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चौबीसा ब्राह्मण समाज के लोग जनेऊ बदलने की क्रिया करते हुए।
प्रायश्चित, स्वाध्याय और संस्कार के लिए रक्षाबंधन के दिन श्रावणी उपकर्म ब्राह्मण समाज की ओर से किया गया। नदी और तालाबों के घाटों पर विधि विधान से परंपरागंत तरीके से पूजन अर्चन करते हुए नया यज्ञोपपीत (जनेऊ) धारण किया गया। इसमें बड़ी संख्या में बटुकों
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पंडित निकुंज मोहन पंड्या ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावणी धार्मिक स्वाध्याय के प्रचार का पर्व है। सद्ज्ञान, बुद्धि, विवेक और धर्म की वृद्धि के लिए इसे निर्मित किया गया, इसलिए इसे ब्रह्मपर्व भी कहते हैं। श्रावणी वैदिक पर्व है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि इसी दिन से वेद पारायण आरंभ करते थे। इसे ‘उपाकर्म’ कहा जाता था।
श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं।
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