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लद्दाख मैराथन में खारदुंग ला चैलेंज में दौड़ना दूसरे रेसिंग इवेंट से अलग है। यहां रात के समय सड़कों पर ट्रैफिक बंद रहता है। कहीं-कहीं रोड लाइट्स भी नहीं हैं। ऐसे में हेडलाइट लगा कर दौड़ना पड़ा। जब ढलान आई, कुछ किमी दौड़ने के बाद पैरों के अंगूठे जूतों से
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यह कहना है लद्दाख मैराथन में 52 साल की एज कैटेगरी में गोल्ड जीतने वाले सीकर के पवन कुमार ढाका का। दैनिक भास्कर में पढ़िए पवन कुमार ढाका की कहानी…
सबसे ऊंची मैराथन में गोल्ड पवन बताते हैं- मैंने दुनिया की सबसे ऊंची अल्ट्रा मैराथन मानी जाने वाली खारदुंग ला चैलेंज में अपनी एज कैटेगरी में पहला स्थान हासिल किया है। जबकि ओवरऑल रैंक 15वीं रही। मैंने 72 किमी की मैराथन को 9 घंटे 19 मिनट 11 सेकेंड में पूरा किया। इसके लिए मैंने 2023 में 42 किमी मैराथन दौड़ कर क्वालीफाई किया था। लद्दाख मैराथन में 6 सितंबर को 28 देशों के 6281 रेसर्स ने भाग लिया था।
इंटरनेट से मिली थी जानकारी बकौल पवन, मैं रनिंग का शौकीन हूं। जहां भी मैराथन होती है कोशिश करता हूं जरूर शामिल हो सकूं। इंटरनेट पर सर्च करते-करते मुझे खारदुंग ला चैलेंज के बारे में मालूम चला। पूरी जानकारी जुटाई तो पता चला कि यह दुनिया की सबसे ऊंची मैराथन है। तब सोचा, इसमें शामिल होना चाहिए।
लद्दाख वो जगह है जहां घूमने जाने से पहले भी पर्यटकों का चेकअप होता है। यह तो मैराथन थी। इसमें फिट व्यक्ति ही शामिल हो सकता है।
कई दिन चलते हैं मेडिकल चेकअप पवन ढाका बताते हैं- मैं 26 अगस्त को लेह-लद्दाख पहुंच गया था। खुद को पहाड़ी क्षेत्र में ढालने के लिए वहां 10 दिन तक रुका। रेस में भाग लेने के लिए मेरे कई दिनों तक मेडिकल चेकअप होते रहे। मेडिकल चेकअप में हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, धड़कन और ऑक्सीजन सर्कुलेशन को देखा जाता है। इसके बाद देखा जाता है कि रनर शारीरिक रूप से स्वस्थ है या नहीं। उसे कोई बीमारी तो नहीं है। मेडिकल में अनफिट होने पर डिसक्वालीफाई कर दिया जाता है।मेडिकल में सब नॉर्मल होने के बाद मैराथन में शामिल होने की अनुमति मिली।
जो अनफिट थे, उन्हें बाहर कर दिया ढाका ने बताया- मैराथन के आयोजक हमें 5 सितंबर को दोपहर करीब 12:30 बजे बस के जरिए खारदुंग गांव ले गए। खारदुंग ला में अभी 7 से 10 डिग्री के बीच तापमान है। दौड़ने के लिए हमारा एक बार फिर मेडिकल चेकअप हुआ। जो अनफिट थे, उन्हें बाहर कर दिया गया।
6 सितंबर को सुबह 3 बजे से हमारी रेस शुरू होनी थी। इसके लिए हम रात के 1:30 बजे ही उठ गए। अगर रास्ते में हमें किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो उन्होंने तीन जगह पॉइंट बना रखे हैं। पहला पॉइंट नॉर्थ पुल्लु, दूसरा खारदुंग ला टॉप और तीसरा साउथ पुल्लु पर बना है। हम इन पॉइंट से खाने-पीने और पहनने का सामान ले सकते हैं।
ऑक्सीजन लेवल बहुत कम पवन ढाका बताते हैं- रेस शुरू होने के बाद 3 से 4 किलोमीटर तक वॉक ही करनी होती है और धीरे-धीरे दौड़ना पड़ता है। वहां ठंड बहुत ज्यादा है। तेज दौड़ने के लिए आपको शरीर गर्म करना पड़ता है। खारदुंग ला में रात को जब बर्फबारी होती है तो तापमान माइनस 10 डिग्री से नीचे पहुंच जाता है। रात को सड़कों पर ट्रैफिक बंद होता है, इसलिए हेडलाइट लगाकर ही दौड़ना होता है। खारदुंग ला टॉप की ऊंचाई 17 हजार 800 फीट है, जहां ऑक्सीजन लेवल बहुत कम है। सबको हेडलाइट अनिवार्य होती है और हाइड्रेशन बैग कंपलसरी होता है। आपके पास कम से कम 500 एमएल पानी होना चाहिए।
बाइक पर साथ चलते हैं डॉक्टर ढाका बताते हैं- हर 5 किलोमीटर पर केले, खजूर, पानी और खाने-पीने की चीजें मिलती रहेंगी, जिसको जितनी जरूरत है। ऑर्गनाइजेशन की ओर से वहां पर स्टॉल लगी होती हैं। डॉक्टर्स की टीम आपके साथ चलती है। आगे-पीछे बाइक पर डॉक्टर होते हैं। डॉक्टर्स की टीम को लगता है कि ये रेसर अब नहीं दौड़ सकता तो उसे एंबुलेंस में बैठाकर नीचे ले आते हैं और डिसक्वालीफाई कर देते हैं।
पैरों के अंगूठे बाहर आने लगे थे पवन ढाका के अनुसार, खारदुंग ला टॉप पर 30 किलोमीटर की चढ़ाई है। यहां तक आते-आते आपकी हालत पूरी तरह से खराब हो जाती है। चढ़ाई पर तो ठीक, लेकिन उतार पर दौड़ते हुए जूतों से पैरों के अंगूठे बाहर की ओर निकलने लगे थे। ऐसे में उतरने में बड़ी समस्या आ रही थी।
मेरे आगे 14 लड़के और भी थे, जो लद्दाख के थे। इसके साथ ही दूसरी कंट्री के रनर्स भी थे। इस दौरान 50 प्लस उम्र का सिर्फ मैं ही था और मैंने यह दौड़ निकाल ली।
लद्दाख मैराथन के संस्थापक और रेस डायरेक्टर पद्मश्री चेवांग मोटुप गोबा ने बताया- इस मैराथन को 2012 में शुरू किया था। उस समय 1500 रनर्स ने इसमें भाग लिया था। इसके बाद धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई। लद्दाख मैराथन एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल मैराथन एंड डिस्टेंस रेस यानी AIMS से प्रमाणित है। यह आयोजन हर साल किया जाता है।
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