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दुनिया में फ्रांस के बाद भारत में एकमात्र लिविंग फोर्ट है, जैसलमेर का सोनार दुर्ग। वर्ल्ड हेरिटेज में शुमार 868 साल पुराना ऐतिहासिक दुर्ग इन दिनों बारिश से हो रहे हादसों के कारण चर्चा में है।
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बीते दिनों भारी बारिश से किले की एक दीवार ढह गई थी। इसके 24 घंटे बाद एक मकान की छत भरभराकर गिर गई। लगातार हो रहे हादसों के कारण किले के अंदर 4 हजार से ज्यादा लोगों की आबादी डर के साये में है।
कई इमारतें धीरे-धीरे जर्जर हो रही हैं और ढहने के कगार पर हैं। आखिर कौनसी वो वजहें हैं जो देश के सबसे बड़े दुर्ग को नुकसान पहुंचा रही हैं। भास्कर ने एक्सपर्ट की मदद से जाना तो 3 बड़े कारण सामने आए।
पहला खराब सीवरेज सिस्टम के कारण पानी किले के अंदर बने मकानों की नींव को कमजोर कर रहा है। बार-बार आए भूकंप के झटकों से सालों पुरानी इमारतें और कमजोर हो गई। मानसून की हर तेज बारिश में किले की जर्जर इमारत या दीवारें ढह जाती है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
किले में 4 हजार से ज्यादा की आबादी, सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी रहवासियों की
जैसलमेर किला करीब 868 साल पुराना है। किले के निमार्ण से ही अंदर राजपरिवार और आम पब्लिक साथ ही रहते आए हैं। जैसलमेर किले में 382 प्रॉपर्टी हैं, जहां करीब 4 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं। किले की 33 प्रतिशत प्रॉपर्टी राजपरिवार की है और 67 प्रतिशत प्रॉपर्टी अंदर रहने वाले लोगों की। यह देश का एकमात्र किला है, जहां किले की चारदीवारी में सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी वहां रहने वाले आम लोगों की है।
जैसलमेर किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर रखा है। ऐसे में यहां किसी भी प्रॉपर्टी की मरम्मत नहीं करवा सकते है।
किले में राजपरिवार की तीन प्रॉपर्टी, 17 प्रॉपर्टी एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) और 10 खाली मकान पड़े हैं, जो जर्जर अवस्था में हैं। यह 10 मकान उन लोगों के हैं, जो कई साल पहले मकान छोड़कर दूसरे शहरों में रहने चले गए। लोग अब इन प्रॉपर्टी की मरम्मत करवाने के लिए परमिशन की मांग कर रहे हैं।
1. किले का सीवरेज सिस्टम
भारत स्थित फर्म एएनबी कंसल्टेंट्स के प्रधान संरक्षण वास्तुकार आशीष श्रीवास्तव ने वर्ष 2009 जैसलमेर का सर्वेक्षण किया था। उनकी रिपोर्ट में बताया गया कि जैसलमेर किले में सीवरेज सिस्टम सही नहीं बना है। सीवेज सिस्टम से पानी सीधे किले की नींव में रिसता है। जो किले के अंदर बने भवनों की नींव को कमजोर कर रहा है। उससे मकान और दीवारों में दरारें आ रही हैं। जैसलमेर के सीवरेज सिस्टम को फिर से डिजाइन करने की जरूरत है।
जैसलमेर में सोमवार सुबह बारिश का दौर शुरू हुआ था, जिसके बाद सोनार दुर्ग की दीवारों को नुकसान पहुंचा है।
हेरिटेज कॉन्ट्रैक्टर साबिर अली ने बताया कि सोनार दुर्ग की सीवरेज और पानी की पाइपलाइन पास-पास बिछाई गई है। इनकी लेवलिंग सही नहीं है। लीकेज होने पर पूरा पानी बंद पड़े मकानों में भर जाता है। इससे पूरे दुर्ग में सीलन पहुंच रही है। किले की दीवारें कमजोर हो रही हैं।
2. बारिश नहीं झेल पा रहा
आशीष श्रीवास्तव के अनुसार सोनार दुर्ग का निर्माण एक सूखे क्षेत्र के हिसाब से किया गया था, इसका डिजाइन बारिश का सामना करने के लिए नहीं किया गया था, अब यही किला बारिश का सामना कर रहा है।’
जब जैसलमेर का निर्माण किया गया था, तब थार के रेगिस्तान में प्रति वर्ष महज छह से नौ इंच बारिश होती थी। लेकिन इन दिनों पश्चिम राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में बारिश बढ़ी है। जिस सोमवार की सुबह सोनार दुर्ग की दीवार ढही, उन महज 24 घंटे में 95.2 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई।
एक्सपर्ट बताते हैं राजा जैसल के श्रमिकों ने 12वीं शताब्दी में जैसलमेर का निर्माण किया था, तो उन्होंने अंदरूनी हिस्सों को ठंडा रखने के लिए कई इमारतों के ऊपर तीन फीट मिट्टी डाली थी। अब वही मिट्टी बारिश में आफत बन जाती है। बारिश के पानी से उन छतों पर जमा मिट्टी कीचड़ में बदल जाती है, जिससे इमारत ढह जाती है।
चार्टर्ड इंजीनियर राजदीप शर्मा बताते हैं कि सीवरेज का पानी मकान और इमारतों की नींव में जाने से, उनमें दरारें आने लग जाती हैं। इससे उनकी लाइफ खत्म होने लगती है। भारी बारिश में ऐसी इमारतों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है।
बारिश के आंकड़ों पर नजर डालते हैं…
3. भूकंप से किले की नींव हिली
जैसलमेर के किले को नुकसान पहुंचने के पीछे एक और बड़ी वजह भूकंप भी है। 26 जनवरी, 2001 को किले की हालत तब और गंभीर हो गई, जब गुजरात के जामनगर के पास 7.7 तीव्रता का भूकंप आया। हालांकि, जामनगर और जैसलमेर के बीच लगभग 200 मील की दूरी है। लेकिन भूकंप के झटकों ने किले की नींव हिला दी। इससे किले के अंदर कई इमारतों को नुकसान पहुंचा था। इसके बाद आए हल्के भूकंप के झटकों से जर्जर इमारतों को ओर नुकसान पहुंचा है।
दीवार ढहने से एक साथ 6 लोगों की मौत हो गई, अब तक 87 हिस्से ढह गए
- पिछले कुछ वर्षों में किले के भीतर 469 संरचनाओं में से 87 ढह गई हैं।
- वर्ष 1993 में, ‘रानी का महल’ का एक हिस्सा इसकी बलुआ पत्थर की दीवारों के भारी भार के नीचे ढह गया।
- वर्ष 1997 में गोपा चौक में सोनार किले के परकोटे की दीवार ढहने से छह लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी।
- वर्ष 2015 में भी ढिब्बा पाड़ा क्षेत्र में एका एक दीवार ढहने से हडक़म्प मच गया था। गनीमत रही हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई।
- वर्ष 2017 में मानसून की बारिश में मुख्य द्वार के रिटेनिंग दीवार का 40 फुट लंबा और 20 फुट चौड़ा हिस्सा गिर गया। दीवार का एक अन्य हिस्सा, 100 फुट लंबी, गिरने के कगार पर है।
वर्ष 2022 और 2024 में बारिश के दौरान किले की दीवार ढह गई। अब मानसून में तेज बारिश में हर साल किले की दीवारें ढहने लगती है।
जैसलमेर में भारी बारिश के चलते सोनार किले में स्थित जर्जर मकानों के गिरने का डर बढ़ गया है। बांस लगाकर जर्जर मकान वाली गली को बंद किया गया है।
साढ़े 7 करोड़ रुपए में सीवरेज लाइन बिछाई
जैसलमेर किले में रहने वाले विमल कुमार गोपा ने बताया कि वर्ष 2015-16 में राजस्थान शहरी अवसंरचना विकास परियोजना (RUDIP) ने किले में नए सीवरलाइन बिछाने का काम शुरू किया था। करीब 7 करोड़ की लागत में जैसलमेर किले में नई सीवरेज लाइन बिछनी थी। लेकिन सीवरेज लाइन के काम में कई बार अनियमाओं का आरोप लगा। इस पर ठेकेदार पर करीब 50 लाख का जुर्माना भी लगा था। जैसलमेर का सीवरेज लाइन सही नहीं होने के कारण आज भी नींव में पानी जाने से मकान जर्जर हो रहे हैं।
जर्जर मकानों को ध्वस्त कराने के ऑर्डर, मरम्मत के लिए डीजी ऑफिस से परमिशन मिलती है
एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) इंचार्ज मुकेश मीणा ने बताया कि किला वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित हो रखी है। ऐसे में बिना परमिशन के निर्माण नहीं करवा सकते है। जिन्हें मकान की मरम्मत करवानी होती है। उन्हें डीजी ऑफिस से परमिशन लेनी होती है।
हाल ही में डूंगरसिंह नाम से एक एप्लिकेशन आई थी, उन्हें मरम्मत के लिए परमिशन दे दी गई। लेकिन कई लोग मरम्मत की आड़ में मकान में कमर्शियल होटल, रेस्टोरेंट का निर्माण करने लगते हैं, ऐसे में उन्हें निर्माण की परमिशन नहीं दी जा सकती।
गुरुवार को किले के अंदर एक जर्जर मकान का छज्जा टूटकर गिर गया।
- 868 वर्ष पुराने किले का कमजोर हो रही हैं परकोटे की दीवारें
- 2 वार्ड में बंटा है ऐतिहासिक सोनार किला
- 4 हजार के करीब लोग निवास करते हैं ऐतिहासिक दुर्ग में
- 1993 से यहां निर्माण कार्य पर लगाई गई है रोक
- 99 बुर्ज जैसलमेर के सोनार दुर्ग की विशेष पहचान हैं
- ऐतिहासिक सोनार दुर्ग में 50 से अधिक जर्जर, क्षतिग्रस्त मकान
यहां मकान की मरम्मत करवाई तो पुलिस केस हो जाता है
जैसलमेर किले में रहने वाले विमल कुमार गोपा ने बताया कि किले को वर्ष 2013 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर दिया गया। हवेली, मंदिर, आम लोगों के मकान, चारदीवारी तक वर्ल्ड हेरिटेज साइट में आ गए। अब जैसलमेर किले की चारदीवारी के अंदर किसी मकान से लेकर दीवार तक मरम्मत के लिए एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) से परमिश्न लेनी पड़ती है। अगर बिना परमिशन के मकान की मरम्मत करवाने पर एएसआई विभाग उन लोगों के लोगों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा देता है।
विमल कुमार गोपा सोनार किले के अंदर ही रहते हैं।
विमल कुमार गोपा के अनुसार मैंने वर्ष 2018 और फिर 2021 में मकान की मरम्मत करवाने के लिए एएसआई से परमिशन मांगी थी लेकिन आज तक परमिशन नहीं मिली। अब मेरा मकान भी जर्जर होकर गिरने की कगार पर है।
इस साल मकान मरम्मत करवाने पर तीन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ
किले में रहने वाले दिनेश कुमार श्रीपत ने बताया कि जैसलमेर में बारिश के दौरान मकानों की दीवारों में दरारें और जर्जर होने के कारण गिरने लगते हैं। जर्जर मकान और दीवार को देखकर नगर परिषद विभाग की ओर से उन्हें नोटिस भी जारी किए जाते हैं। ऐसे में तीन लोगों ने जुलाई और अगस्त महीने में मकान की मरम्मत करवाई थी। लेकिन मरम्मत करवाने पर एएसआई विभाग ने अगस्त माह में तीन परिवारों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा दिया।
किले के अंदर रहने वाले दिनेश कुमार श्रीपत।
हाईकोर्ट ने किले की 300 मीटर परिधि में पट्टे और निर्माण पर रोक लगाई
जैसलमेर में वर्ष 2021 में हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी कर सोनार किले के 300 मीटर की परिधि में निर्माण, नियमन व पट्टा जारी करने पर रोक लगा दी थी। जैसलमेर शहर की आधी आबादी सोनार किले की 300 मीटर की परिधि के अंदर ही रहती है। आदेश से पहले महज 11 पट्टे जारी हुए थे। इसके बाद किले के अंदर पट्टे और निर्माण पूरी तरह से ही रोक लग गई।
देश का एकमात्र जीवित किला है सोनार फोर्ट
दुनिया के जीवित फोर्ट में इंडिया का एक मात्र जीवित किला जैसलमेर का सोनार फोर्ट है। जैसलमेर किले में शहर की लगभग एक चौथाई आबादी आज भी किले के अंदर रहती है। इस किले का निर्माण 1156 ई. में रावल शासक जैसल ने बनवाया था। जिनके नाम पर इसका नाम पड़ा जैसलमेर किला। यह राजस्थान का दूसरा सबसे पुराना किला है।
किले के भीतर कई निर्माण जर्जर अवस्था में हैं।
भारत से पाकिस्तान की ओर जाने वाले प्राचीन सिल्क रूट के कारण इस किले को यहां बनवाया गया था। किले की विशाल पीले बलुआ पत्थर की दीवारें दिन के समय गहरे भूरे शेर के रंग की होती हैं, जो सूरज ढलने के साथ शहद-सुनहरे रंग में बदल जाती हैं, जिससे किला पीले रेगिस्तान में छिप जाता है। इस कारण इसे स्वर्ण दुर्ग, सोनार किला या गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।
किला त्रिकुटा पहाड़ी पर महान थार रेगिस्तान के रेतीले विस्तार के बीच स्थित है, इसलिए इसे त्रिकूटगढ़ भी कहा जाता है। जैसलमेर की बढ़ती आबादी के बाद पहली बार 17वीं शताब्दी में किले की दीवारों के बाहर बस्तियां बनी थी। लेकिन इसके बावजूद जैसलमेर की मुख्य बस्ती किले के अंदर ही रहती थी।
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