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नई दिल्ली, विशेष संवाददाता चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार के लेटरल एंट्री के निर्णय ने विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है। विपक्ष ने इसे आरक्षण से जोड़ते हुए सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार लेटरल एंट्री के जरिए दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों का अधिकार छीन रही है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संविधान बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित सभी विपक्षी नेता इस मुद्दे पर मुखर हैं। विपक्ष लेटरल एंट्री को सरकार की आरक्षण खत्म करने की मंशा से जोड़ रहा है। विपक्ष का कहना है कि लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती आरक्षण को छीनकर संविधान को बदलने का भाजपाई चक्रव्यूह रचा जा रहा है।
खरगे बोले, पांच लाख से अधिक पद खत्म किए गए
खरगे ने सोशल साइट ‘एक्स पर पोस्ट कर कहा कि लेटरल एंट्री का प्रावधान संविधान पर हमला है क्योंकि, सरकारी महकमों में रिक्तियां भरने के बजाए पिछले 10 वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार के हिस्सों को बेच-बेच कर 5.1 लाख पद भाजपा ने खत्म कर दिए हैं। इस तरह एससी, एसटी व ओबीसी के वर्ष 2022-23 तक एक लाख 30 हजार पद कम हुए हैं।
अधिकार छीनने के लिए निर्णय
लेटरल एंट्री को यूपीए के वक्त शुरू किए जाने की केंद्र सरकार की दलील को खारिज करते हुए खरगे ने कहा कि उस वक्त लेटरल एंट्री में गिने-चुने विशेषज्ञों को कुछ विशेष पदों में उनकी उपयोगिता के अनुसार नियुक्त किया गया था। पर सरकार ने लेटरल एंट्री को विशेषज्ञ नियुक्त करने के लिए नहीं, बल्कि दलित, आदिवासी और ओबीसी का अधिकार छीनने के लिए इस्तेमाल किया है।
राहुल ने बहुजनों से आरक्षण छीनने का आरोप लगाया
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी ‘एक्स पर पोस्ट कर लेटरल एंट्री को दलित, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा का राम राज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करना और बहुजनों से आरक्षण छीनना चाहता है।
इससे एक दिन पहले भी राहुल ने लेटरल एंट्री का विरोध करते हुए इसके जरिए आरएसएस के लोगों को नौकरशाह बनाने का आरोप लगाया था।
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