[ad_1]
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की भाजपा में जाने की अटकलें काफी तेज हैं। उनके साथ झामुमो के 6 विधायकों के भी भाजपा में जाने की चर्चा है। ऐसे में अगर चंपाई सोरेन समेत 7 विधायक भाजपा में चले जाते हैं तो हेमंत सोरेन की सरकार के सेहत पर इसका क्या असर पड़ेगा आइए समझते हैं।
जमीन घोटाले में जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन ने फिर से झारखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। उसके बाद 8 जुलाई को पेश किए गए विश्वास मत के दौरान हेमंत सोरेन सरकार को 45 विधायकों का समर्थन मिला था। विपक्ष ने विश्वास मत का बहिष्कार किया था।
वैसे तो झारखंड विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या मनोनित सहित 82 है। इसमें एक मनोनित सदस्य जबकि 81 चुने हुए सदस्य आते हैं। चूंकि इनमें से चार विधायक सांसद बन चुके हैं और झामुमो विधायक सीता सोरेन ने इस्तीफा दे दिया था, ऐसे में वर्तमान में विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 77 है।
अगर चंपाई सोरेन अपने 6 विधायकों के साथ भाजपा में जाते हैं तो सोरेन सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों की संख्या 45 से घटकर 38 पर आ जाएगी। हालांकि 77 सदस्यीय विधानसभा में सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए 39 विधायकों का समर्थन चाहिए, ऐसे में सरकार संकट में आ सकती है। लेकिन, अगर इन 7 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाती तो विधानसभा की स्ट्रेंथ 70 रह जाएगी। ऐसे में सरकार को बचाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होगी, जो उसके पास है।
बता दें कि वर्तमान में विधानसभा में सत्ता पक्ष में झामुमो के 27, कांग्रेस के 17, राजद के 1 और भाकपा के 1 विधायक हैं। जबकि विपक्ष में भाजपा के 24, आजसू के 3, एनसीपी के 1 और 2 निर्दलीय विधायक हैं।
यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या 6 महीने के भीतर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इस संबंध में कानूनी और संसदीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के खिलाफ दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। संविधान के अनुसार, राज्य विधानसभा के दो सत्र आयोजित करने के बीच की अवधि छह महीने से कम होनी चाहिए।
वहीं, हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव राम नारायण यादव ने कहा कि अगर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव की मांग करता है तो छह महीने की शर्त लागू नहीं होती है। यादव ने कहा, “ऐसे कई उदाहरण हैं जब प्रस्ताव लाए जाने के छह महीने की समाप्ति से पहले विधानसभाओं में अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं।”
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चंपाई सोरेन सहित 7 विधायकों के भाजपा में आने के बाद भी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाना चाहेगी। इसके पीछे उनका तर्क है कि चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। ऐसे में अगर भाजपा अविश्वास प्रस्ताव लाती है और हेमंत सोरेन की सरकार गिर जाती है तो चुनाव में झामुमो इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी को घेर सकती है।
[ad_2]
Source link