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हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होने के आसार हैं। कांग्रेस बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से तो नहीं रोक पाई थी, लेकिन उसने भाजपा को बहुमत का आंकड़ा नहीं छूने दिया था। इसके बाद हाल के लोकसभा चुनावों में उसने भाजपा को बराबरी की टक्कर दी। भाजपा के सामने सत्ता विरोधी माहौल, जबकि कांग्रेस के सामने अपनी खोई ताकत हासिल करने की चुनौती है।
राज्य विधानसभा के एक अक्तूबर को होने वाले चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस पहले से ही काफी तैयारी कर चुके हैं। यही नहीं, लोकसभा चुनावों में भी दोनों दलों के बीच आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर टसल साफ दिखाई दी। इसमें कांग्रेस भारी पड़ी थी और उसने लोकसभा की दस में से पांच यानी आधी भाजपा से छीन ली थी। विधानसभा वार आकलन में दोनों दल 44-44 सीटों पर बढ़त पर रहे। साफ है कि मुकाबला बराबरी का है और लगभग सीधा है। हालांकि, बसपा ने इनेलो से गठबंधन किया है और जजपा अपनी दम पर चुनाव मैदान में होगी।
हरियाणा में जाट और गैर जाट राजनीति काफी हावी रहती है। राज्य में लंबे समय तक जाट राजनीति का दबदबा रहा, लेकिन दस साल पहले 2014 में भाजपा ने पहली बार राज्य में अपने दम पर बहुमत हासिल करने के बाद गैर जाट मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर नए सामाजिक समीकरणों की राजनीति को शुरू किया। इसके बाद 2019 में भाजपा ने फिर से मनोहरलाल पर ही दांव लगाया और एक बार फिर सरकार बनाने में सफल रही। चूंकि वह बहुमत से छह सीट दूर रह गई थी, इसलिए गठबंधन सरकार बनानी पड़ी।
राज्य की क्षेत्रीय ताकत इनेलो के नेता ओम प्रकाश चौटाला के लंबे समय तक जेल में रहने के कारण यह पार्टी बेहद कमजोर हो गई और दो फाड़ भी हुई। ऐसे में बीते चुनाव में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में नई बनी जजपा ने दस सीट हासिल की और भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन सरकार में हिस्सेदारी की। हालांकि, एक साल पहले भाजपा और जजपा का गठबंधन टूट गया। लोकसभा चुनाव में सभी अलग-अलग लड़े। हालांकि, मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही रहा, जिसमें कांग्रेस ने अपनी कोई जमीन काफी हद तक हासिल भी की।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मनोहर लाल की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर सत्ता विरोधी माहौल समाप्त करने की कोशिश की। 2014 और 2019 में हर बार सभी दस-दस सीटें जीतने वाली भाजपा ने आधी सीटें गंवा दी और कांग्रेस शून्य से आधी सीटें हासिल करने में सफल रही। कांग्रेस का वोट भी बढ़ा। इस बार भाजपा एक बार फिर अपनी राजनीति के केंद्र में गैर जाट राजनीति को रख रही है। हालांकि, उसने जाट समुदाय को एकतरफा अपने खिलाफ जाने से रोकने के लिए कुछ प्रमुख जाट नेताओं को जोड़ा है। इनमें किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी शामिल है। किरण चौधरी पूर्व मुख्यमंत्री बंशीलाल की बहू हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ही भाजपा के लिए मुख्य चुनौती है, वहीं जजपा, इनेलो एवं बसपा का गठबंधन और आम आदमी पार्टी भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने जा रही हैं।
वादों और दावों की जुगलबंदी
राज्य में इस समय मतदाताओं को लुभाने के लिए वादों और दावों की जुगलबंदी चल रही है। भाजपा की सैनी सरकार ने किसानों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लिए कई घोषणाएं की हैं। इस महीने की शुरुआत में, हरियाणा मंत्रिमंडल ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 10 और फसलों को खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। दूसरी ओर, कांग्रेस ने बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और किसानों के मामले को अपना चुनावी मुद्दा बनाया है। कांग्रेस 15 जुलाई से शुरू हुए अपने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान के तहत इन मुद्दों को लेकर भाजपा पर हमला बोल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो बुजुर्गों को 6,000 रुपये मासिक पेंशन दी जाएगी, हर परिवार को हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी। आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल की पांच गारंटियों की घोषणा की है। इनमें मुफ्त बिजली, मुफ्त चिकित्सा, मुफ्त शिक्षा, युवाओं के लिए रोजगार और मतदाताओं को लुभाने के लिए राज्य की प्रत्येक महिला को 1,000 रुपये प्रति माह देने का वादा शामिल हैं।
2019 विधानसभा चुनाव के परिणाम
भाजपा – 40
कांग्रेस – 31
निर्दलीय – 07
इनेलो और एचएलपी -1-1
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