विशेष संवाददाता द्वारा
सोनभद्र । हिंदी साहित्य की प्रख्यात गीतकार एवं नारी सशक्तिकरण की प्रणेता डॉ रचना तिवारी की माने तो वे रक्षाबंधन के पावन पर्व के दिन, दिन भर उदास रही क्योंकि उनका मानना है कि वह कम्प्यूटर नहीं बल्कि मां भारती के पेट से पैदा हैं । वह कहती है कि जहां संवेदना मेरे जीवन पर राज करती है ।कई कई बार छटपट बलात्कारियों की हैवानियत से किन्तु ज़्यादा कुछ नहीं कर पाई सिर्फ आसपास की ब राह दिखाने के सिवा ।
साहित्य और सामाजिक समरसता की प्रतिमूर्ति डॉक्टर रचना तिवारी आगे कहती हैं कि
एक वो भी बेटी थी रानी कर्णावती जिसके एक हुमायूं को पिघला दिया था जिसकी कथा ये नीच दरिंदे हैं जो बलात्कार से संतुष्ट नहीं होते बल्कि उनकी प्यास कोंच कोंच कर हत्या करने से बुझती है ।हर बार जघन्य बलात्कार होने बिलखता गीत लिखा ,किन्तु उससे क्या होता है सिवा बेचैनी के हाथरस,उन्नाव,कलकत्ता जैसे तमाम शहर हैवानियत की जद में पहले से हैं ,कहीं शोर हो जाता कहीं आवाज़ ही बंद ….बेटियां हर तरह से त्रस्त हैं घर मे भी वो किसी रिश्ते से सुरक्षित नहीं हैं ,मामा,चाचा,चचेरे भाई का लड़का,मौसा, और भी तमाम रिश्ते इनके विरोध के बावजूद इन बच्चियों को नहीं छोड़ते ,और जब बेटियां घर में बताती हैं चुप रहने को कहा जाता है ,ऐसी स्थिति में उस बच्ची की मानसिकता को छिन्न भिन दिया जाता है और वो अपराधबोध लेकर उसी रिश्ते के सामने पुनः आती जाती रहती
बेटियों के इस घोर अपमान को घर से ही बल मिलता है , उन्हें बोलना सीखना होगा , उन्हें सही बात के साथ अपने संदेह को उजागर करने की हिम्मत जुटानी पड़ेगी । डॉक्टर रचना आगे कहती हैं कि अब पानी सर से ऊपर पार होरहा है । देश मे बलात्कार सियासती हथकंडा बनता जा रहा है ,औरत की देह न हुई लोगों की सफलता असफलता का माध्यम हो गई ।
कहीं कहीं हो सकता है बेटिय भी दोषी हो किन्तु इसका निराकरण क्या सिर्फ बलात्कार ही है ,और तो और इसके बाद उसे रूह कंपा देने वाल ये कहाँ का संविधान है ।जागना होगा समाज को CBI से पहले,कानून से पहले, पुल पहले,धरना प्रदर्शन से पहले ।
अंत में उन्होंने जन सामान्य को यह संदेश देते हुए कहा है कि
बेटियों को विरोध सिखाइये , सिखाइये,सच बोलना सिखाइये,सही गलत की बात सिखाइये ,और इन सब के लिए आप खुद सही अभ बनिये ।मोमबत्ती जलाने से काम नहीं होगा ,अपनी बहन बेटियों के लिए लंका में आग लगानी पड़ेगी ,महाभारत का युद्ध लड़ना पड़ेगा ।