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झारखंड में विधानसभा चुनाव अपने तय समय पर होंगे। ऐसे में भाजपा अगले महीने सितंबर में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। पहली सूची में खासकर संताल और कोल्हान की सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है। लेकिन सबसे ज्यादा मशक्कत आदिवासी आरक्षित सीटों पर उम्मीदवारी को लेकर हो रही है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व की ओर से बड़े आदिवासी नेताओं को आदिवासी आरक्षित सीटों पर लड़ाने का फैसला लिया गया है।
पार्टी ने यह लक्ष्य रखा है कि किसी भी तरह आदिवासी आरक्षित 28 सीटों में कम से कम 10 सीटें जीती जाएं। वर्तमान में सिर्फ दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के खूंटी की दो सीटों खूंटी और तोरपा पर भाजपा का कब्जा है। वहीं, संताल की सभी आदिवासी आरक्षित सीट व कोल्हान की तमाम सीटों पर भाजपा को 2019 के चुनाव में हार मिली थी।
कैसे हो रही मशक्कत
संताल परगना की सीटों पर लेकर सबसे ज्यादा परेशानी भाजपा को हो रही। मसलन दुमका सीट पर हेमंत सोरेन को मात देकर विधायक चुनी गई लुईस मरांडी की दावेदारी रही है। लेकिन इस बार चर्चा है कि बाबूलाल मरांडी को भी यहां से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। वहीं बोरियो से ताला मरांडी 2014 में विधायक बने थे, लेकिन 2019 में उनका टिकट काट दिया गया था, अब इस सीट पर लोबिन हेंब्रम को लेकर चर्चा तेज है। लोबिन के भाजपा में शामिल होने की अटकलें भी हैं। वहीं जामा सीट पर सीता सोरेन विधायक थीं, भाजपा में शामिल होने के बाद वह अपनी बेटी के लिए दावेदारी कर रहीं। लेकिन इस सीट पर पिछली बार 2426 वोट से हारे सुरेश मुर्मू के साथ-साथ सीता सोरेन के लिए दुमका की संसदीय उम्मीदवारी छोड़ने वाले सुनील सोरेन भी दावेदार हैं। संताल परगना में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सीटिंग सीट बरहेट, शिकारीपाड़ा, महेशपुर जैसी सीटों पर भी नए प्रत्याशियों का चयन होना है। वहीं, दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों लोहरदगा, सिसई, विशुनपुर, गुमला में भी भाजपा नए और अपने कद्दावर चेहरों को चुनाव लड़ा सकती है।
आदिवासी सीटों पर कैसे हो रहा मुद्दों का उभार
लोकसभा चुनाव के दौरान चार आदिवासी आरक्षित सीटों पर भाजपा की बड़ी हार हुई थी। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उठी सहानुभूति लहर का फायदा इंडिया गठबंधन को मिला था। हेमंत सोरेन के पुन: सीएम बनने के बाद संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ तथा डेमोग्राफी बदलाव का मुद्दा भाजपा उठा रही है। पाकुड़, साहिबगंज में आपराधिक वारदातों के साथ घुसपैठ को जोड़ा जा रहा है। वहीं आदिवासियों की घटती जनसंख्या का मुद्दा भी उठाया जा रहा है।
माहौल अब बदल चुका है: हिमंता
झारखंड के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्व सरमा के मुताबिक, आदिवासी वोटरों का समर्थन अब भाजपा को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि हर तरफ से आदिवासी वोटर अब भाजपा से जुड़ रहे हैं। एक महीने में माहौल और बदल जाएगा।
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