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मध्यप्रदेश पुलिस बैंड में आरक्षकों की ट्रेनिंग का मामला हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंच के आदेशों में उलझ गया है। हाल ही में 6 अगस्त को हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि ट्रेनिंग के लिए आरक्षकों की सहमति जरूरी है। इससे पहले
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जबलपुर और ग्वालियर से पहले इंदौर खंडपीठ फरवरी में आदेश दे चुकी है कि आरक्षकों की सहमति जरूरी है। वहीं, एक अगस्त को जबलपुर बेंच का एक आदेश आया, जिसमें ग्वालियर खंडपीठ के आदेश को सही माना गया। इस तरह से हाईकोर्ट के दो आदेश ट्रेनिंग के लिए आरक्षकों की सहमति के हैं, तो दो आदेश बिना सहमति के।
जबलपुर बेंच ने 6 अगस्त को जो आदेश दिया है, उसे पुलिस महकमा चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। अधिकारियों का कहना है कि याचिकाकर्ता के वकील सुनवाई के दौरान ग्वालियर और जबलपुर कोर्ट के आदेश संज्ञान में नहीं लाए।
उधर, याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि इंदौर कोर्ट ने जो सबसे पहला आदेश दिया था वो ही मान्य होता है, कई पुराने मामलों में कोर्ट के ऐसे रेफरेंस हैं। वे इन्हें कोर्ट के सामने रखेंगे। पढ़िए, किस तरह से हाईकोर्ट के अलग-अलग आदेशों में उलझा हुआ है आरक्षकों के पुलिस बैंड ट्रेनिंग का मामला…
पहले जानिए, इस मामले की शुरुआत कहां से हुई
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हर जिले में पुलिस बैंड बनाने के दिए निर्देश
साल 2023 के आखिर में डॉ. मोहन यादव मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने तीसरे ही दिन फैसला लिया कि प्रदेश के हर जिले में पुलिस बैंड दल स्थापित किया जाए। सीएम के आदेश के बाद तत्कालीन एडीजी साजिद फरीद शापू ने 18 दिसंबर को सभी जिलों के एसपी के लिए आदेश जारी किया।
इसमें लिखा था- हर जिले में पुलिस बैंड की स्थापना की जानी है। अपनी इकाई में पदस्थ आरक्षक से लेकर एएसआई रैंक तक के कर्मियों की सूची 25 दिसंबर तक विशेष सुरक्षा बल मुख्यालय तक आवश्यक तौर पर भेजें। भेजे गए नाम ऐसे होने चाहिए, जो 45 वर्ष की उम्र से कम हों। साथ ही वो बैंड दल में शामिल होने के इच्छुक हों। इनकी लिखित सहमति के आवेदन पत्र के साथ ही सूची विशेष सुरक्षा बल मुख्यालय को भेजी जाए।
इस आदेश के बाद 10 जनवरी से इंदौर, भोपाल और जबलपुर में 90 दिवसीय प्रशिक्षण की शुरुआत हो गई। इस प्रशिक्षण में प्रदेशभर की तमाम बटालियन के 330 कॉन्स्टेबल शामिल हुए।
मुख्यमंत्री के फैसले के बाद पुलिस विभाग की तरफ से 18 दिसंबर को पहली बार पुलिस बैंड को लेकर आदेश जारी किया गया था।
इंदौर बेंच ने आदेश में कहा- आरक्षकों की लिखित सहमति जरूरी
पहले आदेश के बाद पुलिस विभाग के दो और आदेश जारी हुए। एक आदेश 31 दिसंबर और दूसरा 9 फरवरी को निकला। इनमें साफ शब्दों में लिखा था कि जो भी जवान बैंड दल जॉइन करने के इच्छुक हों, उनके नाम की सूची ही आगे बढ़ाई जाए।
आदेश के बावजूद कुछ जिलों के एसपी ने आरक्षकों को बगैर उनकी सहमति के बैंड दल में नॉमिनेट कर दिया। इसके खिलाफ मंदसौर, रतलाम, राजगढ़, गुना, भिंड, ग्वालियर, मुरैना, नीमच, शिवपुरी, शाजापुर, देवास जिलों के करीब 29 आरक्षकों ने हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में याचिका दायर कर दी।
आरक्षकों की तरफ से दायर याचिका में वकीलों ने दलील दी कि आरक्षकों ने बैंड दल में जाने की इच्छा नहीं जताई है, न ही कोई लिखित सहमति दी। इसके बावजूद इन्हें बैंड दल में शामिल होने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इन दलीलों को सुनने के बाद 21 फरवरी को कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया। बाकी के जवान प्रशिक्षण लेते रहे।
ग्वालियर खंडपीठ ने अपने आदेश में लिखा- संगीत देवदूतों की भाषा है
इसके बाद मई में मुरैना के 5 आरक्षकों ने इसी तरह की याचिका ग्वालियर खंडपीठ में दायर की। इसमें उन्होंने उसी आदेश का हवाला देते हुए लिखा कि उन्होंने बैंड प्रशिक्षण के लिए सहमति नहीं दी, इसके बाद भी उनका नाम बैंड दल में नॉमिनेट किया गया।
सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए एडवोकेट नीलेश सिंह तोमर ने कोर्ट को बताया कि पुलिस विभाग ने पहले सहमति का कॉलम रखा था, लेकिन किसी ने भी प्रशिक्षण के लिए लिखित सहमति नहीं दी। इसके बाद विभाग ने तय किया कि किसी की सहमति नहीं ली जाएगी और बगैर सहमति के ही ट्रेनिंग लिस्ट तैयार की जाएगी।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद 29 मई को ग्वालियर बेंच ने अपने आदेश में लिखा कि संगीत देवदूतों की भाषा है। सरकार ने हर जिले में पुलिस बैंड के गठन का फैसला कम्युनिटी पुलिसिंग को ध्यान में रखकर किया है। इसमें कुछ गलत नहीं है। ये प्रशिक्षण पुलिस जवानों के स्किल डेवलपमेंट के लिए है।
1 अगस्त को जबलपुर बेंच ने पुलिस डिपार्टमेंट के पक्ष में फैसला दिया
ग्वालियर खंडपीठ के आदेश के बाद 15 अगस्त की परेड के लिए पुलिस मुख्यालय ने फिर आदेश जारी किया। इसके बाद सभी जिलों के एसपी ने आरक्षकों की सहमति के बगैर ही उन्हें बैंड दल में नॉमिनेट कर दिया। जो ट्रेनिंग में नहीं पहुंचे, उन्हें सस्पेंड कर दिया। इस तरह 5 जिलों के 25 कॉन्स्टेबल सस्पेंड किए गए।
जो कॉन्स्टेबल सस्पेंड हुए, उन्होंने राहत की मांग करते हुए जबलपुर बेंच में याचिका दायर की। इस याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील के संज्ञान में आया कि ग्वालियर खंडपीठ पहले ही पुलिस विभाग के पक्ष में फैसला दे चुकी है।
इसके बाद आरक्षकों ने अपनी याचिका वापस ले ली और कोर्ट से कहा कि वे बैंड परेड में शामिल होने के लिए तैयार हैं। कोर्ट ने भी अपने आदेश में लिखा कि यदि आरक्षक बैंड परेड में शामिल होते हैं तो उनके सस्पेंशन पर पुलिस मुख्यालय मानवीयता के आधार पर फैसला ले सकता है। इसे रद्द भी कर सकता है।
6 अगस्त को जबलपुर बेंच ने इंदौर खंडपीठ के फैसले को यथावत रखा
इस आदेश के बाद 2 जिलों के 10 आरक्षक फिर जबलपुर बेंच पहुंचे। यहां उन्होंने बैंड परेड में शामिल होने से राहत मांगी। याचिकाकर्ता के वकील नित्यानंद मिश्रा ने 21 फरवरी को इंदौर बेंच के फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं के लिए राहत की मांग की।
जस्टिस विवेक जैन ने इंदौर खंडपीठ के फैसले को आधार मानते हुए आरक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया कि बिना लिखित सहमति के आरक्षकों को बैंड दल में शामिल नहीं किया जा सकता।
एडीजी एएसएफ बोले- हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल करेंगे
इस मामले को लेकर दैनिक भास्कर ने एसएएफ के एडीजी साजिद फरीद शापू से बात की तो उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने हाईकोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी। इस संबंध में ग्वालियर बेंच 29 मई को और जबलपुर खंडपीठ 1 अगस्त को फैसला सुना चुका है कि लिखित सहमति की जरूरत नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने केवल इंदौर बेंच के फैसले का जिक्र किया गया। ऐसे में इस मामले में पुलिस की तरफ से रिव्यू पिटिशन दायर की जाएगी और केस की फिर से सुनवाई का आग्रह किया जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा- मुझे पता था कि ये सवाल खड़ा होगा
याचिकाकर्ता के वकील नित्यानंद मिश्रा का इस मामले में कहना है कि उन्हें मालूम था कि ग्वालियर बेंच ऐसा फैसला दे चुकी है। उन्होंने कहा- ग्वालियर बेंच ने जब इस मामले में फैसला सुनाया था, तब इंदौर खंडपीठ के फैसले को कंसिडर नहीं किया था। उस वक्त सरकारी वकील ने इसका जिक्र नहीं किया।
इस तरह अब 6 अगस्त को जबलपुर बेंच ने अपने आदेश में ग्वालियर खंडपीठ के आदेश को कंसिडर नहीं किया। उन्होंने ये भी कहा कि ग्वालियर कोर्ट में एएसएफ के जवानों ने ये कहते हुए राहत मांगी थी कि वे ट्रेनिंग में जाएंगे तो कानून-व्यवस्था की स्थिति पर असर पड़ेगा।
तब कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा- एसएएफ के जवान फील्ड में काम नहीं करते। लॉ एंड ऑर्डर पर असर नहीं पड़ेगा जबकि मेरे याचिकाकर्ता फील्ड ड्यूटी करते हैं। उनके ट्रेनिंग में जाने से कानून-व्यवस्था पर असर पड़ेगा।
बैंड दल में शामिल होने से मना किया, 25 कॉन्स्टेबल अभी भी सस्पेंड
30 जुलाई को दैनिक भास्कर ने 4 जिलों के 10 कॉन्स्टेबल से बात की थी। ज्यादातर कॉन्स्टेबल का कहना था कि हम परीक्षा देकर कॉन्स्टेबल बने हैं। हमारी ड्यूटी थाने की है। हम बैंड क्यों बजाएं? बैंड न बजाने के पीछे उन्होंने सामाजिक कारणों का भी जिक्र किया था।
उनका कहना था कि बैंड बजाने से समाज हमें ठीक दृष्टि से नहीं देखेगा। हमारी शादी में भी दिक्कत होगी। परिवार हमारे बैंड बजाने या उस दल में शामिल होने के पक्ष में नहीं है। ये कांस्टेबल अभी भी सस्पेंड हैं।
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भास्कर एक्सक्लूसिव- बैंड नहीं बजाया तो 25 कॉन्स्टेबल सस्पेंड
मध्यप्रदेश के 5 जिलों के 25 कॉन्स्टेबल को एक हफ्ते के भीतर सस्पेंड कर दिया गया है। इन आरक्षकों की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने 15 अगस्त की परेड के लिए बैंड प्रशिक्षण में जाने से मना कर दिया था। इनका तर्क है कि हमारी भर्ती जनरल ड्यूटी के लिए हुई थी, बैंड बजाने के लिए नहीं। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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