[ad_1]
एक महिला ने बेहद खास कारण से दिल्ली हाई कोर्ट से अपना केस वापस ले लिया। महिला का कहना था कि वह अदालत की सुनवाई में भाग लेने के लिए बार-बार अपना काम छोड़कर नहीं आ सकती। जिसके बाद गुरुवार को उच्च न्यायालय ने उसे अपना केस वापस लेने की अनुमति दे दी। जस्टिस अनूप भंभानी ने कहा कि यह मुकदमेबाजी से होने वाली थकान का परिणाम है, जिसे ‘लिटिगेशन फटीग’ कहा जाता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जब शिकायतकर्ता और आरोपी (याचिकाकर्ता) दोनों ने मामले को निपटाने की अनुमति के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तब ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही चल रही थी। इसी दौरान वादी ने अदालत में मामला वापस लेने की गुहार लगाते हुए कोर्ट से कहा कि ‘मैं बार-बार काम छोड़ के कोर्ट नहीं आ सकती’।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस भंभानी ने इसे मुकदमेबाजी की थकान बताते हुए कहा, ’10 में से 7 मामलों में केस को वापस लेने का असली कारण यही है। इसे ही आप मुकदमेबाजी की थकान कहते हैं क्योंकि आप मामले को आगे बढ़ाने के लिए अदालत नहीं आ सकते।’
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा नहीं लगता कि मामले को वापस लेने का यही एकमात्र कारण है। जस्टिस भंभानी ने कहा, ‘वह (शिकायतकर्ता) जिरह के चरण में एफआईआर भी वापस ले रही है, क्योंकि वह जानती है कि आप (याचिकाकर्ता) उसे और शर्मिंदा करेंगे।’
मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने एक शर्त के आधार पर केस को वापस लेने की अनुमति देने के लिए तैयार हो गया। कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों पक्ष (आरोपी व याचिकाकर्ता) कॉस्ट देने के लिए तैयार हों तो वह यह अनुमति दे सकता है।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि दो कारणों से उसे (शिकायतकर्ता) मामला वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है, पहला यह कि मामले को आगे बढ़ने में समय लगता है और दूसरा यह कि जांच के दौरान उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा। जिसके चलते हम याचिकाकर्ता पर कॉस्ट लगाते हैं।’
याचिकाकर्ता के वकील ने यह कहते हुए कोर्ट से कोई कॉस्ट न लगाने का आग्रह किया, क्योंकि यह कानूनी सहायता का मामला है, लेकिन पीठ इसके लिए तैयार नहीं हुई। कोर्ट ने कहा, ‘कॉस्ट देनी पड़ेगी, नहीं तो मामला चलता रहेगा।’ मामले के निपटारे की शर्त के रूप में अंततः याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपए की कॉस्ट लगाई गई।
[ad_2]
Source link