत ने यह निर्देश पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा पेश रिपोर्ट के बाद दिया। सिब्बल ने पीठ को रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि डॉक्टरों की हड़ताल के चलते पश्चिम बंगाल में इलाज नहीं मिलने से अब तक 23 लोगों की मौत हो गई है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से पेश इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शनों के चलते राज्य में स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह चरमरा गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने पीठ से कहा कि डॉक्टरों की हड़ताल से मरीजों को बहुत परेशानी हो रही है।
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में बीती नौ अगस्त को ट्रेनी डॉक्टर से दरिंदगी के बाद डॉक्टरों ने सुरक्षा की मांग को लेकर देशभर में विरोध शुरू कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने घटना पर स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद देशभर में डॉक्टरों की हड़ताल खत्म हो गई, लेकिन पश्चिम बंगाल में अब भी डॉक्टरों की हड़ताल जारी है।
अंदर देश पेज के लिए….
सीआईएसएफ कर्मियों को आवास और सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए सरकार
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में तैनात केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के कर्मियों के लिए आवास और सुरक्षा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने इसके लिए राज्य सरकार को सीआईएसएफ के साथ संपर्क स्थापित करने का निर्देश दिया। शीर्ष कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने आरजी कर अस्पताल में डॉक्टरों, पढ़ाई कर रहे छात्रों व अन्य कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सीआईएसएफ की तैनाती की है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को गृह विभाग के एक अधिकारी और सीआईएसएफ के एक शीर्ष अधिकारी को संयुक्त रूप से कार्य करने को कहा। पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर विचार करते हुए यह आदेश दिया। मेहता ने पीठ को बताया कि सीआईएसएफ की एक कंपनी को आरजी कर मेडिकल कॉलेज, कोलकाता नगर निगम स्कूल और इंदिरा मातृ सदन में आरएमए क्वार्टर में ठहराया गया है। उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज की सुरक्षा में सीआईएसएफ की तीन कंपनियां तैनात की गई हैं और महिलाओं सहित कर्मियों को पर्याप्त आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है।
सभी सुविधाएं मुहैया कराईं : सिब्बल
इस पर पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि सीआईएसएफ ने जो सुविधाएं मांगी थीं, उन्हें मुहैया करा दी गई हैं। सिब्बल ने पीठ से कहा कि अधिकांश सीआईएसएफ कर्मी अस्पताल परिसर में रह रहे हैं। पीठ ने कहा, हम राज्य सरकार को शाम पांच बजे तक सभी आवश्यक सामग्री और रात नौ बजे तक सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराने का निर्देश देते हैं।
पिछले सप्ताह केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर राज्य सरकार पर सीआईएसएफ को रसद सहायता देने में सहयोग नहीं करने का आरोप लगाया था। साथ ही कहा था कि सीआईएसएफ कर्मियों को पर्याप्त आवास, परिवहन के साधन और सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जा रहे हैं।
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पोस्टमार्टम के लिए जरूरी दस्तावेज न होने पर चिंता जताई
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
– सीबीआई को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान ट्रेनी डॉक्टर के पोस्टमार्टम के लिए जरूरी दस्तावेज की गैर-मौजूदगी पर गंभीर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने इसे गंभीर बताते हुए सीबीआई को इस पहलू की भी जांच करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने यह आदेश तब दिया, जब बताया गया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजते वक्त ‘चालान यानी संबंधित दस्तावेज नहीं थे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जब शव को पोस्टमार्टम के लिए सौंपा गया, तब उसके साथ चालान दिया होगा, आखिर वह कहां है? पोस्टमार्टम के लिए शव भेजते समय साथ में सामान व सामग्री होगी, आखिर वह सूची कहां है? पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब, बताया गया कि शव के पोस्टमार्टम के समय पीड़ित डॉक्टर के कपड़े सील करके पोस्टमार्टम टीम को नहीं भेजे गए थे। हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि कोर्ट के समक्ष पेश किए गए दस्तावेजों के साथ उक्त दस्तावेज मौजूद नहीं है। इस पर पीठ ने राज्य सरकार को भी उक्त दस्तावेज उपलब्ध कराने के निर्देश दिया।
इससे पहले, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि उन्हें तत्काल दस्तावेज नहीं मिल पाए और वे इस सवाल पर संबंधित पक्ष से बात करेंगे। सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि चालान उनके रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है। पीठ ने रिपोर्ट का निरीक्षण करने के बाद मामले की सुनवाई 17 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी। साथ ही, सीबीआई को मामले में आगे की जांच रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। पीठ ने सीबीआई को नए घटनाक्रमों को रेखांकित करते हुए एक नई स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है।
27 मिनट की सीसीटीवी फुटेज सौंपी :
सीबीआई ने पीठ को बताया कि कोलकाता पुलिस ने 27 मिनट की सीसीटीवी फुटेज की चार क्लिपिंग सौंपी हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने फॉरेंसिक रिपोर्ट पर कुछ संदेह जताते हुए कहा कि सीबीआई ने नमूने एम्स और पश्चिम बंगाल के बाहर की प्रयोगशालाओं में भेजने का फैसला किया है। मेहता ने पीठ से कहा कि जब शव 9.30 बजे मिला तो वह अर्ध-नग्न अवस्था में था। शरीर पर चोट के निशान थे। उन्होंने कहा कि नमूने लेकर पश्चिम बंगाल में केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) को भेज दिए हैं…और यह परिणाम है। उन्होंने कहा कि सीबीआई को इस पर संदेह है, इसलिए सीबीआई ने नमूने एम्स और अन्य सीएफएसएल को भेजने का फैसला किया है। मेहता ने पीठ से कहा कि नमूने किसने लिए, यह प्रासंगिक हो जाता है।
दस्तावेजों, जांच में खामी का मुद्दा उठाया :
वहीं, कलकत्ता उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि दस्तावेजों में कई विसंगतियां हैं और जांच में खामियां हैं। उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम शाम छह बजे के बाद किया गया, जो नियमों और प्रक्रिया के विपरीत है। इसके अलावा एफआईआर दर्ज होने से पहले रात 11.30 बजे अपराध स्थल से जब्ती की गई। यह कानूनी रूप से टिकने योग्य नहीं है। साथ ही कहा कि फॉरेंसिक टीम एफआईआर दर्ज होने के बाद ही घटनास्थल का दौरा कर सकती है। अधिवक्ता ने कहा कि पीड़िता के स्वाब को चार डिग्री सेल्सियस पर ठीक से संरक्षित नहीं किया गया था। पीड़िता के कपड़े पोस्टमार्टम के लिए शव के साथ नहीं भेजे गए थे।
… तो कुछ गड़बड़ है :
इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह दस्तावेज महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें एक कॉलम है जिसमें दिखाया गया है कि शव के साथ कौन से कपड़े और सामान भेजे गए थे। हम इसे देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि दस्तावेज गायब हैं तो कुछ गड़बड़ है। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि ऊपर तीसरा कॉलम देखें, कांस्टेबल को यह (फॉर्म) ले जाना चाहिए। इसे काट दिया गया है। इसलिए शव को जांच के लिए भेजे जाने पर इस चालान का कोई संदर्भ नहीं है। आपको यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि अगर यह दस्तावेज गायब हैं, तो क्या कोई गड़बड़ी है।
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