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चंपाई सोरेन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि चंपाई छह विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हालांकि दिल्ली पहुंचने पर जब उनसे इस बारे में पूछा गया तब उन्होंने न इकरार किया और न ही इनकार। उनके बयान ने सियासी सस्पेंस को और बढ़ा दिया है। हालांकि इस बीच एक ऐसी घटना घटी जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। चंपाई के गांव वाले घर से झामुमो का झंडा उतार दिया गया है। दरअसल, चंपाई को सियासत की दुनिया में ‘टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता है। उनके कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर सीएम हेमंत सोरेन उनका पैर छूते नजर आए हैं। ऐसे में अगर चंपाई झामुमो छोड़कर भाजपा में जाते हैं तो यह हेमंत सोरेन के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं भाजपा को एक साथ कई फायदे होंगे।
हेमंत सोरेन के लिए बड़ा झटका
चंपाई सोरेन राज्य के बड़े आदिवासी नेता हैं। कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों पर उनका दबदबा है। आदिवासी वोटरों खासकर युवाओं के बीच वह बेहद लोकप्रिय हैं। अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने मजदूर आंदोलन से की। हेमंत सोरेन के जेल जाने पर चंपाई को झामुमो नेतृत्व ने मुख्यमंत्री बनाया। उनके नाम को लेकर पार्टी के किसी भी नेता में कोई नाराजगी नहीं देखी गई। वह अपनी ईमानदार छवि के लिए भी मशहूर हैं। चंपाई को सीएम हेमंत सोरेन का ‘यस मैन’ कहा जाता है। कुछ महीनों पहले हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन बगावत कर भाजपा में शामिल हो गईं थीं। ऐसे में अब अगर चंपाई सोरेन झामुमो छोड़ते हैं तो पार्टी एक बड़ा चेहरा खो देगी। इससे आगामी चुनाव में असर देखने को मिल सकता है।
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क्यों कहा जाता है टाइगर
दरअसल, चंपाई सोरेन एक किसान परिवार से आते हैं। 1990 के दशक में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लंबी लड़ाई चली थी। इस आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ-साथ चंपाई सोरेन ने भी अहम योगदान दिया था। तभी से उन्हें ‘टाइगर’ के नाम से जाना जाता है। वह शिबू सोरेन के सिपहसालार कहे जाते हैं।
क्या है ‘टाइगर की ताकत’ जो चाहती है BJP
लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड में भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले तीन सीटों पर नुकसान हुआ। कुछ ही महीनों बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में अगर चंपाई सोरेन झामुमो से बगावत करते हैं तो भाजपा को एक साथ कई फायदे होंगे। पहला, कोल्हान की 14 सीटें जिन पर चंपाई का दबदबा है, उस सीट पर भाजपा को बढ़त मिल सकती है। दूसरा, राज्य के आदिवासी वोटर झामुमो से भाजपा की ओर शिफ्ट हो सकते हैं। तीसरा, भाजपा झामुमो पर परिवारवाद का आरोप लगा सकती है। क्योंकि चंपाई सोरेन के सीएम पद से इस्तीफा के बाद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वापस बैठ गए। चौथा, चंपाई सोरेन के संपर्क में झामुमो के कई नेता हैं। वह पार्टी के सीनियर नेताओं में से हैं। उनके इशारे पर कई नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं। पांचवां, युवा वोटरों में भी चंपाई का प्रभाव है। ‘टाइगर की ताकतों’ से भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में स्थिति बदल सकती है। हालांकि इन अटकलों को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
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