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मणिमहेश नवयुवक मंडल केडलगंज अलवर की ओर से 16 सदस्यों का दल मंगलवार को अलवर से हिमाचल की सबसे दुर्गम यात्रा मणिमहेश यात्रा के लिए रवाना हुआ। यात्रा पठानकोट पहुंचकर 1 दिन का सफर तय कर चंबा होते हुए भरमौर पहुंचेगी। इसके बाद 3 दिन की पैदल मणिमहेश की यात्
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मंडल के करीब 16 सदस्य यात्रा के लिए अलवर से रवाना हुए हैं। करीब 17 किलोमीटर की यात्रा में चार मुख्य पड़ाव हडसर, धंसो, सुंदर्रासी व अंतिम पडाव गौरीकुंड पड़ेगा, त्रिलोकी नाथ मंदिर पहुंचने पर सुबह कैलाश पर्वत पर सूरज की पहली किरण मणि पर पड़ती है। जिसके दर्शन लाभ से ही यात्रा संपन्न मानी जाती है।
इस दौरान रास्ते में लख चौरासी व धर्मराज के मंदिर पड़ते हैं। यात्रा की शुरुआत ब्राह्मणी माता के दर्शन के बाद शुरू होती है। ऐसी मान्यता है ब्राह्मणी माता के दर्शन बिना यह यात्रा अधूरी मानी जाती है। समुद्र तल से 4000 की ऊंचाई पर स्थित है।
26 अगस्त से 11 सितम्बर से चलेगी यात्रा
मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक, बुद्धिल घाटी में भरमौर से 26 किलोमीटर दूर स्थित है। यह झील कैलाश शिखर के तल पर 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल भादों महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को इस झील पर मेला लगता है, जिसमें हजारों तीर्थयात्री पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए यहां आते हैं। भगवान शिव इस मेले/जात्रा के मुख्य देवता हैं। माना जाता है कि वे कैलाश में निवास करते हैं। कैलाश पर शिवलिंग के आकार की एक चट्टान को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। पहाड़ की तलहटी में बर्फ के मैदान को स्थानीय लोग शिव का चौगान कहते हैं
यह पूरी दुनिया में एकमात्र मंदिर है, जहां दोनों धर्म के लोग हिंदू और बौद्ध एक ही देवताओं को अपना सम्मान देते हैं। अलवर से यात्रा में शिव भक्त विशाल, नकुल, मुन्ना, हेमंत, गौरव, विजेंद्र, विवेक, मुन्नावीर, हिमांशु, आशीष, जयकिशन, पवन, नैतिक, राजा शामिल हैं।
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