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हरदा जिले की टिमरनी पुलिस जिसे मर्डर केस मानकर पड़ताल करती रही, 10 साल बाद उसके खुलासे ने सभी को चौंका दिया। जिस युवक के मर्डर का आरोप गांव के पांच लोगों ने भुगता, वह दिल्ली-पंजाब में घूमता रहा।
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आखिरकार पुलिस ने उसे दिल्ली से खोज निकाला। पिता जिस बेटे को पाने के लिए कोर्ट तक गए, वह अब उनके साथ नहीं रहना चाहता है। 20 साल की उम्र में लापता हुआ बेटा 40 साल की उम्र में मिला, लेकिन अब उसका कहना है कि शरीर भले ही पुरुषों जैसा है, लेकिन उसकी मानसिकता महिलाओं की है।
एसपी अभिनव चौकसे ने बताया, जुलाई 2013 में जिले के रहटगांव थाने में एक युवक के गुमशुदगी का प्रकरण दर्ज किया गया था। पुलिस ने युवक की तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला। जनवरी 2017 में गुमशुदा के पिता ने हरदा विशेष सत्र न्यायालय में परिवाद दायर किया, जिसमें गांव के ही 5 युवकों पर बेटे की हत्या कर शव को छिपाने की शिकायत की। कोर्ट ने अगस्त 2017 में पुलिस को विधिवत जांच के आदेश दिए। रहटगांव पुलिस ने पांचों के खिलाफ धारा 302, 201, 506 और 3(2) (v) एससी/एसटी एक्ट में केस दर्ज कर मामले को जांच में लिया।
दैनिक भास्कर ने इस पूरे मामले में जांच अधिकारी और युवक से बात की तो चौंकाने वाली कहानी सामने आई…
पुलिस युवक को 11 साल बाद दिल्ली से खोजकर हरदा लेकर आई।
2019 में पुलिस मामले के खात्मे तक पहुंच गई
पुलिस ने युवक के हत्या के संबंध में काफी छानबीन की, लेकिन कोई सुराग हाथ नहीं लगा। अगस्त 2019 में पुलिस केस के खात्मे तक पहुंच गई। फरियादी का पिता पुलिस कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने खात्मा अस्वीकृत कर पुलिस को विधिवत अग्रिम अनुसंधान व कार्यवाही के लिए निर्देशित किया।
पुलिस के लिए सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि उसे नहीं पता था कि युवक जीवित है या उसकी मौत हो चुकी है। सितंबर 2023 में जांच एसडीओपी (टिमरनी) आकांक्षा तलया को सौंप दी गई। तलया ने मामले में परिजन, ग्रामीण और संदेहियों से फिर से पूछताछ शुरू की।
पिता ने जिन 5 युवकों पर आरोप लगाया, उनके और युवक के बीच पुरानी रंजिश जैसे कोई साक्ष्य नहीं मिले। पुलिस ने एक बार फिर से सर्चिंग में युवक के रहन-सहन और बात करने के तौर-तरीकों को शामिल किया। पूछताछ में पता चला कि उसकी हरकतें थोड़ी अजीब थीं, वह किन्नरों जैसा व्यवहार करता था। यह पता चलने पर पुलिस ने इस दिशा में काम शुरू किया।
एसडीओपी टिमरनी ने थाना प्रभारी रहटगांव, उप निरीक्षक मानवेन्द्र सिंह भदौरिया के नेतृत्व में टीम गठित कर हरदा और आसपास के जिलों की किन्नर टोलियों से फोटो, पंपलेट और हुलिए के आधार पर पूछताछ शुरू की। मुखबिर से सुराग मिला कि जिसे पुलिस मृत मानकर खोज रही है वह युवक जीवित है और दिल्ली में नजर आया है। वह पंजाब में भी अलग-अलग क्षेत्रों में रहा है। इसके बाद पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुंची, यहां युवक को खोजकर 11 साल बाद शनिवार को हरदा लेकर आई।
एसडीओपी तलया ने बताया कि केस संदिग्ध युवकों के ईर्द-गिर्द घूमता रहा। युवक के मिलने के बाद वे इस केस से बाहर निकल पाए।
10 सालों की जांच में बदले 8 विवेचक
एसडीओपी तलया ने बताया कि 2013 से लेकर अब तक गुम युवक और हत्या के प्रकरण में करीब 8 विवेचकों ने मामले की जांच की। जिसमें से तीन डीएसपी स्तर अधिकारी इसमें शामिल रहे। उन्होंने बताया कि उनके पास करीब 8 से 10 महीने पहले यह मामला जांच के लिए आया था।
युवकों से हर तरीके से पूछताछ की, पर उन्होंने जुर्म नहीं कबूला
एसडीओपी तलया ने बताया कि जिन युवकों पर आरोप थे, जांच उनके ईद-गिर्द घूम रही। पुलिस ने संदिग्ध युवकों से हर तरह से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने हत्या करने की बात कबूल नहीं की। पुलिस असमंजस में आ गई। हमें यह समझ नहीं आ रहा था कि यह मामला आखिर गुम इंसान का है या हत्या का। क्योंकि इतनी कोशिश के बाद भी युवक का शव नहीं मिला, न ही युवक ने इस अवधि में कभी भी अपने परिजनों से कोई संपर्क किया।
चूंकि यह मामला जुलाई 2013 में हुआ था, ऐसे में पुलिस को लग रहा था कि हत्या के बाद शव को किसी नदी में बहा दिया गया होगा, जिसके बाद आसपास के थानों में मिले शवों से भी परिजनों के बताए हुलिए के मुताबिक मिलान किया गया, लेकिन वहां पर भी कोई सफलता नहीं मिली।
पुलिस के लिए यह केस चैलेंजिंग था, क्योंकि युवक की न तो लाश मिली थी, न ही उसने इतने सालों में परिवार से संपर्क किया था।
आरोपियों को 10 साल बाद मिली राहत
एसडीओपी तलया ने बताया कि चूंकि इस मामले में हत्या के साथ-साथ एससी एसटी एक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं, जिसमें युवक के परिजनों ने गांव के ही पांच लोगों पर हत्या का आरोप लगाया था, जिसकी जांच में मृतक पक्ष एवं आरोपियों के बीच किसी पुरानी रंजिश के सबूत नहीं मिले थे, लेकिन आरोपियों से शक के आधार पर हर बार पूछताछ की जा रही थी।
जांच के दौरान आरोपियों और ग्रामीणों ने बताया कि मृतक या गुम इंसान का रहन-सहन और बातचीत का तरीका किन्नरों जैसा है, जिससे पुलिस को जांच में नई दिशा मिली और फिर पुलिस ने किन्नरों से संपर्क किया। जिसमें मध्यप्रदेश के एक युवक के दिल्ली में होने की जानकारी लगी। जिसके बाद उसकी फोटो के साथ मुखबिर तंत्र को सक्रिय किया गया। युवक के मिलने से हत्या के मामले में इतने सालों बाद आरोपी बनाए गए पांचों युवकों को राहत मिली।
युवक ने बताया कि उसने परिजनों को त्याग कर अपनी नई दुनिया बना ली
एसपी चौकसे ने बताया कि गुमशुदा युवक बचपन से ही पुरुष होने के बाद भी महिलाओं की तरह व्यवहार किया करता था। वह तीन भाइयों में बीच का भाई था, जिसके चलते परिजन उसकी शादी करना चाहते थे, लेकिन वह शादी नहीं कर अपनी अलग दुनिया में रहने का मन बना चुका था। घरवाले उसे शादी के लिए लड़कियां दिखा रहे थे। शादी का लगातार दबाव बनाने पर वह घर से भागकर हरदा पहुंचा, यहां ट्रेन में सवार होकर नासिक चला गया।
यहां किन्नरों के साथ रहने लगा, लेकिन वहां उसे लैंग्वेज की समस्या आई। इस पर वह मुंबई चला गया। वहां भी वह किन्नरों की अलग-अलग टोलियों में रहा, लेकिन यहां पर भी उसे भाषाई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उसे किन्नर साथियों ने दिल्ली जाने की सलाह दी। वह मुंबई से दिल्ली पहुंचा और वहीं रहने लगा। कुछ दिनों के लिए पंजाब भी गया, लेकिन लॉकडाउन के बाद से करीब पांच सालों से वह दिल्ली में किन्नरों के बीच रह रहा था। उसका कहना है कि उसने परिवार के लोगों को त्यागकर अपनी नई दुनिया बसा ली है। अब वह परिजनों के साथ नहीं रहना चाहता है।
28 साल की उम्र में घर से गायब हुआ युवक करीब 40 साल की उम्र में वापस मिला। पुलिस उसे 11 साल तक खोजती रही।
गांव वालों ने मजाक उड़ाया तो घर से भागा युवक ने बताया कि वह दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों और ट्रेनों में घूमकर मांगने का काम कर रहा था। आगे भी वह परिजनों की जगह दिल्ली में ही अपने जैसे लोगों के साथ रहकर जीवन बिताना चाहता है। उसने बताया कि उसके चाल-ढाल और बातचीत के तरीके को देखकर गांव के लोग उसका मजाक बनाया करते थे, इसी से आहत होकर उसने गांव छोड़कर अपने से मिलते-जुलते लोगों के साथ रहने का निर्णय लिया था। उसने बताया कि उसका शरीर भले ही पुरुषों के जैसा है। लेकिन उसकी मानसिकता महिलाओं के जैसी रही है।
युवक के लापता होने के पांच सालों बाद तक होती रही एलआईसी की किस्त जमा
एसडीओपी तलया ने बताया कि वर्ष 2013 में लापता युवक की एलआईसी की किस्त जमा होने की जानकारी पुलिस को मिली, जिससे पुलिस को शंका हुई कि संभवत: युवक जिंदा होगा, जिसके बाद पुलिस ने एलआईसी ऑफिस और एजेंट से संपर्क किया, जिसमें एजेंट ने बताया कि उसके माता-पिता उसे किस्त जमा करने की राशि दे रहे थे। वहीं, परिजनों का कहना था कि एजेंट खुद ही किश्त जमा कर रहा है। यह भी इस मामले में जांच का आधार बना।
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