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जैन समाज आज संवत्सरी पर्व मना रहा है। इस पर्व को लेकर आज दिन भर धर्म आराधना होगी और त्याग-तपस्या का आज खास दिन है। वैसे पर्युषण पर्व शुरू हुए है तब से तप आराधना का क्रम चल रहा है। संवत्सरी को लेकर उदयपुर के हिरणमगरी सेक्टर चार स्थित जैन संस्थान में च
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सवाल : संवत्सरी क्या है साध्वी डॉ.संयमलता : क्षमा का दिन है। यह बड़ा पर्व है। इस दिन त्याग-तपस्या की जाती है। छोटे से लेकर बड़े सब उपवास करते है। शाम को संवत्सरी प्रतिक्रमण किया जाता है और उसके बाद सबसे क्षमायाचना की जाती है।
सवाल : क्षमायाचना के बारे में समझाए साध्वी डॉ.संयमलता : संवत्सरी महापर्व पर एक-दूसरे के साथ वैर और विरोध को भुलाकर गले लगाना है। जिनके साथ हमार झगड़ा है उनसे क्षमायाचना करनी है। कहते है गलती होना तो इंसान की प्रकृति है और गलती को माफ नहीं करना विकृति है। गलती को माफ कर दे यह हमारी संस्कृति है। ऐसी हमारी संस्कृति हमे विरासत में मिली है। इसलिए संवत्सरी के दिन छोटे बच्चे से लेकर बड़े सब पैर छूकर क्षमायाचना करेंगे। यही क्षमायाचना है।
सवाल : संवत्सरी पर्व क्या सिखाता है साध्वी डॉ.संयमलता : मै कहती हूं रोड पर ओवरब्रिज बनाना आसान है, लकड़ी का पुल बनाना आसान है परंतु दो दिलों के बीच मैत्री का पुल बनाना बड़ा कठिन है। वो मैत्री का पुल आज इस पर्व पर बनाएंगे। संवत्सरी की साधना के साथ शाम को प्रतिक्रमण करने के बाद 84 लाख जीव यौनियों से क्षमायाचना करेंगे। सभी से प्रेम रखे। ये पर्व हमे यही सिखाता है कि सबके साथ हम दिल से दिल मिलाकर चले।
सवाल : ‘खामेमि सव्वे जीवा’ का मतलब क्या है साध्वी डॉ.संयमलता : इसका अर्थ है कि मैं सभी जीवित प्राणियों को क्षमा करता हूं। संवत्सरी के दिन लोग अपने कर्मों, शब्दों, या कार्यों से किसी को ठेस पहुंचाने पर क्षमा मांगते हैं। सरल शब्दों में कहे तो इस दुनिया में जितने भी प्राणी है उन सबके लिए हमारा प्रेम हो। हमे किसी के साथ वैमनस्यता, ईर्ष्या और द्वेष नहीं रखना है। यह संवत्सरी पर्व हमे यहीं सिखाता है कि हम हर व्यक्ति के साथ कदम से कदम मिलाकर चले। हाथ से हाथ मिलाकर नहीं दिल से दिल मिलाकर चले।
पर्युषण पर्व के दौरान सेक्टर चार में नाटिका का मंचन करने वाली टीम
सवाल : वास्तव में क्षमायाचना किससे करनी चाहिए साध्वी डॉ.संयमलता : बड़ा हो या छोटा। भाई हो या बहन। पति हो या पत्नी। कोई भी हो आपस में किसी के साथ झगड़ा है उनसे क्षमा मांगनी है। हमे क्षमा उससे तो मांगनी ही चाहिए जिसके साथ हमारा झगड़ा है। तब ही सच्ची संवत्सरी मनाई जाएगी।
सवाल : नई पीढ़ी को लेकर क्या कहेंगे साध्वी डॉ.संयमलता : शिक्षा को लेकर आज कई प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो गए है लेकिन जीवन में सबसे पहले संस्कारों की शिक्षा जरूरी है। शिक्षा के बोझ में संस्कार दब जाते है जीवन में आगे बहुत समस्याएं आती है। परिवार में नारी शिक्षा ही नहीं संस्कार भी देती है। बालक को शिक्षित करने से पहले पालक को शिक्षित और संस्कारित होना होगा। हमें संकल्प करना होगा, तब ही आने वाली पीढ़ियां, आने वाले समाज, आने वाले समय में घर, समाज व राष्ट्र को सुरक्षित व संस्कारित बना सकते हैं।
उदयपुर के सेक्टर 4 में चातुर्मास कर रही साध्वी डॉ.संयमलता और अन्य साध्वीवृंद
उदयपुर के सेक्टर 4 में इनका है चातुर्मास उदयपुर के हिरणमगरी सेक्टर 4 में श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ संयमलता, डॉ अमितप्रज्ञा, कमलप्रज्ञा और सौरभप्रज्ञा महाराज का चातुर्मास है। यहां बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं धर्म वाणी सुनने आते है और तपस्याएं कर रहे है। यहां छोटे बच्चों में संस्कार को लेकर भी प्रतियोगिताओं से लेकर कई आयोजन हो रहे है।
जानिए साध्वी डॉ संयमलता के बारे में डा. संयमलता का जन्म मध्यप्रदेश के जावरा में हुआ था। उन्होंने 16 साल की उम्र में चैन्नई में दीक्षा ले ली। वे गुरु जैन दिवाकर चौथमल महाराज और गुरुणी मालवसिंहनी कमलावतीजी के साथ आगे बढ़ी। डा. संयमलता ने हिंदी, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल आदि भाषाओं में अध्ययन किया। उन्होंने कई राज्यों में धर्म यात्राएं की। साध्वी को जैन समाज में मानवता की उपयोगिता विषय पर 2022 में डॉक्टरेट की उपाधि से अलकृत किया गया।
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