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शब्द : 521 – अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद सख्ती का असर
– चुनाव बहिष्कार और बंद की बातें सुनाई देनी बंद हुईं
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
अलगाववादी नेताओं और प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे कट्टरपंथियों की जम्मू-कश्मीर में चुनावी रणनीति पूरी तरह बदल गई है। यह शायद अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद हुई सख्ती का ही असर है कि हर चुनाव में होने वाली बहिष्कार की बात अब सुनाई देनी बंद हो गई है। हालांकि, जमात के पूर्व सदस्यों का प्रभाव जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है।
जानकारों का कहना है कि अब जमात से जुड़ रहे लोग भी चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालने की बजाय हिस्सेदारी का रास्ता खोज रहे हैं। जिनके कंधे पर बंदूक रखकर पाकिस्तान चुनावों में अपनी नापाक हरकत का प्रयास करता था उनमें से ज्यादातर या तो जेल के अंदर है या उनकी मौत हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि यह गिलानी, यासीन मलिक या हुर्रियत का दौर नहीं है। अब नई तरह का कट्टरपंथ देखने को मिल रहा है।
जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर गुल मोहम्मद वानी का कहना है कि इस चुनाव में पाकिस्तान का प्रभाव या चुनाव बहिष्कार का आह्वान देखने को नहीं मिल रहा है। पाकिस्तान पूरी तरह से अप्रासंगिक नजर आ रहा है। शीर्ष खुफिया सूत्रों के अनुसार, अधिकांश वरिष्ठ अलगाववादी नेता वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के भीतर और बाहर विभिन्न जेलों में बंद है। विधानसभा चुनावों में उनकी कोई भूमिका नहीं नजर आ रही है।
अनुच्छेद 370 हटने से पहले विधानसभा चुनावों में अलगाववादी चुनाव बहिष्कार अभियान चलाते थे और चुनाव के दिनों में बंद का आह्वान करते थे। इस चुनाव में प्रतिबंधित जमात के कई पूर्व नेताओं ने विभिन्न सीटों के लिए नामांकन दाखिल किया है और चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनने का प्रयास किया है।
वर्चस्व दिखाना चाहते हैं अलगाववादी
अलगाववादी विचारधारा को मानने वाले कई संगठन चाहते हैं कि वे राजनीतिक प्रक्रिया से जुड़कर अपना वर्चस्व दिखाएं। जमात-ए-इस्लामी के दो पूर्व सदस्यों ने पहले चरण के चुनाव के लिए दक्षिण कश्मीर से नामांकन पत्र दाखिल किया। पूर्व जमात नेता तलत मजीद ने पहले चरण के लिए पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। जमात के एक अन्य पूर्व नेता सयार अहमद रेशी ने दक्षिण कश्मीर के कुलगाम विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। जमात के पूर्व सदस्य नजीर अहमद देवसर निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। जेल में बंद अलगाववादी नेता सर्जन बरकती ने शोपियां के जैनपोरा विधानसभा क्षेत्र से अपनी बेटी के माध्यम से नामांकन पत्र दाखिल किया था। हालांकि, उनका नामांकन खारिज हो गया।
इंजीनियर रशीद की जीत से मनोबल बढ़ा
जानकारों का कहना है कि यह इंजीनियर रशीद की लोकसभा चुनाव जीत थी जिसने अन्य अलगाववादी नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए मनोबल बढ़ाया है। राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए नौ उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की है। हालांकि, इंजीनियर रशीद चुनाव आयोग से अपनी राजनीतिक पार्टी एआईपी का पंजीकरण कराने में विफल रहे थे। लेकिन अपने इरादे उन्होंने जाहिर कर दिए हैं। राजनीतिक लबादा ओढ़ने वाले अलगावादी या कट्टरपंथियों को घाटी में जनता का कितना साथ मिलता है देखना होगा।
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