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बात 1989-90 की है। दिसंबर 1989 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनती है। चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर उस सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाए जाते हैं। तब ताऊ देवीलाल ने अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया। उस वक्त देवीलाल महम से विधायक थे। उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद महम सीट से इस्तीफा दे दिया था। देवीलाल 1982, 1985 और 1987 में महम से विधानसभा चुनाव जीते थे। उनके इस्तीफे के बाद जब महम सीट पर 1990 में उप चुनाव होने लगे, तब जनता दल की तरफ से ओमप्रकाश चौटाला उम्मीदवार बनाए गए लेकिन वहां की खाप पंचायत इसका विरोध करने लगी।
महम की 32 बिरादरी की खाप पंचायत ने फैसला किया कि देवीलाल के भरोसेमंद और हरेक चुनाव में उनके इंचार्ज रहे आनंद सिंह दांगी को मैदान में उतारा जाए। महम से करीब ढाई हजार किसानों की फौज उप प्रधानमंत्री देवीलाल को यह बताने नई दिल्ली पहुंच गई और हरियाणा भवन में डेरा डंडा डाल दिया। तब देवीलाल ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह इसे खाप का फैसला नहीं मानते। देवीलाल ने कहा कि वह महम आकर ही इस मुद्दे पर बात करेंगे।
महम का वहम निकालने आए हैं
जब देवीलाल महम पहुंचे तो कहा गया कि ‘महम का वहम’ निकालने आए हैं। पंचायत को यह बात चुभ गई। ना तो देवीलाल ने खाप की बात मानी और ना ही खाप ने उप प्रधानमंत्री देवीलाल की बात मानी। खाप ने आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतार दिया। उस वक्त दांगी हरियाणा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष थे। उन्हें यह पद भी देवीलाल के आशीर्वाद से ही मिला था। लेकिन अब दोनों में 36 का आंकड़ा हो चला था। एक तरफ देवीलाल का पुत्रमोह था तो दूसरी तरफ खाप पंचायत की पगड़ी का सवाल था।
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27 फरवरी, 1990 को महम में उप चुनाव हुए। उस चुनाव में जबरदस्त हिंसा हुई। चुनावों में धांधली और बूथ कैप्चरिंग भी हुई। एक इंटरव्यू में खुद आनंद सिंह दांगी ने कहा कि वहां के तत्कालीन डीएसपी को बूथ कैप्चर करते हुए रंगे हाथों दबोचा गया था। चूंकि एक राज्य के मुख्यमंत्री का चुनाव था, इसलिए इस उप चुनाव पर देश-विदेश की मीडिया की नजरें थीं। चुनावी धांधली की बात राष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से छपी, इसके बाद चुनाव आयोग ने आठ सीटों पर पुनर्मतदान के आदेश दिए गए।
सीएम के बेटे पर बूथ कैप्चरिंग के आरोप
जब आठ सीटों पर दोबारा चुनाव होने लगे तो फिर हिंसा हुई। कहा जाता है कि एक तरफ खुद दांगी ने हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के बेटे अभय सिंह चौटाला के इशारे पर बूथ कैप्चरिंग हुई और बड़े पैमाने पर खून-खराबा हुआ। आरोप लगे कि चौटाला ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, इसलिए चुनाव आयोग ने आखिरकार ये चुनाव रद्द कर दिया। चूंकि महम नई दिल्ली से निकट रोहतक का इलाका है, इसलिए राष्ट्रीय मीडिया ने फिर से यहां डेरा डाल दिया था।
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21 मई को फिर से उप चुनाव की तारीख तय की गई लेकिन चुनाव से कुछ दिनों पहले ही दांगी के गांव (मदीना) के ही एक निर्दलीय उम्मीदवार अमरीक सिंह की हत्या कर दी गई। सिंह को चौटाला ने ही खड़ा किया था ताकि दांगी का वोट बंट जाए। इस हत्या के बाद चुनाव रद्द हो गए लेकिन अमरीक सिंह की हत्या की वजह से इलाके में खून-खराबा और हिंसा भड़क गई। दांगी पर अमरीक सिंह की हत्या का आरोप लगा। जब दांगी को पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो उनके समर्थकों ने पुलिस पर ही हमला बोल दिया। दांगी ने एक इंटरव्यू में आरोप लगाया कि रोहतक के तत्कालीन एसपी ने उनपर गोलीबारी की थी लेकिन वह बच निकले थे। इस हिंसा में 10 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे।
चौटाला को छोड़नी पड़ी CM की कुर्सी
जब महम कांड की गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी तब प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने उप प्रधानमंत्री देवीलाल से इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने इसे अपनी सरकार की प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया और चौटाला से इस्तीफा दिलाने को कहा। इसके बाद देवीलाल वीपी सिंह से आक्रोशित हो गए लेकिन मजबूरन उन्हें बेटे से इस्तीफा दिलवाना पड़ा। 171 दिन बाद चौटाला को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को 22 मई 1990 को हरियाणा का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, वह भी 51 दिन ही पद पर रह सके।
देवीलाल और बेटे चौटाला दोनों हुए पैदल
हुआ यूं कि जैसे ही बेटे की कुर्सी छिनी, देवीलाल वीपी सिंह के खिलाफ आक्रामक हो गए। वह अपमानित महसूस करने लगे। इसके बाद उन्होंने उप प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जनता दल के बड़े नेताओं के काफी मान मनौव्वल के बाद देवीलाल मान गए और अपना इस्तीफा वापस ले लिया। 12 जुलाई, 1990 को वीपी सिंह और देवीलाल के बीच अकेले में गुप्त बैठक हुई। उसी दिन बनारसी दास गुप्ता का इस्तीफा हुआ और चौटाला फिर से मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन वह पांच दिन ही इस बार कुर्सी पर रह सके क्योंकि इस बार वीपी सिंह ने देवीलाल को ही अपने मंत्रिमंडल से निकाल दिया था।
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