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सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि खान एवं खनिज संपदा युक्त भूमि पर राज्यों को कर लगाने का अधिकार दिए जाने का 25 जुलाई का उसका फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा। संविधान पीठ के इस फैसले से जहां झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल सहित खनिज संपदा से समृद्ध राज्यों के खजाने में हजारों करोड़ रुपये आएगा, वहीं देश में खनन के क्षेत्र की कंपनियों पर डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपये तक का बोझ पड़ेगा।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए राज्यों को 1 अप्रैल, 2005 से रॉयल्टी, खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर कर के बकाये की वसूली करने की छूट दे दी है। संविधान पीठ ने केंद्र सरकार और खनन संबंधी सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों की मांग को सिरे से खारिज कर दिया। कंपनियों ने फैसले को संभावित प्रभाव यानी फैसले वाले दिन (25 जुलाई) से लागू करने की मांग की थी। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, अभय एस. ओका, बी.वी. नागरत्ना, जे.बी. पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्जल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।
झारखंड में राज्य अधिनियम बरकरार हो
झारखंड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पीठ से कहा कि अभी भी एक मुद्दा बना हुआ है कि खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी वसूलने के लिए राज्य के अधिनियम को बरकरार रखा जाना चाहिए, जिसे रद्द कर दिया गया था। जब तक इसे वैध घोषित नहीं किया जाता, हम खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर कर नहीं वसूल सकते। कृपया इसे उचित पीठ के समक्ष शीघ्र सूचीबद्ध करें। मुख्य न्यायाधीश ने भरोसा दिया कि वह मामले की तत्काल सुनवाई के लिए प्रशासनिक आदेश जारी करेंगे। बता दें कि संविधान पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत से महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा था कि राज्यों को खान एवं खनिज संपदा वाली जमीन पर कर लगाने का अधिकार है।
पीठ ने बहुमत से पारित फैसले में कहा था कि केंद्रीय कानून यानी खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 यानी एमएमडीआर अधिनियम राज्यों को खान एवं खनिज संपदा पर कर लगाने की शक्ति को सीमित नहीं करता है। पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा था कि ह्यखान और खनिज के बदले भुगतान की जाने वाली रॉयल्टी कर की प्रकृति में नहीं है क्योंकि यह खनन पट्टे के तहत पट्टेदार द्वारा भुगतान किया जाने वाला एक संविदात्मक (लीज) प्रतिफल है।
संविधान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उन दलीलों को ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि कुछ राज्य फैसला आने से पहले का बकाया राशि वसूल नहीं करना चाहते हैं। सुनवाई के दौरान मेहता ने भाजपा शासित राज्यों का नाम लिया था। अब पीठ ने फैसले में उनकी दलीलों को ठुकराते हुए कहा कि यह राज्य विधानसभाओं का विशेषाधिकार है कि वे यह तय करें कि फैसला आने के दिन 25 जुलाई 2024 से पहले की अवधि के लिए बकाया राशि लेना चाहते हैं या नहीं।
सॉलिसिटर जनरल ने किया था कड़ा विरोध
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यों के इस दलीलों का कड़ा विरोध किया था। इस मामले में 31 जुलाई को अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इससे नागरिकों पर असर पड़ेगा और प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अपने खजाने से 70,000 करोड़ रुपये खाली करने पड़ेंगे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ को बताया था कि करदाताओं द्वारा देय कुल राशि, अर्थात मूलधन तथा ब्याज, उनकी कुल संपत्ति की तुलना में काफी अधिक हो सकती है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामा में कहा था कि फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किए जाने विभिन्न राज्यों से लगभग तीन हजार करोड़ रुपये की मांग की जाएगी। कंपनी ने कहा था कि मामले की कार्यवाही में देरी करदाताओं के लिए नुकसानदेह नहीं होनी चाहिए। सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बकाया वसूली की तीन शर्तें
● केंद्र और खनन क्षेत्र वाली कंपनियां राज्यों को किस्तों में बकाये रकम का भुगतान कर सकती हैं।
● बकाया रकम पर राज्य न किसी तरह की ब्याज वसूलेगा और न ही जुर्माना लगाएगा।
● राज्यों को बकाया रकम की वसूली अगले 12 सालों में किस्तों में मिलेगी और यह अवधि 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीएम सोरेन ने बताया ऐतिहासिक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि झारखंड के लिहाज से यह ऐतिहासिक फैसला है। सोशल मीडिया एक्स पर कोर्ट का आभार जताते हुए सीएम ने लिखा है कि इस बकाए और अधिकार को लेकर राज्य सरकार लगातार अपनी आवाज उठाती रही है। 2005 से बकाया रॉयल्टी का भुगतान होने से इस राशि का उपयोग जनकल्याण में किया जाएगा। इसका लाभ राज्य के हर लोग को मिलेगा। उन्होंने कहा कि चाहे कोयला मंत्रालय हो या फिर नीति आयोग, वे हर मंच से केंद्र और खनन कंपनियों को झारखंड की बकाया राशि के भुगतान की मांग उठाते रहे हैं।
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