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नई दिल्ली. 90 के दशक के टॉप डायरेक्टर्स की चर्चा हो और मधुर भंडारकर का नाम न आए ऐसा हो नहीं सकता. उन्होंने ‘चांदनी बार’, ‘फैशन’, ‘कॉरपोरेट’ और ‘इंदु सरकार’ जैसी बेहतरीन फिल्में बनाई हैं. ये सारी फिल्में समाज का आईना थीं. जब ‘चांदनी बार’ की तब्बू बोलती हैं ‘जो सपने देखते हैं, वो ही तो जीते हैं’, तो लगता है अरे ये तो मेरी भी सोच है. मधुर भंडारकर रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्ष को पर्दे पर उतारने के लिए जाने जाते हैं. उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत है कि हर किरदार समाज के बीच से ही निकल कर आता है.
समाज की बारीकियों को फिल्मों के जरिए पर्दे पर उतारने वाले मधुर भंडारकर का जीवन काफी गरीबी में बीता था. उन्हें बचपन में ही अपना पेट पालने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थी. कभी ट्रैफिक सिग्नल पर च्युइंग गम बेचने वाले मधुर भंडारकर ने शायद बचपन में कभी सोचा भी नहीं होगा कि वह बॉलीवुड के इतने बड़े डायरेक्टर बन जाएंगे.
16 साल की उम्र से फिल्मों की तरफ रहा झुकाव
‘फैशन’ के डायरेक्टर की फिल्मों की ये सच्चाई शायद उनके संघर्षों का ही नतीजा है. इन संघर्षों ने ही मधुर को सिनेमा की तरफ आकर्षित किया. वह किसी न किसी तरह से सिनेमा का हिस्सा बनना चाहते थे. उनका 16 साल की उम्र से फिल्मों की तरफ झुकाव रहा था. वह एक वीडियो कैसेट लाइब्रेरी में काम करते थे और साइकिल पर घर-घर जाकर कैसेट पहुंचाते थे. यहीं से फिल्मों में उनकी रुचि पैदा हुई और वह रिसर्च के काम में लग गए.
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