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राजस्थान क्राइम फाइल्स के पार्ट-1 में आपने पढ़ा कि महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले राठी परिवार के घर में घुसकर 7 लोगों का चाकू जैसे नुकीले हथियार से मर्डर कर दिया गया। हत्यारों ने दो मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा। वीभत्स हत्याकांड को अंजाम देने के बा
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अब पढ़िए आगे की कहानी…
राठी परिवार और उनकी नौकरानी के सामूहिक हत्याकांड के अगले दिन संजय ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले, 8 जून, 1994 को उनकी मिठाइयों की दुकान में राजूसिंह राजपुरोहित नाम का युवक नौकरी पर लगा था। नौकरी लगने के कुछ दिन बाद ही उसने तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड शुरू कर दी। नहीं बढ़ाई तो 21 अगस्त, 1994 को उसने नौकरी छोड़ दी थी।
नौकरी छोड़ने के कुछ दिनों बाद राजूसिंह राजपुरोहित एक दिन अपने किसी दोस्त के साथ वापस उनकी दुकान आया था। राजूसिंह ने अपने दोस्त को नौकरी पर रखने की बात कही। संजय ने बताया कि- हमने इससे पहले ही राजू की जगह किसी दूसरे लड़के को काम पर रख लिया था तो उसे नौकरी के लिए मना कर दिया।
संजय ने पुलिस को बताया कि ये बात कुछ दिन पहले की ही है। उस दिन राजूसिंह के हाव-भाव भी सही नहीं लग रहे थे। वो कई बार हमारे घर भी आता-जाता था। उसे घर पर सभी जानते भी थे। उन्हें शक है कि इस हत्याकांड के पीछे राजूसिंह का हाथ हो सकता है।
एक पारिवारिक समारोह के दौरान प्रीति, हेमलता, बबीता और संजय की मीराबाई राठी।
राजू ने तनख्वाह नहीं बढ़ाने पर छोड़ी थी नौकरी
पुलिस को पुख्ता न सही लेकिन इन्वेस्टिगेशन को आगे ले जाने के लिए आधा-अधूरा ही सही लेकिन पहला सुराग मिल गया था। पुलिस ने तत्काल राजूसिंह की तलाश शुरू कर दी।
पड़ताल में पुलिस को पता चला कि राजूसिंह राजपुरोहित संजय राठी की दुकान पर काम करने से पहले बॉम्बे विहार नाम के रेस्टोरेंट में काम करता था। 30 मई, 1994 के आस-पास ही वो राजस्थान से पहली बार पुणे आया था।
उसका भाई कल्याण सिंह यहां पहले से ही रहता था। कल्याण सिंह बॉम्बे विहार रेस्टोरेंट में काम करता था। यहां राजूसिंह को 800 रुपये महीना के हिसाब से तनख्वाह मिलती थी। राजू मराठी भाषा नहीं जानता था। इस कारण थोड़े दिन बाद ही बॉम्बे विहार रेस्टोरेंट से उसे निकाल दिया गया था।
इसके बाद राजू संजय राठी की दुकान पर 600 रुपए महीना के हिसाब से काम पर लग गया था। तब बात हुई थी कि दो महीने बाद उसकी तनख्वाह बढ़ा दी जाएगी। तनख्वाह नहीं बढ़ी तो राजूसिंह नाराज होकर नौकरी छोड़ दी थी।
राजू और उसके दो दोस्त वारदात के दिन से गायब थे
पुलिस राजूसिंह की तलाश में बॉम्बे विहार रेस्टोरेंट पहुंची। वहां पता चला कि राजू सिंह वहां नहीं आया। रेस्टोरेंट में काम करने वाले राजूसिंह के दो पुराने दोस्त नारायणराम चेतनराम चौधरी और जितेंद्र गहलोत भी 25 अगस्त 1994 के दिन से रेस्टोरेंट से गायब थे।
ये जानकारी मिलते ही पुलिस का माथा ठनका। पुलिस ने राजूसिंह के साथ ही नारायणराम चेतनराम चौधरी और जितेंद्र गहलोत की भी तलाश स्टार्ट कर दी। कल्याण सिंह से पुलिस को पता चला कि राजू सिंह राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के मुकलावा गांव का रहने वाला है।
पुणे पुलिस ने सबसे पहले राजू सिंह को पकड़ने के लिए स्पेशल टीम का गठन किया। इस टीम को श्रीगंगानगर जिले के मुकलावा गांव में उसके घर के लिए रवाना कर दिया गया। यहां पहुंचने पर पुलिस को पता चला कि राजू सिंह अपने गांव नहीं आया।
वहीं ये भी पता चला कि राजू सिंह के पिता राजस्थान पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर पोस्टेड थे। इधर पुणे पुलिस की दो और टीमें नारायणराम चेतनराम चौधरी और जितेंद्र गहलोत की तलाश में राजस्थान में अलग-अलग जगह दबिश दे रही थीं।
पुलिस ने नारायणराम को गिरफ्तार किया तो उसने चौंकाने वाले खुलासे किए।
आरोपी को बीकानेर से किया था गिरफ्तार
आखिरकार घटना के दस दिन बाद 5 सितंबर, 1994 को पुणे पुलिस ने नारायणराम चेतनराम चौधरी को बीकानेर जिले के डूंगरगढ़ पुलिस स्टेशन के गांव जालपसार से गिरफ्तार कर लिया।
उसे पुणे लाकर पूछताछ की गई। नारायणराम चेतनराम चौधरी ने पुलिस को बताया कि राजू सिंह और जितेंद्र गहलोत के साथ मिलकर उन तीनों ने ही राठी परिवार के हत्याकांड को अंजाम दिया है। कुछ दिनों बाद पुलिस ने जितेंद्र गहलोत को भी पकड़ लिया।
14 अक्टूबर 1994 को जोधपुर के शास्त्री नगर पुलिस स्टेशन के तत्कालीन इंस्पेक्टर प्रताप चौधरी ने पुणे पुलिस को सूचना दी कि उन्होंने उनके वांटेड राजूसिंह राजपुरोहित को पकड़ लिया है। राजू सिंह जोधपुर में भगत की कोठी के पास था। उसने पुलिस को देख भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया।
अगले दिन 15 अक्टूबर 1994 को पुणे से पुलिस वहां पहुंची। राजू सिंह को उनके हवाले कर दिया गया। वहीं पुलिस से अलग जानकारी देते हुए जोधपुर में रहने वाले राजू सिंह के बहनोई शैतान सिंह ने बताया था कि उन्होंने राजू सिंह को खुद पुलिस के पास सरेंडर करवाया था।
पुलिस इन्वेस्टिगेशन के दौरान ही राजूसिंह मामले में सरकारी गवाह बन गया और उसने पूरे हत्याकांड की कहानी पुलिस के सामने खोलकर रख दी।
अब पढ़िए राजूसिंह का बयान, जिसे पुलिस ने चार्जशीट में शामिल किया …
संजय राठी की सागर स्वीट्स दुकान पर लगभग ढाई महीने काम करने के बाद राजू ने नौकरी छोड़ दी थी। वो वापस बॉम्बे विहार में अपने परिचितों नारायणराम और जितेंद्र के पास आ गया।
वो तीन दिन बॉम्बे विहार में साथ रहे। इसके बाद जितेंद्र की बॉम्बे विहार में नौकरी चली गई थी और उसे अपने मालिक से उसका बकाया भी नहीं मिला था। नारायणराम पुणे शहर के येरवदा के पास नागपुर चॉल में स्थित एक कमरे में रहता था।
21 अगस्त 1994 से राजू और जितेंद्र भी नागपुर चॉल के उसी कमरे में नारायणराम के साथ रहने लगे। अब तक वो तीनों बेरोजगार हो चुके थे। उनके पास जो पैसा बचा था, वह खर्च हो रहा था।
इस बीच एक दिन राजूसिंह जितेंद्र को लेकर संजय राठी की दुकान पहुंचा और उसे काम पर रखने को कहा। संजय राठी ने उसे मना कर दिया। पैसों की तंगी बढ़ती जा रही थी। ऐसे में तीनों ने किसी मारवाड़ी सेठ के यहां लूट का प्लान बनाया।
एक अखबार की कटिंग। एक घर में 7 लोगों का मर्डर पूरे शहर के दिल दहला देने वाली घटना थी।
जानते थे दिन में घर में सिर्फ औरतें रहती हैं
नारायणराम ने राजू सिंह और जितेंद्र को संजय सेठ के घर पर ही लूट के लिए कहा। राजू का संजय राठी के घर आना-जाना भी था। राजू ने उन्हें बताया कि संजय राठी के घर में दिन के समय नौकरानी सहित 4 महिलाएं और बच्चे ही रहते हैं। उसके घर में लूट में उन्हें काफी माल भी मिलेगा।
नारायणराम ने राजू और जितेंद्र को बताया- ‘ये लूट इतनी आसान नहीं होगी। राजू को घर की औरतें जानती हैं। ऐसे में लूट करके निकलते ही वो पुलिस को हमारे बारे में सबकुछ बता देंगी। हमें लूट के बाद उन सभी को मारना होगा। इसके लिए एक बढ़िया और धारदार चाकू भी लाना होगा।’
जितेंद्र ने अपने हाथ में पहना चांदी का कड़ा निकाला और बोला- इसे बेचकर बढ़िया चाकू खरीदेंगे। कड़ा तो नहीं बिका, लेकिन एक ज्वेलर्स ने अपने पास गिरवी रख उसके बदले 90 रुपए उसे दे दिए। वो तीनों 24 अगस्त 1994 को 55 रुपए में एक नया चाकू खरीद लाए।
दोपहर 2 बजे रेकी करने पहुंचे राठी के घर, बाइक देख ठिठके
तीनों 25 अगस्त 1994 को दोपहर दो बजे के आस-पास तीनों हिमांशु अपार्टमेंट के बाहर पहुंचे। यहां बाहर संजय राठी की मोटरसाइकिल थी। राजू बाइक पहचान गया। उसने बाकी दो को बताया कि संजय राठी अभी घर में ही है।
इसके बाद तीनों वहां से घूमते-घूमते वापस रोड पर आ गए। यहां तीनों ने वड़ा पाव खाया और करीब एक घंटे से ज्यादा टाइम इधर-उधर घूमते हुए बिता दिया।
लगभग एक घंटे बाद दोपहर 3 बजे वो तीनों अपार्टमेंट के बाहर पहुंचे। इस बार वहां संजय की बाइक नहीं थी। इसके बाद तीनों संजय के फ्लैट की तरफ बढ़ने लगे। सबसे आगे राजू था, उसके पीछे नारायणराम और सबसे पीछे जितेंद्र। इस दौरान उन्होंने पहली मंजिल पर स्थित फ्लैटों के दरवाजों को बाहर चेन से बंद कर दिया, ताकि शोर सुनकर कोई भी बाहर न आ सके।
जब वे चढ़ रहे थे तो राजू ने देखा कि संजय के घर की नौकरानी सत्यभामा सीढ़ियों पर आगे बढ़ रही थी। उसे देख राजू घबरा गया और उल्टे पांव लौटने लगा। नारायणराम ने राजू को धमकाया और उसे राठी के घर तक पहुंचने के लिए मजबूर किया।
संजय राठी का फ्लैट (6 बी) का मुख्य दरवाजा थोड़ा खुला था। राजू ने बाहर से देखा कि सत्यभामा घर में अपना काम कर रही थी। दरवाजा खुला होने से तीनों का काम और भी आसान हो गया। सबसे पहले राजू फ्लैट में घुसा। उसके पीछे नारायणराम और जितेंद्र भी फ्लैट में घुस गए।
घटना से जुड़ी अखबार की कटिंग। पुलिस के लिए केस जल्द से जल्द सुलझाना सबसे बड़ी चुनौती था।
चुप कराने के लिए आंखों में मिर्च पाउडर डाला
अंदर घुसते ही उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया। ये देख सत्यभामा चौंक गई। उसने संजय की मां मीराबाई को आवाज दी। मीराबाई राजू को पहचानती थीं, लेकिन उसके साथ 2 अंजान युवकों को देख घबरा गईं। उन्होंने हिम्मत जुटाते हुए राजू से पूछा कि वो यहां क्याें आया है।
राजू कुछ बोलता उससे पहले ही जितेंद्र ने गालियां निकालते हुए अपनी जेब से मिर्च पाउडर का पैकेट निकाला और मीराबाई व सत्यभामा की आंखों में डाल दिया। दोनों दर्द से चिल्लाई तो बदमाशों ने धमकाकर उन्हें चुप कराया।
नारायण से अपनी जेब से नया और जितेंद्र ने पुराना चाकू निकाला। घर में मौजूद मीराबाई, सत्यभामा, संजय की शादीशुदा बहन हेमलता, कुंवारी बहन प्रीति, पत्नी बबीता, भांजा प्रतीक और बेटे चिराग को धमकाते हुए एक जगह चौक में जमा कर बैठा दिया।
बारिश के कारण दब गई चीखने की आवाजें
जब वो तीनों घटना को अंजाम दे रहे थे, उस वक्त तेज हवाओं के साथ मूसलाधार बारिश हो रही थी। ऐसे में आवाजें फ्लैट के बाहर नहीं पहुंच पा रही थी। नारायणराम ने मीराबाई को चाकू से धमकाते हुए घर में रखे कैश, कीमती सामान और गहनों के बारे में पूछा।
मीराबाई डर गई थी। उन्होंने तुरंत कमरे के अंदर अलमारी की ओर अंगुली उठाई। नारायणराम और जितेंद्र ने राजू को मिर्च पाउडर का पैकेट दिया और कहा- ‘जो भी चिल्लाए, उसकी आंखों में डाल देना।’
इसके बाद नारायण और जितेंद्र मीराबाई को पकड़कर कमरे में ले गए। यहां नारायणराम ने मीराबाई पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर उनका मर्डर कर दिया। उनकी लाश कमरे में रखे बेड पर पटक दी।
इसके बाद दोनों बाहर आए और बबीता व उसके बेटे चिराग को अपने साथ दूसरे कमरे में ले गए। यहां नारायणराम ने बबीता और चिराग पर भी चाक़ू से ताबड़तोड़ वार किए। कुछ ही मिनट में दोनों ने दम तोड़ दिया।
नारायणराम अपनी मां के साथ। वह मूल रूप से बीकानेर का रहने वाला है।
तार से गला घोंटा, फिर पेट में चाकू मारा
इसके बाद राजू प्रीति के पास गया। नारायणराम के कहने पर उसे मारने के लिए बाथरूम में ले गया। वहां उसने वॉशिंग मशीन के तार को काटा। उस तार से प्रीति का गला घोंटा। राजू को लगा कि प्रीति मर गई थी, लेकिन उसकी सांसें चल रही थी। वह दर्द से तड़प रही थी।
नारायणराम ने कराहने की आवाज सुनी। वह चाकू लेकर बाथरूम में गया और उसकी हत्या कर दी। इसके बाद राजू और नारायणराम घर की नौकरानी सत्यभामा को रसोई में ले गए। राजू ने सत्यभामा को पकड़ा और नारायणराम ने पेट में चाकू से वारकर उसकी हत्या कर दी।
इसके बाद राजू और नारायणराम उस कमरे में गए, जहां संजय की बहन हेमलता और उसका बेटा प्रतीक खड़े थे। बदमाशों ने प्रतीक को उससे छीनने की कोशिश की। हेमलता ने इसका विरोध किया। जितेंद्र ने हेमलता को कहा कि वह उसके बच्चे को नहीं मारेगा। उसे उसकी नानी को दे देगा।
हत्या के बाद वहीं पर बदले खून से सने कपड़े
जितेंद्र ने हेमलता को धमकी दी कि अगर बच्चा उसे नहीं दिया गया तो वह बच्चे को मार देगा। ये सुनकर हेमलता घबरा गई और अपना बेटा जितेंद्र को सौंप दिया। जितेंद्र और राजू डेढ़ साल के प्रतीक को उस कमरे में ले गए, जहां मीराबाई की खून से लथपथ लाश पड़ी थी।
वहां जितेंद्र ने प्रतीक का गला दबा दिया। इसके बाद जितेंद्र और राजू नारायणराम के पास गए जो हेमलता के सामने खड़ा था। हेमलता ने पूछा- मेरा बेटा कहां है? इस पर जितेंद्र ने बताया- बच्चे को उसकी नानी को दे दिया है।
नारायणराम वार करने के लिए हेमलता के पास गया। हेमलता ने संघर्ष किया और इस दौरान वो नीचे गिर गई। नारायणराम ने चाकू से उसका गला काट दिया। जब वो दर्द से तड़प रही थी तो नारायणराम ने उसका रेप करने की भी कोशिश की, लेकिन राजू ने उसे रोक दिया।
घर में मौजूद सभी 7 लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद नारायणराम, जितेंद्र और राजू सिंह ने लूट शुरू की। घर में रखी सभी आलमारियों को खाली कर बैग में कीमती सामान, नकदी और गहने भर लिए।
नारायणराम और जितेंद्र ने वहीं पर अपने कपड़े बदले। अपने खून से सने कपड़े और वारदात में इस्तेमाल चाकू व अन्य सामान उन्होंने बैग में डाल लिए।
गला घोंटने से नहीं मरा बच्चा तो चाकू से किए वार
तीनों वारदात को अंजाम देकर वहां से निकलने ही वाले थे, तभी घर में रखा लैंडलाइन फोन बजने लगा। नारायणराम ने बैग से चाकू निकाला और लैंडलाइन का तार काट दिया।
इसी दौरान उन्हाेंने कमरे से प्रतीक से रोने की आवाज सुनी, जिसे उन्होंने मरा समझ लिया था। जितेंद्र के कहने पर वे सभी कमरे के अंदर गए। यहां जितेंद्र ने नारायणराम से चाकू लिया और प्रतीक पर वार करके उसे मार डाला।
इसके बाद उन्होंने फ्लैट के ताला लगाया। गहने-नकदी से भरे बैग लेकर तीनों मेन रोड की ओर जाने वाली गली में आ गए। यहां उन्हें सड़क पर एक रिक्शा खड़ा मिला। उसी रिक्शा से वे सभी नागपुर चाॅल में अपने कमरे पर पहुंच गए।
नागपुर चॉल पहुंचने पर जितेंद्र ने राजू से शराब और कुछ खाने का सामान लाने को कहा। राजू को इसके लिए 200 रुपए दिए गए। राजू के वापस आने पर बैग से सामान निकाला गया।
आपस में बांट लिया लूट का सामान
खून से सने कपड़ों के अलावा, माउथऑर्गन, कैमरा, 500 रुपए की एक गड्डी, 100 रुपए की एक गड्डी और 50 रुपए की एक गड्डी थी। राजू ने माउथऑर्गन, कैमरा, रिचो मेक की एक लेडीज कलाई घड़ी और नेपाल के सिक्के अपने पास रख लिए।
नारायणराम ने मंगलसूत्र और एक एचएमटी घड़ी ले ली। यह मंगलसूत्र नारायणराम ने हेमलता के गले से निकाला था। जितेंद्र ने एक सोने की चेन, तीन सोने की चूड़ियां और एक सोने की अंगूठी जिस पर एसआर लिखा हुआ था, ले ली।
इसके बाद नारायणराम ने राजू से उसके और जितेंद्र के खून से सने कपड़े धोने को कहा। राजू ने वो कपड़े नहीं धोये। रात 8 बजे वो तीनों उसी ज्वेलर्स शॉप पर गए, जहां उन्होंने जितेंद्र के चांदी के कड़े को गिरवी रखा था। यहां उन्होंने अपना बकाया 100 रुपए का भुगतान किया और वो चांदी का कड़ा छुड़वा लिया। तीनों वापस अपने कमरे में आ गए और शराब पीने लग गए।
इसके बाद नारायणराम ने दोनों चाकू शौचालय के पास छिपा दिए और सोने चले गए। अगले दिन, नारायणराम के कहने पर राजू अखबार लेकर आया। अखबार में हत्याकांड की खबर थी, लेकिन उन तीनों की कोई पहचान नहीं थी।
अखबार में छपी खबर देख होश उड़ गए
उन्होंने शाम का अखबार भी खरीदा। इसमें घटना की जानकारी के साथ ही संदिग्ध के तौर पर राजू का नाम भी छपा हुआ था। ये देखते ही तीनों के होश उड़ गए। पकड़े जाने के डर से उन्होंने पुणे छोड़ने का फैसला कर लिया।
27 अगस्त को नारायणराम और जितेंद्र सूरत के रास्ते अहमदाबाद पहुंच गए। वहीं राजू भी दूसरे रास्ते से घूमते-घुमाते अहमदाबाद पहुंच गया। यहां से तीनों एक साथ जयपुर के लिए रवाना हो गए। इसके बाद गंगानगर पहुंचे।
यहां तीनों ने लूट के बचे हुए माल का बंटवारा किया। इसके बाद नारायणराम अपने गांव जालपसार चला गया। वहीं राजू सिंह और जितेंद्रअजमेर, जम्मू और दिल्ली के कई होटलों में फर्जी नाम-पहचान के साथ ठहरे और फरारी काटी।
इसके बाद राजू सिंह जोधपुर में अपने साले शैतानसिंह के पास चला गया था। इसके बाद पुणे पुलिस ने एकएक कर उन तीनों को अलग-अलग जगह से गिरफ्तार कर लिया था।
स्कूल के ट्रांसफर सर्टिफिकेट(टीसी) में नारायणराम की बचपन की तस्वीर।
ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने दी मौत की सजा
पुणे पुलिस ने इस मामले में राजू सिंह को सरकारी गवाह बना लिया। नारायणराम को 6 हत्याओं व जितेंद्र सिंह को एक हत्या और दोनों को सभी 7 हत्याओं की साजिश बनाने और इसे अंजाम देने का आरोपी मानते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पुणे की अदालत में चार्जशीट पेश कर दी।
इस मामले में कोर्ट में ट्रायल चला। 23 फरवरी, 1998 को कोर्ट ने नारायणराम और जितेंद्र गहलोत को मौत की सजा सुनाई।
इस आदेश के खिलाफ वो दोनों बॉम्बे हाई कोर्ट में पहुंचे। हाई कोर्ट ने भी 22 जुलाई, 1999 को उन दोनों की सजा बरकरार रखने का आदेश दिया। इसके बाद साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने भी दोनों की फांसी की सजा को बरकरार रखा।
इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन डाली। सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पिटीशन को खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों ने राष्ट्रपति के पास मर्सी पिटीशन लगाईं। अक्टूबर 2016 में जीतेंद्र की मर्सी पटीशन एसेप्ट हो गई। उसकी फांसी को उम्रकैद में बदल दिया गया। लेकिन इसके साथ ही एक शर्त लगाई गई कि वो अब कभी भी जेल से बाहर नहीं आएगा और मरते दम तक जेल में ही रहेगा।
स्कूल के रजिस्टर में नारायण की डेथ ऑफ बर्थ 1 फरवरी 1982 दर्ज थी। इस आधार पर वारदात के समय उसकी उम्र 12 साल 6 महीने थी।
नारायणराम कोर्ट से बोला- वो नाबालिग था, पुलिस ने उसे बालिग बताकर पकड़ा
नारायणराम ने साल 2018 में दुबारा से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन लगाई। इसके साथ ही एक दूसरी पिटीशन और लगाते हुए बताया कि जब उसे पुणे पुलिस ने पकड़ा था तब उसकी उम्र महज 12 साल थी। पुणे पुलिस ने उसे तब 22 साल का बताकर गिरफ्तार किया था। ये चीज कोर्ट के नोटिस में आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसकी इस पिटीशन पर सुनवाई स्टार्ट की।
28 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
सुप्रीम कोर्ट ने उसकी उम्र की जांच के लिए पुणे सेशन कोर्ट को इंक्वायरी कमेटी बैठाने के लिए कहा। मई 2019 में इंक्वायरी कमेटी की रिपोर्ट आई तो सब हैरान रह गए। उसके मुताबिक, कत्ल के समय नारायण की उम्र 12 साल 6 महीने ही थी। इसके बाद मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने नारायण को बरी कर दिया। वहीं, जितेंद्र आज भी उम्रकैद की सजा काट रहा है।
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