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दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की उस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कोयला घोटाले के एक मामले में खुद को दोषी ठहराए जाने पर रोक लगाने की मांग की थी। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि कोड़ा और मामले की जांच करने वाली जांच एजेंसी सीबीआई की ओर से लिखित दलीलें पहले ही दाखिल की जा चुकी हैं। सीबीआई ने कोड़ा की इस याचिका का विरोध किया है।
कोड़ा ने इस याचिका में 13 दिसंबर, 2017 के निचली कोर्ट के उस आदेश को निलंबित करने का आग्रह किया है, जिसमें उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई है। दरअसल कोड़ा ने यह याचिका इसलिए लगाई है, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने और दो साल या अधिक समय की सजा सुनाए जाने पर व्यक्ति को तुरंत सांसद, विधायक या राज्य विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। इसके साथ ही जेल से रिहा होने के बाद भी व्यक्ति छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ही रहता है।
पहले राहत देने से इनकार कर चुकी है अदालत
कोड़ा की याचिका पर सुनवाई के दौरान सीबीआई की तरफ से दलीलें रखते हुए सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा और वकील तरन्नुम चीमा ने कोर्ट में कहा कि मई 2020 में भी कोड़ा की तरफ से एक ऐसा ही आवेदन दिया गया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था और अब उनकी तरफ से एकबार फिर उसी राहत की मांग करने वाली याचिका दायर की गई है।
मई 2020 में हाई कोर्ट ने यह कहते हुए कोड़ा की सजा पर रोक लगाने से इनकार किया था, कि जब तक उन्हें अंतिम रूप से बरी नहीं कर दिया जाता, तब तक उन्हें किसी भी सार्वजनिक पद के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति देना उचित नहीं होगा। तब न्यायालय ने कहा था कि व्यापक राय यह है कि जिन लोगों पर अपराध के आरोप हैं, उन्हें सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। इसलिए, कोड़ा की सजा पर रोक लगाना और उन्हें उस अयोग्यता से उबरने की अनुमति देना उचित नहीं होगा।
कोर्ट ने सुनाई थी 3 साल की जेल की सजा
झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा, पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव ए के बसु और कोड़ा के करीबी सहयोगी विजय जोशी को भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने और झारखंड में राजहरा उत्तर कोयला ब्लॉक को कोलकाता स्थित कंपनी विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटेड (VISUL) को आवंटित करने में आपराधिक साजिश रचने के लिए निचली अदालत ने तीन साल की जेल की सजा सुनाई थी। साथ ही यूपीए सरकार के दौरान हुए इस कोयला घोटाले को लेकर कोर्ट ने VISUL, कोड़ा और गुप्ता पर क्रमश: 50 लाख रुपए, 25 लाख रुपए और 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। बसु पर भी एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया था।
बता दें कि इस मामले में आरोपी फर्म ने 8 जनवरी, 2007 को राजहरा उत्तर कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन किया था। हालांकि झारखंड सरकार और इस्पात मंत्रालय ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए VISUL के मामले की सिफारिश नहीं की थी, लेकिन 36वीं स्क्रीनिंग कमेटी ने इसे आरोपी फर्म को आवंटित कर दिया।
सीबीआई ने कहा था कि स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष गुप्ता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनके पास कोयला मंत्रालय भी था, से यह तथ्य छिपाया था कि झारखंड ने कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए VISUL की सिफारिश नहीं की थी।
उन पर आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के साथ धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 409 (लोक सेवकों द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया गया।
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