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झारखंड विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा और आजसू पार्टी की साझेदारी होगी। पिछली बार 2019 के विधानसभा चुनाव में यह समझौता नहीं बन पाया था। दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। नुकसान एनडीए और आजसू दोनों को हुआ। इस गलती के परिणाम को भांप लिया गया। इस बार इस गलती को दोहराने का जोखिम एनडीए नहीं लेगा।
भाजपा और आजसू में फिर दोस्ती
गृह मंत्री अमित शाह से सोमवार को दिल्ली में मुलाकात के बाद आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने ऐलान कर दिया कि वह सभी 81 सीटों पर भाजपा के साथ लड़ेंगे। सीट शेयरिंग से ज्यादा मायने एकजुटता रखती है। जानकारों का मानना है कि आजसू के साथ आने से एनडीए मजबूत होगी। खासकर महतो वोट को एनडीए साध सकेगा। हालांकि कुछ छोटे दलों के अस्तित्व में आने के बाद सूबे के सियासी समीकरण में बदलाव देखे जाएंगे।
राजनीतिक गलियारों में माना जाता है कि राज्य की कुल आबादी में करीब 25 फीसदी कुड़मी (कुर्मी) हैं, लेकिन सरकारी कागज में आज भी कुड़मी आबादी को महज 16 प्रतिशत ही माना गया है। छोटानागपुर क्षेत्र में कुड़मी वोटर असरदार माने जाते हैं। जानकारों का कहना है कि राज्य की 27 से 30 विधानसभा सीटों पर कुड़मी वोटरों का खासा प्रभाव है। भाजपा कुड़मी वोटरों को अपने पक्ष में रखना चाहती है। माना जा रहा है कि सुदेश महतो के साथ आने से कुड़मी मतदाताओं को साधने में भाजपा को काफी हद तक सफलता मिल सकती है।
2014 में हुआ था फायदा
सूबे की सियासी पृष्टभूमि की बात करें तो आजसू पार्टी ने 2014 का विधानसभा चुनाव एनडीए में शामिल होकर लड़ा था। भाजपा ने 37 और आजसू पार्टी ने 05 पांच सीटें जीतीं। राज्य की 81 सीटों में भाजपा और आजसू गठबंधन ने कुल 42 सीटें जीतकर सरकार का गठन किया। पार्टी अध्यक्ष सिल्ली से चुनाव हार गए, लेकिन रामगढ़ से चन्द्र प्रकाश चौधरी, टुंडी से राज किशोर महतो, जुगसलाई से राम चंद्र सहिस, तमाड़ से विकास कुमार मुंडा (अब जेएमएम में), लोहरदगा से कमल किशोर भगत (अब दिवंगत) ने चुनाव जीता। रघुवर दास सरकार में आजसू पार्टी के चंद्र प्रकाश चौधरी कैबिनेट मंत्री बने।
2019 वाले नुकसान से सबक
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-आजसू का गठबंधन टूट गया था। ऐसी 13 सीटें थीं, जहां एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने के कारण इन दोनों पार्टियों को हार झेलनी पड़ी। ऐसी सीटों में डुमरी, जुगसलाई, ईचागढ़, लोहरदगा, नाला, जामा, रामगढ़, बड़कागांव, खिजरी, चक्रधरपुर, गांडेय, मधुपुर, घाटशिला, सरायकेला, मांडर, तमाड़, जरमुंडी, मनोहरपुर और सिमडेगा शामिल हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन में आजसू को आठ सीटें मिली थीं और 2019 में भाजपा उसे 10 सीटें देने पर राजी थी, पर आजसू ने 19 सीटों की सूची भाजपा को सौंपी थी।
बाद में भाजपा ने 10 सीटों के अलावा तीन पर दोस्ताना मुकाबले का प्रस्ताव दिया, पर आजसू 17 सीटें लेने पर अडिग थी। इसी तनातनी के बीच आजसू और भाजपा दोनों ने लोहरदगा, चक्रधरपुर और चंदनक्यारी सीट से अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतार दिए। इसका खामियाजा दोनों को ही भुगतना पड़ा। भाजपा को जहां केवल 25 सीटें मिलीं, वहीं आजसू को महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा।
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